कथा

अजनबी मामा- उत्तराखंडी लोककथा

एक गांव में पति-पत्नी अपने बच्चे के साथ रहते थे. एक बार दोनों के बीच किसी बात को लेकर कहा-सुनी हो गयी. कहा-सुनी इस कदर बढ़ गयी की दोनों ने आपस में बात करना ही छोड़ दिया. दिन बिता महीने बीते पर दोनों में किसी ने भी एक-दूसरे से बात न की. अगर किसी को दूसरे से कोई बात कहनी होती तो बच्चे से कहला कर कह देते.
(Folk Stories Uttarakhand Ajnabi Mama)

एक बार एक अजनबी गांव के पास से होकर गुजर रहा था. ठंडी के दिन थे अंधेरा जल्दी हो जाया करता. अजनबी ने देखा गांव के बाद जंगल लगता है और उसकी मंजिल अभी काफ़ी दूर है. तय था कि गांव छोड़ता तो रात जंगल में गुजारनी पड़ती. अजनबी ने समझदारी से काम लिया और गांव में नजर दौड़ाई.

जिस रास्ते वह निकल रहा था उसमें आगे चलकर एक अकेला घर था. यह घर आपस में बात-चीत न करने वाले पति-पत्नी का ही था. अजनबी ने इसी घर में बसेरा ढूंढने को किस्मत आजमाई. अजनबी घर पर गया और बाखली के भिंड़े पर पूरे आत्मविश्वास से बैठ गया. पति घर पर मौजूद न था पत्नी ने आत्मविश्वास से बैठे अजनबी को ढोक लगाई तो अजनबी ने पूछा- तुम्हारे मालिक कहाँ हैं? पत्नी मुझे तो नहीं पता कहते हुये भीतर जाने को हुई. बच्चा भीतर से दोनों की बात सुन रहा था उसने भीतर से तुंरत बाहर आकर कहा- मेरे बाबू ने नहीं बताया कि वह कहाँ गये हैं ईजा बाबू में आज कल लड़ाई चल री. बच्चे की मां ने उसे टेढ़ी नजरों घूरा और भीतर को चली गयी.

बच्चा अजनबी के साथ खेलने लगा तो थोड़ी ही देर में उससे घुलमिल गया तभी उसने अजनबी से सीधा पूछ लिया- वह कौन है? अजनबी को कुछ न सुझा तो उसने यूं ही कह दिया- मैं तेरा मामा हूँ. बच्चे की मां के कान उसके और अजनबी की बातें में ही लगे थे. उसने सोचा- यह मेरे मायके का तो है नहीं तो बच्चे का मामा नहीं हुआ और न यह मेरे नैनिहाल का है तो मेरा भी मामा नहीं हुआ. यह जरुर मेरे पति का मामा होगा.

पत्नी बचपन से अपनी मां को देखती थी जब कभी घर में उसके मामा आते तो वह खूब खातिर करती. उसने भी अपने पति के मामा की खूब खातिर्क करने की ठानी. लगड़-पुवे तलने तक पति भी घर पहुंच गया. उसने देखा घर में कोई अजनबी आया है और पकवानों की खुशबू तो घर पहुंचने से 100 मीटर दूर तक आ रही थी.

बाखली में बैठे अजनबी को देखकर पति ने उसे हाथ जोड़े और बच्चे को ईशारे से पास बुला लिया. उसने अपने बच्चे से पूछा कौन आया है? बच्चे ने कहा मामा आया है. उसने अपने बच्चे से कहा- मैं तुम्हारी ईजा के भाई को जानता हूँ यह तुम्हारा मामा नहीं तुम्हारी ईजा का मामा है. बच्चा चुप रहा. आदमी अपनी पत्नी से पूछने की हिम्मत न कर सका. पर खातिरदारी देखकर उसने ख़ुद ही तय कर लिया कि अजनबी उसकी पत्नी का मामा है.
(Folk Stories Uttarakhand Ajnabi Mama)

अजनबी के पास जाकर आदमी ने उसके हाल-चाल जाने. एक के बाद एक बात चली. अजनबी थोड़ा ज्यादा चालाक था सो खाना आने तक उसने आदमी को उसका परिचय पूछने का मौका ही नहीं दिया. आदमी को शानदान भोजन परोसा गया. लजीज खाने के बाद उसने लम्बे सफ़र के चलते थकान की बात कही और सोने के लिये जगह पूछी. घर के एक कोने में उसके लिये पराव बिछा दी गयी. अजनबी ने अपने सितारों को धन्यवाद किया और आँखें मूंद ली.

अगली सुबह आदमी अपने घर आये मेहमान के हाल जानने को उसकी पुवाल के पास पहुंचा. वह तो खाली थी. पहले उसे लगा कि मेहमान कही शौच इत्यादि के लिये ईधर-उधर हुआ होगा पर काफ़ी समय बीत गया पर वह वापस न लौटा. आदमी ख़ुद को रोक न सका और जाकर सीधा अपनी पत्नी के पास गया लेकिन उससे सीधा सवाल पूछने की हिम्मत न कर सकता उसने अपने बच्चे से कहा कि अपनी ईजा से पूछ उसका मामा कहाँ गायब हो गया?

उसकी पत्नी से जब यह सुना तो वह गुस्से से भड़क उठी और कहने लगी- माना कि हमारे बीच झगड़ा हुआ है पर उसके बदले क्या तुम मुझे इस तरह सुनाओगे? पति को कुछ समझ न आया कहने लगा- इसमें सुनाना क्या है? पत्नी ने जवाब दिया- मेरे मामा सालों पहले मर चुके हैं? पति जोर से चिल्लाया- तो रात भर यहां रुका था वह किसका मामा था? पत्नी से धीरे से कहा- मुझे तो लगा वह तुम्हारे मामा थे. बच्चा उनका झगड़ा सुन रहा था. तीनों एक दूसरे का चेहरा देखने लगे अब तीनों को समझ आया की रात में जिसकी खातिर की वह कोई अजनबी था तीनों जोर जोर से ठहाके लगाने लगे. पति ने अपनी पत्नी को गले से लगाया और कहा- जो भी था हमारे घर भगवान बनकर आया था उसकी वजह से हमारा झगड़ा तो खत्म हुआ.
(Folk Stories Uttarakhand Ajnabi Mama)

गोविन्द चातक की किताब उत्तराखंड की लोक कथाएँ के आधार पर.

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