दादि, दादि, दादि मि छूं पवन पहाड़ी… ठेठ पहाड़ी लटेक में कही गयी ये वो पंक्ति है जो शायद ही किसी कुमाऊनी परिवार में न सुनी गयी हो. पिथौरागढ़ जिले में एक छोटा सा गांव है कफलेत. गांव जाने के लिये दो तरफ से सड़क जाती है पहली थल-पांखू से दूसरी बेरीनाग-चौकोड़ी से. पहाड़ की अन्य सड़कों की तरह ये सड़क भी पहाड़ से बाहर निकलने का रास्ता तो देती है लेकिन लौटने के रास्ते बंद कर देती हैं. ऐसी ही सड़क के किनारे बसे कफलेत गांव से पवन पहाड़ी के वीडियो निकलते हैं. ख़ुद को ईजा का लाडला कहने वाला पवन पाठक आज घर-घर का लाडला पवन पहाड़ी बन गया है. हाल ही में पवन पहाड़ी यूट्यूब, चैनल पर 2 लाख सबस्क्राइबर वाले उत्तराखंड के पहले कॉमेडियन बन गये हैं. उनसे जानते हैं पवन पाठक से पवन पहाड़ी तक का सफ़र : सम्पादक
(Interview with Pawan Pahadi)
यूट्यूब चैनल की शुरुआत
गुड़गांव में नौकरी के बाद मैं हल्द्वानी रह रहा था वहां से एक दिन मैंने अपने परिवार के एक महिला संगीत में अपने डांस की वीडियो यूट्यूब में डाली थी. उसके पांच छः महीने बाद जब मैंने देखा तो उसके व्यूज हज़ारों में थे. मुझे लगा कि ऐसा और किया जाना चाहिये और वहीं से इसकी शुरुआत हुई. इसके बाद मैंने गांव से जुड़े हुए वो वीडियो डाले जिसे छोड़कर लोग शहरों में बसे थे. मैंने मोबाईल कैमरे से ही वीडियो बनाये. लोगों ने इसे खूब पसंद किया.
अपने गांव और परिवार के बारे में
मेरा गांव कफलेत है. पांखू कोटमन्या रोड में पांखू से एक डेढ़ किमी की दूरी पर है गांव. घर में ईजा-बाबू, आमा और छोटा भाई है. बाबू पहले प्राइवेट नौकरी करते थे अब गांव में ही खेती करते हैं. आमा के साथ ईजा-बाबू ने मिलकर घर में बढ़िया कारोबार बनाकर रखा. आय का स्त्रोत भी सालों से यही खेती ही हुआ.
आपकी शिक्षा और एक्टिंग की शुरुआत
इंटर तक पांखू से ही पढ़ाई की. फिर दौराहाट के पालटैक्निक कालेज में गया. वहां से फिर नौकरी के लिये गुड़गांव गया. एक साल वहां नौकरी की और सोया रहा. एक्टिंग की शुरुआत तो जैसे सारे पहाड़ी लड़कों की होती है वैसे ही हुई, स्कूल में पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी के कार्यक्रम पहली पाठशाला रहे. फिर रामलीला में बंदर से शुरु होकर अन्य किरदारों के पाठ ने इस ओर एक रुझान बना ही दिया था. कालेज के कार्यक्रमों में एंकरिंग ने अंदर के कलाकार को हमेशा जिन्दा ही रखा.
शुरुआत में आस-पास के लोगों की प्रतिक्रिया
पहले तो सबने ही छि-छि क्या खिचरौल लगा रखी है ही कहा. घर वाले भी क्या जानते हैं उतना. उन्होंने भी कहा सरकारी नौकरी की तैयारी कर पढ़ने का ध्यान कर. मैंने उसे इग्नोर किया क्योंकि मुझे पता था कि मैं क्या कर सकता हूँ. अब तो सब कहते हैं बढ़िया कर रहा है. ऐसा होता भी है जब कुछ नया करो तो सब तरह की बात करते ही हैं.
कॉमेडी के लिये कुमाऊनी को चुनना
दरसल मैं 18 साल गांव में रहा बीच के दो एक साल छोड़ दो तो फिर गांव ही रहा. हम यहां सब काम जब कुमाऊनी में करते हैं तो कॉमेडी भी कुमाऊनी में ही होगी. मुझे लगता है मेरे 5 मिनट के वीडियो से अगर मेरी उम्र का एक भी लड़का प्रभावित होकर कुमाऊनी में बोलता है तो मैं सही दिशा में हूँ. हम जो नि बोलेंगे तो कौन बोलेगा फिर. कुमाऊनी में स्क्रिप्ट बनाना भी मेरे लिये ज्यादा आसान है दूसरा ये कि हमारी कुमांऊनी इतनी समृद्ध है की यहां हर चीज के लिये अलग-अलग और शानदार शब्द हैं. कई सारे शब्द आम-बोलचाल में खो गये हैं जब वीडियो में लोग सुनते हैं तो एक जुड़ाव महसूस करने लगते हैं.
(Interview with Pawan Pahadi)
अपनी आमा के बारे में बताइये
आमा मेरे चैनल की स्टार है. कैमरे के सामने पहले गजबजी जाती थी आजकल थोड़ा सहज होने लगी है. मुझे जितना आता है उसमें आमा का हिस्सा सबसे ज्यादा है. आमा के पास एक से एक किस्से कहानियां रहती हैं.
आपके चैनल से दर्शकों के इस जुड़ाव का कारण
जहां तक मुझे लगता है लोग जो गांव में छोड़ आये हैं उसे मेरे चैनल में देखते हैं. कोई अपना घर गांव छोड़कर जो क्या जाना चाहता है न. दूर परदेश में सबको नराई लगने वाली हुई. गांव की जिन्दगी छोटी-छोटी ख़ुशी तीज त्यौहार जब वो देखते हैं तो अपने आप जुड़ाव महसूस करते हैं. लोग प्यार करने लगते हैं.
पहाड़ की संस्कृति के बारे में
मुझे लगता है जमीन पर काम किये जाने की जरूरत है. पहाड़ में तो अब भी सब होता ही है उसे सहेजने की जरूरत है. उसके बहुत से माध्यम हो सकते है. हां पहाड़ में अगर रोजगार होगा तो लोग रहेंगे और जब लोग रहेंगे तो संस्कृति अपने आप बची रहेगी. पहाड़ में पहले लोग बचाने पड़ेंगे लोग है तभी तो लोकसंस्कृति है.
(Interview with Pawan Pahadi)
आय के लिये पूरी तरह यूट्यूब पर निर्भर हैं?
नहीं पूरी तरह नहीं. कुछ समय पहले ‘पहाड़ी बाखली’ नाम से गांव में ही एक होमस्टे भी खोला है. अब तक पांच छः लोग आ चुके हैं. फ़िलहाल गांव में ही स्वरोजगार कर रहा हूँ. यहीं से यूट्यूब भी चल रहा है. वीडियो अपलोड यूट्यूब लाइव सब यहीं से चल रहा है.
पहाड़ी बाखली के बारे में यहां पढ़े:
(यूट्यूब स्टार पवन की पहाड़ी बाखली में मिलता है परम्परा और आधुनिकता का मेल)
एक छोटे से गांव से यूट्यूब स्टार के इस सफ़र को कैसे देखते हैं?
यूट्यूब स्टार तो मैं नहीं कहूंगा लेकिन अच्छा लगता है लोगों का प्यार देखकर, अच्छा लगता है जब कही आपको देखकर कुमाऊनी में बोलता है. जब छोटी छोटी उम्र के बच्चे भी आपसे मिलकर या वीडियो बनाकर अपनी टूटी-फूटी कुमाऊनी में अपना प्यार दर्शाते हैं तो लगता है कि शायद कुछ काम कर रहे हैं.
आपके उज्ज्वल भविष्य के लिये काफल ट्री की टीम की ओर से आपकी पूरी टीम को ढेरों शुभकामनाएं.
(Interview with Pawan Pahadi)
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…