हाल ही में फेसबुक और उसकी संतानें, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम, रात करीब 6 घंटे तक बंद रहे. इन सोशल मीडिया एप्स के करीब 3 अरब यूजर्स इस बंद से प्रभावित हुए. इस मौके पर हमें भी कुछ देर ये सोचने का मौका मिला कि सोशल मीडिया हमारे जीवन के कितने अंदर तक घुस चुका है. इसी बीच फेसबुक में काम कर चुकी फ्रांसिस ह्यूजेन का चौंका देने वाला खुलासा यहां जानना ज़रूरी है. (Facebook unauthorized capture mind)
सोशल मीडिया को लेकर बढ़ती समझदारी की वजह से हम सब यह तो जानते हैं कि कैसे फेसबुक हमारा डाटा इस्तेमाल कर कंपनियों को बेचता है, ताकि हमारी पसंद के हिसाब से हमें उत्पाद खरीदवाये जा सके. लेकिन साथ ही वह हमारी पसंद और सोच को अपने हिसाब से गढ़ता भी है. इसका एक अच्छा उदाहरण है 2010 का अमरीकी चुनाव (US congressional elections), जिसमें फेसबुक ने एक प्रयोग किया. इस दौरान करीब 6 करोड़ लोगों को इलेक्शन के लिए मैसेज भेजा गया जिसमें वोट करने वालो में उनके दोस्तों के नाम दिखाए गए. वहीं कुछ लोगों को बिना नाम दिखाए मैसेज भेजे गए. अध्ययन के मुताबिक दोस्तों के नाम दिखाने का काफ़ी असर पड़ा. इसका नतीजा यह हुआ कि करीब 3.4 लाख और लोग वोट देने के लिए गए. यदि फेसबुक यह रिसर्च सार्वजनिक न करता तो हमको यह अंदाज़ा ही नहीं लग पता कि वह किसी चुनाव चुनाव पर कितना बड़ा असर डाल सकता है. इससे यह आंकलन किया जा सकता है कि कोई सत्ता या तानाशाह फेसबुक के जरिए लोगों को किस हद तक प्रभावित कर सकता है.
तीसरी दुनिया के देशों — अफ्रीकी व दक्षिण एशियाई देशों पर कब्ज़ा जमाने के उद्देश्य से फेसबुक 2014 में फ्री बिजनेस वर्जन ले कर आया. जिसमें फेसबुक का वर्जन व कुछ चुनिंदा अन्य वेबसाइटस बिना डाटा के भी चल सकेंगी. इसके पीछे की मंशा थी कि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को ऑनलाइन आने, विशेषकर फेसबुक इस्तेमाल करने के लिए आकर्षित करना. यह डिजिटल उपनिवेशिकरण का ही एक हिस्सा है.
सोशल मीडिया का अदृश्य दुष्प्रभाव हमको कोडेड बायस (Coded bias) नामक डॉक्यूमेंट्री में अच्छे से समझने को मिलता है. एल्गोरिदम इस तरह से बनाए जाते हैं कि वे इंसानों के डाटा (काम व सोच का ब्यौरा) से सीखते हैं और फिर उसी हिसाब योजना बनाकर काम करते हैं. इस डॉक्यूमेंट्री में एक जबरदस्त उदाहरण है — 2016 में माइक्रोसॉफ्ट द्वारा रिलीज किए ‘चैटबॉक्स टे.’ जो ट्विटर पर 24 घंटे के अंदर ही तानाशाह, महिला विरोधी बन जाता है. वह लिखता है कि “मैं सभी फेमिनिस्ट से नफरत करता हूं, उन को मर जाना चाहिए” और “हिटलर सही था.” एमआईटी लैब में काम कर रही जॉय अडोवा बुओलामविनी बताती है कि हम समझते है कि एआई समाज के भेदभाव व शोषण से परे है लेकिन असल में एल्गोरिदम व् आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से शोषक व्यवस्था का अत्याचार अपारदर्शी हो गया है. जैसे अमेजन का रिक्रूटमेंट एल्गोरिदम, जिसने सभी आवेदक महिलाओं की एप्लीकेशन ख़ारिज कर दी और केवल पुरुषों को ही चुना. चाहे दोनों ही के आवेदन बराबर काबिलियत वाले क्यों न हों. इसी तरह फेसबुक ने पेटेंट कराया है — जिससे दुकानें अपने यहां लगे कैमरे से ग्राहकों की फेसबुक प्रोफाइल द्वारा उनकी पसंद, खरीदारी का पैटर्न, उनका हाव-भाव सब कुछ जान सकते है और उसी हिसाब से उन्हें अपना समान बेच सकते हैं.
चलिए अब हम फेसबुक में दो साल काम कर चुकी फ्रांसिस ह्यूज़ेन के दिलचस्प खुलासे पर आते हैं, इन्हें मुखबिर भी कहा जाता है. फेसबुक ने कई चीजों पर रिसर्च कर दस्तावेज निकाले, जिनको फ्रांसिस ने कुछ दिन पहले सार्वजनिक कर दिया—
“For a select few members of our community. We are not enforcing our policies and standards. Unlike the rest of our community, these people can violate our standards without any consequences.”– Facebook
फेसबुक या आमतौर पर सोशल मीडिया कुछ नियम बनाती है. इन नियमों के तहत नफरत फ़ैलाने, धमकी देने, नग्न तस्वीरें जैसी तमाम चीजें एकाउंट में पोस्ट करने पर वह उन पोस्ट को हटा देती है. इस वजह से वह अकाउंट भी कुछ समय के लिए बंद कर सकती है.
अब यह व्हाईटलिस्ट क्या है? यह एक खुफिया लिस्ट है उन लोगों की जिन पर ये नियम लागू ही नहीं होते. इस लिस्ट में करीब 60 लाख लोगों में अनेक नेता, अभिनेता, तमाम सत्ताधारी और जानी-मानी हस्तियाँ मौजूद हैं. डोनाल्ड ट्रंप और खुद मार्क जुकरबर्ग भी इस लिस्ट में हैं. इसका दुषपरिणाम ब्राजीलियन फुटबॉल खिलाड़ी नेमार के एक पोस्ट से समझा जा सकता है. एक लड़की ने नेमार पर बलात्कार का आरोप लगाया. उसकी प्रतिक्रिया में नेमार ने फेसबुक पर एक वीडियो अपलोड किया जिसमें उस महिला का नाम और नग्न तस्वीरें भी थीं. इसे दूसरे पक्ष की गैर सहमति से पोस्ट की गयी नग्नता या रिवेंज पोर्न कहा जा सकता है. यह फेसबुक के नियमों के एकदम खिलाफ़ है. लेकिन क्योंकि नेमार व्हाईटलिस्ट में थे तो फेसबुक के सामान्य नियम उन पर लागू नहीं हुए. उनका यह वीडियो पोस्ट नहीं हटाया गया, अकाउंट सस्पेंड होना तो दूर की बात है. पूरे 24 घंटे तक इतनी जानी-मानी वैश्विक हस्ती का वह पोस्ट वहीं रहा. जिसका नतीजा यह हुआ कि वह महिला लाखों लोगों के उत्पीड़न का शिकार हुई. डाटा के मुताबिक 2020 में इस तरह के गैरकानूनी पोस्ट्स पर 16 अरब व्यू थे. इससे साफ़ पता चलता है कि फेसबुक का सिक्योरिटी और बराबरी का नियम बस ड्रामा भर है. असल में मार्क जुकरबर्ग के लिए इन सब से ऊपर कंपनी का धंधा और मुनाफा है, जो बड़े फैनबेस वाले लोगों की पोस्ट्स से आता है.
“We make body image issues worse for one in three teen girls” “Social comparison is worse on Instagram.” – Instagram
इस दस्तावेज में यह बताया गया है कि किस तरह से इंस्टाग्राम किशोरावस्था के बच्चों (teens), खासतौर से टीनएज लड़कियों पर बुरा प्रभाव डाल रहा है. इंस्टाग्राम फिटनेस व सुंदरता संबंधी पोस्ट में बॉडी शेप और टोंड बॉडी को परफेक्शन और खुशी के रूप में दर्शाता है.
2018 में ब्रिटेन और अमेरिका के 2500 किशोरों पर रिसर्च के मुताबिक — जिनको आत्महत्या के विचार आते हैं आते हैं उनमें से 13 % ब्रिटिश और 6 % अमेरिकी यूजर्स ने बताया कि यह इंस्टाग्राम के कारण है. जिनको अकेलापन महसूस होता है, उनमें से 18 % ब्रिटिश और 21% अमेरिकी यूजर्स को यह इंस्टाग्राम के कारण लगता है. इंस्टाग्राम किशोरों की जिंदगी का एक ज़रूरी हिस्सा बन गया है. बच्चों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की परवाह न करते हुए इंस्टाग्राम इस पर न कोई बदलाव करता है और न ही यह डाटा सार्वजनिक करता है, जिससे लोगों में जागरूकता फैले. बल्कि इसको विश्वसनीय (confidential) रखा गया है. क्योंकि वे जानते हैं कि इस जानकारी से उनके यूजर्स कम हो सकते हैं. इससे इनकी मंशा साफ़ समझी जा सकती है. इनके लिए इंसानों से ज़्यादा ज़रूरी “यूजर्स” हैं जो इनका पैसा कमाने वाली मशीन की तरह हैं.
इंस्टाग्राम 13 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए ‘इंस्टाग्राम किड्स’ शुरू करने वाला है. फेसबुक कई सर्वे कर लगातार यह जानने की कोशिश करता आया है कि बच्चे किस तरह के फीचर, एप्स पसंद करते हैं. फेसबुक ने पाया कि मां बाप और बच्चों की राय और पसंद इस पर भिन्न है. उन्होंने रिसर्च में कि शुरू में बच्चे के फोन पर नि मां-बाप का नियंत्रण होता है. 10–13 की उम्र आते-आते यह नियंत्रण मां-बाप से शिफ्ट हो कर बच्चे पर जाने लगता है.
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इंस्टाग्राम का किशोरउम्र लड़कियों पर कितना घातक असर पड़ रहा है यह जानने के बावजूद अब 13 साल से कम उम्र के बच्चों को भी इसमें घसीटने की योजना बनाई जा रही है.
एक चार्ट में “वर्तमान” और “भविष्य” के दो कॉलम में दिखाया गया कि वर्तमान में तीन ग्रुप के यूजर्स हैं: Above 13 (तेरह वर्ष से ऊपर), Teens (किशोर) और Adult (व्यस्क). भविष्य में यह 6 ग्रुप में बंटा होगा : Young kids, Kids (बच्चे), Tweens, Teens (किशोर), Late teens (किशोरावस्था से ऊपर), और Adults (व्यस्क). इसमें चौकाने वाली बात है young kids की उम्र — 0 से 4 वर्ष. यानी पैदा होने के बाद से ही बच्चे इंस्टाग्राम इस्तेमाल करें. अपने यूजर्स बढ़ाने के लिए यह कंपनियां किसी भी हद तक जा सकती है.
यहां मैंने इन तीन दस्तावेजों के बारे में लिखा है. संपूर्णता में इन दस्तावेजों से पता चला कि कुछ ‘खास’ लोगों के लिए अलग नियम लागू करना कितना खतरनाक हो सकता है. कि सोशल मीडिया का किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर कितना बुरा असर पड़ता है और हर तीन में एक लड़की को ‘बॉडी इमेज इश्यू’ हैं. कि मानव तस्करी का धंधा आराम से फेसबुक द्वारा चलाया जाता है. सबसे जरूरी कि फेसबुक यह सब जानते हुए भी छुपा रहा है. काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
गाफा (GAFA) — गूगल, एप्पल, फेसबुक, अमेजन — के वैश्विक एकाधिकार (monopoly) से हम वाकिफ हैं. अब देशों/लोगों को नियंत्रित/शासित करने के लिए न्यूक्लियर वॉर की आवश्यकता नहीं, यह डिजिटल प्लेटफार्म से ही बैठे-बैठे किया जा रहा है. इसके अलावा हमने देखा कैसे एल्गोरिदम भी पक्षपात करते हैं. इससे हम समझ सकते है कि जब तक हमारे बीच वर्ग, नस्ल, रंग, जाति, लिंग का भेदभाव है तब तक तकनीक भी इसी भेदभाव से ग्रसित रहेगी.
इसलिए हमको दोनों मोर्चों पर लड़ने की जरूरत है :
तकनीक व सोशल मीडिया को लोकतांत्रिक, सुरक्षित बनाने और निजता की रक्षा (privacy protection) के लिए. गैरबराबरी को खत्म कर एक बेहतर समाज बनाने के लिए जिसमें तकनीक सच में जनता की बेहतरी के लिए इस्तेमाल की जाय, न कि चंद लोगों की जेब भरने के लिए.
इप्शिता बनारस हिन्दू विश्विद्यालय की छात्रा हैं. विभिन्न समसामयिक मुद्दों पर टिप्पणी करते रहने वाली इप्शिता भगत सिंह छात्र मोर्चा के साथ छात्र राजनीति में भी सक्रिय हैं.
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