शाम सामने वाले गदेरों को सुरमई बना रही थी. स्वीली घाम (शाम को ढलते सूरज की हल्की पीली रोशनी) दीवा के डाण्डे को फलांगता चौखम्भा की सबसे ऊंची चोटी को ललाई से बाँधने लगा. दादी लोग गाय, बाछी ,बैलों को सरासर ओबरे में बाँध कर उनके कीलों में घास डाल रही थी. माँ, चाची झुटपुटे उजाले में गागर कसेरों में पानी भर लाई. दादा जी ने चारों लालटेनों की हांडी राख से मांज साफ कर जला दी.
हम बच्चे दिनभर हुड़दंग मचा कर घरों में घुस गए. तभी दिन भर काम काज से थकी दादी सीढ़ियों में चढ़ती बोली ‘ हे ब्वै अब तो ज्यूंर्या बी हर्चि ग्या मीकु’ (यमराज भी मेरे लिये खो गया). दादी की ज्यूंर्या वाली बात सुन के मुझे बहुत मजा आया. अभी वो ठीक से थकान भी नहीं बिसा (उतार) पाई थी कि मेरा कथा वाला राग शुरू हो गया. फिर क्या था मेरी पीठ पर दो चार हाथ बिना रुके पड़ गए.
इससे पहले कि मेरा रिरियाट शुरू होता दादा जी ने बीच बचाव किया. ठैर जा बाबा जब हम सब खाना लेंगे और दादी की थकान उतर जायेगी तब लगाएगी कथा. जरा सबर कर ले बाबा.
तब तक मै सो जाउंगी तो. पता नहीं अपनी बात को मनाने के मेरे पास कितने बहाने होते. ये एक दिन की नहीं रोज की बात थी. हमारी बैचेनी ख़तम ही नहीं हो रही थी और दादी भगवती के लक्षण आज कथा लगाने के नहीं लग रहे थे. बहुत ही अकड़ दिखा रही थी.
हमने भी तरन्तु पाला बदला और दादा के पास जा कर बैठ गए. दादा जी को सब समझ में आ गया, हँसते हुए बोले चलो बच्चों आज एक कथा मै ही लगा देता हूँ. दादा जी के साथ हुंगरे लगाने की जरुरत नहीं होती थी. जब भी वो कथा लगाते हमें बैठ कर सुननी होती. हम बहनों ने चोंठी (ठोड़ी) पर हाथ लगाये और दादाजी को टकटकी लगा के देखने लगे.
ये बहुत पुराने समय की बात है. बेटे वो ऐसा समय था जब भी दुख होने पर कोई भगवान को बुलाता था. भगवान उसकी दुख भरी आवाज सुन के फ़ौरन आ जाते थे. उसी समय की बात है किसी गाँव में एक बूढ़ी माँ अकेली रहती थी. उनके सब बच्चे पैसा कमाने गांव छोड़ कर देश चले गए थे. घर बाहर के सारे काम बूढ़ी माँ को खुद ही करने पड़ते.
घर, खेती, पाती, जंगल से घास लकड़ी लाना सब कुछ. एक जान सौ काम. काम करते करते बूढ़ी माँ इतना थक जाती कि हर बात पर हे भगवान क्या करूँ. हे भगवान तू ही जाने. हे भगवान अब तो उठा ले. भगवान रोज रोज उनकी बात सुनता और बूढ़ी माँ के दुःख देखता रहता.
एक दिन भगवान ने सोचा, मुझे कुछ तो करना ही पड़ेगा इनके लिए. बहुत सोचने के बाद भगवान यमराज के पास विचार करने चला गया. दोनों ने सोचा ये माँ अब बहुत बूढ़ी हो गयी है. पूरी उमर भी काट ली. इनके दिन भारी दुखों में बीत रहे है.
भगवान ने यमराज से पूछा ‘भाई अब इस बूढ़ी माँ के खाते में कितने दिन और हैं.’ यमराज ने खाता देखा और बोला ‘कुछ दो एक साल और बचे हैं. ऐसे ही तो हम उन्हें ला नहीं सकते. बीमार पड़ेगी तभी ला सकते हैं.’ भगवान बोला ‘भाई इस बेचारी माँ ने अब तक बहुत कष्ट भुगत लिए. अब मरने के कष्टों से हमें इन्हें मुक्त कर देना चाहिए. यमराज भाई ऐसा करो दो चार दिन में जाकर आराम से बूढ़ी माँ को उठा लाना. यहाँ लाने के बाद उनके आराम का ध्यान रखना. अब जब बूढा शरीर छूट जायेगा तो उनके कुछ दुःख अपने आप ख़तम हो जायेंगे.’ यमराज को ये बात जंच गयी उन्होंने अपने भैंसे को बुलाया और बोला ‘ देख बे, जब मैं नीचे मृत्यु लोक में जाऊंगा तब तू छिप जाना. तुझे देख कर लोग डर जाते हैं. जब मैं माँ को उठा लूंगा, तुझे बुला लूंगा.’
अब चला जी यमराज अपनी सवारी में. जब वो बूढ़ी माँ के घर पंहुचा तो पता चला बूढ़ी जंगल में लकड़ी काटने गयी है. यमराज ने सोचा मेरे और बहुत से काम पड़े है. बूढ़ी माँ पता नहीं कितनी देर में लौटेगी. ऐसा करता हूँ जंगल में ही चला जाता हूँ.
लगा यमराज जंगल के बाटे. बूढ़ी माँ क्या है कि हांफती हुई कुल्हाड़ी से एक पेड़ से लकड़ी काट रही थी. अचानचक सुनसान जंगल में अपने सामने एक आदमी को खड़े देख कर चोंक गयी. माँ ने सोचा कोई राही है जो रास्ता भूल गया. उन्हें ये अच्छा मौका दिखाई दिया. बूढ़ी माँ और जोर से हाय हाय करने लगी.
‘ तू कौन है बेटा. यहाँ कहाँ से आ गया.’ यमराज ने माँ को प्रणाम किया और बोला ‘माँ मै यमराज हूँ. तुझको लेने आया हूँ. तू रोज बोलती थी न हे ज्यूंर्या कख हर्चि. मुझे लगा तू बहुत कष्टों में है, याद करती है चलो तुझे ले ही आऊं.’ बूढ़ी माँ थोड़ी देर तो भौंचक्क रह गयी. फिर बोली ‘ठीक बाबा ठीक. बहुत अच्छा किया तूने. ऐसा करती हूँ पहले एक गड्डा लकड़ी का काट लेती हूँ. घर पर रख दूंगी तब तेरे साथ आराम से चली चलूंगी.’
यमराज को तो हो रही थी जल्दबाजी बोला ‘माँ अब तूने इस लकड़ी का क्या करना है. छोड़ क्यूं मेहनत करती है.’ बूढ़ी माँ बोली ‘अरे छोरा मेहनत मुझे क्यूं करनी है अब. तू तो है जवान जहान लड़का. वैसे भी तू आया तो तभी न जब मेरा कष्ट नहीं देख पाया.’
-गीता गैरोला
देहरादून में रहनेवाली गीता गैरोला नामचीन्ह लेखिका और सामाजिक कार्यकर्त्री हैं. उनकी पुस्तक ‘मल्यों की डार’ बहुत चर्चित रही है. महिलाओं के अधिकारों और उनसे सम्बंधित अन्य मुद्दों पर उनकी कलम बेबाकी से चलती रही है. काफल ट्री की नियमित लेखिका.
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