लोकगायिका स्व. कबूतरी देवी उत्तराखंड की ऐसी पहली गायिका हैं जिन्होंने रेडियो के जमाने में खूब नाम कमाया. किसी पहाड़ी सफर की तरह उनकी जिंदगी में भी खूब सारे उतार-चढ़ाव आए. ‘उत्तरा’ महिला पत्रिका की सम्पादक डॉ. उमा भट्ट ने कबूतरी दी के अकल्पनीय जीवन संघर्ष और उपलब्धियों की कहानी को एक डॉक्यूमेंट्री के रूप में दुनिया के सामने लाने का जो सपना देखा वो ‘अपनी धुन में कबूतरी’ के रूप में कबूतरी दी के देहांत के बाद सामने आ पाया. कबूतरी दी को रेडियो पर और मंच पर खूब सुना गया लेकिन उनके बारे में बहुत कम लिखा गया. उनकी ऑडियो रिकॉर्डिंग्स भी शायद आकाशवाणी की अलमारियों में ही क़ैद होंगी.
कबूतरी दी के बारे में जानकर प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक संजय मट्टू बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने इस वृत्तचित्र को बनाने में रुचि दिखाई. कई संस्थाओं और व्यक्तियों के संयुक्त प्रयास से जो डॉक्यूमेंट्री बनकर सामने आई है वो कबूतरी दी के पूरे व्यक्तित्व और उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को हूबहू सामने रखती है. ‘उत्तरा’ महिला पत्रिका, रंगमंच संस्था ‘युगमंच’, नैनीताल फ़िल्म सोसायटी और फ्लेमिंगो फिल्मस के संयुक्त प्रयासों से बनी लगभग 42 मिनट की इस डॉक्यूमेंट्री को पिथौरागढ़ के आसपास कबूतरी देवी के गांव क्वीतड़ और उनकी बेटी के घर पर सेरी कुमडार गांव में फिल्माया गया है.
तकनीकी दृष्टि से भी यह फ़िल्म दर्शकों को बहुत पसन्द आ रही है, इसकी स्टोरीलाइन, सिनेमेटोग्राफी और ऑडियो क्वालिटी उच्चस्तर की है. 16 सितम्बर को नैनीताल में इस फ़िल्म के प्रदर्शन के समय तक कबूतरी दी तो इस दुनिया से विदा ले चुकी थीं लेकिन उनकी दो बेटियों सहित पूरा परिवार वहां उपस्थित था.
‘अपनी धुन में कबूतरी’ डॉक्यूमेंट्री में हमको कबूतरी दी अपने उसी रूप में नजर आती हैं जैसी वो वास्तव में थी. पहाड़ की एक संघर्षशील महिला जिसने शून्य से सफर शुरू किया और लोकप्रियता की बुलंदियों को छुआ. पूरी बातचीत के दौरान कबूतरी दी ने बहुत ईमानदारी और बेबाक़ी से अपने पति, साथी कलाकारों, भाई-बहनों और नई पीढ़ी के बदलते संगीत के बारे में अपनी बात रखी है, बिना किसी लाग-लपेट के. डॉक्यूमेंट्री में उनके गांव के लोगों से भी बातचीत है.
कबूतरी दी लम्बी बीमारी और उम्र के कारण जब असहाय हो गई तो उनकी छोटी बेटी हिमन्ती उनका सबसे बड़ा सहारा बनी. ये डॉक्यूमेंट्री कबूतरी दी की बेटी हिमन्ती, उनके गांव की औरतें, नाती-पोतों के नजरिए से भी कबूतरी दी को देखने का मौका देती है.
कबूतरी दी के बहाने इस डॉक्यूमेंट्री ने पहाड़ की सभी औरतों के कष्ट और पीड़ा को आवाज दी है. अपने गांव को छोड़ने की मजबूरी से पैदा होने वाली छटपटाहट जो कबूतरी दी के चेहरे पर दिखती है, वो सिर्फ उनकी ही नही पूरे पहाड़ के लोगों की पीड़ा है. आजकल की युवा पीढ़ी संगीत के बारे में क्या सोचती है, ये बात कबूतरी दी के पोते की बातचीत से स्पष्ट हो जाती है. कबूतरी दी के गीत तो हमारे साथ हमेशा रहेंगे ही, अब एक संतोषजनक बात ये भी है कि इस डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से हम कबूतरी दी को उनके उसी पहाड़ी ठसक वाले अंदाज में पर्दे पर, टीवी पर और मोबाईल पर भी देख पाएंगे.
अपनी धुन में कबूतरी’ वृत्तचित्र का विशेष प्रदर्शन और बातचीत का आयोजन विगत 2 अक्टूबर’18 को रुद्रपुर के नवरंग वाटिका में ‘क्रिएटिव उत्तराखंड’ के स्थानीय सहयोग से हुआ. इसमें नैनीताल के रंगकर्मी ज़हूर आलम और डॉक्यूमेंट्री के कार्यकारी निर्माता संजय जोशी भी उपस्थित रहे.
इस महत्वपूर्ण डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म के विशेष प्रदर्शन नैनीताल, अल्मोड़ा, रुद्रपुर, पिथौरागढ़ आदि जगहों पर हो गए हैं या प्रस्तावित हैं. अगर आप इस डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म की DVD खरीदने या प्रदर्शन और इस पर बातचीत का कार्यक्रम रखना चाहते हैं तो डॉक्यूमेंट्री के कार्यकारी निर्माता संजय जोशी से मोबाइल नम्बर 9811577426 पर सम्पर्क कर सकते हैं.
हेम पंत मूलतः पिथौरागढ़ के रहने वाले हैं. वर्तमान में रुद्रपुर में कार्यरत हैं. हेम पंत उत्तराखंड में सांस्कृतिक चेतना फैलाने का कार्य कर रहे ‘क्रियेटिव उत्तराखंड’ के एक सक्रिय सदस्य हैं .
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कबूतरी देवी के ऑडियो आकाशवाणी के अलमारियों में कैद नहीं है समय समय पर प्रसारित होते रहता है। बल्कि
अलमारी में रेडियो कैद हो गया है।