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क्या सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा उत्तराखण्ड में चुनावी मुद्दा नहीं हो सकते?

आपका उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाकों में घर हो और अठारह सालों में पहाड़ की यात्रा में आपने कितने बार यह कहा है कि इस बार की सड़क यात्रा शानदार रही. पहाड़ की जीवनरेखा बताकर 1960 से हमारी जमीनें सरकारों ने लूटना शुरु किया और आड़े तिरछे सड़कों के जाल बिछाना शुरु किया. एक आंकड़ा देखिये

साल 2005 में उत्तराखंड में कुल सड़क हादसों की संख्या 1332 थी. इन 1332 सड़क हादसों में 868 लोगों की मौत हो गयी और 1841 घायल हो गये. 2018 में सड़क हादसों की संख्या 1468 थी और इनमें मरने वालों की संख्या 1047 वहीं घायलों की संख्या 1571 थी. 2019 के पहले दो महिनों में 228 सड़क हादसे हो चुकें हैं जिनमें लगभग 153 लोगों की मृत्यु हो चुकी है.

इसके बावजूद उत्तराखंड की राजनीति में सड़क सुरक्षा कभी मुद्दा ही नहीं बन पाया है. भाजपा और कांग्रेस दोनों के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के भरोसे हैं. भाजपा उम्मीदवार नरेंद्र मोदी से उम्मीद कर रहे हैं कि आज मोदी कोई नया नारा देंगे और कांग्रेस उम्मीदवार उम्मीद में है कि उसका जवाब हम देंगे.

उत्तराखंड में 2019 का चुनाव बिना किसी मुद्दे के लड़ा जा रहा है प्रदेश के मुख्यमंत्री स्वयं कह रहे हैं कि प्रत्याशी नरेंद्र मोदी का चेहरा लेकर लोगों के बीच जायें. उत्तराखंड में वर्तमान पांचों सांसद भाजपा के हैं फिर क्यों वाराणसी सीट के उम्मीदवार के चेहरे की आवश्यकता उत्तराखंड की सीटों पर है?

अल्मोड़ा, नैनीताल, पौड़ी, हरिद्वार और टिहरी के सांसद क्यों जनता के बीच जाकर नहीं बताते की सांसद निधि ने उन्होंने लोगों के लिए कितने काम किए? क्यों नहीं बताते की आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद लिया उनका गांव कितना आदर्श बना है? क्यों ये पांचों सांसद लोगों के बीच जाकर बतलाते कि संसद में कितने बार उन्होंने प्रश्नकाल में अपनी लोकसभा सीट के मुद्दे उठाये हैं?

प्रत्येक साल होली, दिवाली, गर्मियों या सर्दियों की छुट्टी के बाद पहाड़ी अपने घरों को जाते हैं या वहां से लौटते हैं तो उनके साथ जो अमानवीय व्यवहार किया जाता है उससे कौन परिचित नहीं है? पहाड़ में आज भी हर हफ्ते किसी न किसी की मौत की वजह खराब स्वास्थ्य सुविधा होती है?

पहाड़ी राज्य की संकल्पना के साथ 18 साल पहले बना उत्तराखंड आज भी उन्हीं समस्याओं से घिरा है जिससे 18 साल पहले घिरा था. स्कूली शिक्षा के लिए देश भर से लोग उत्तराखंड के स्कूलों में पढ़ने आते हैं लेकिन इनकी फीस इतनी होती है कि राज्य के आम आदमी के लिए इन स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाना सपने जैसा ही है.

उच्च शिक्षा के लिए आज भी यहां का युवा बाहर ही जाता है. शिक्षित युवा के लिए राज्य में कोई रोजगार नहीं है. रही सही खेती जो यहां थी वहां या तो बांध प्रस्तावित हैं या बंदरों के प्रकोप में हैं.

शुकर है नीति आयोग का कि उसने बीमारू राज्य जैसा शब्द ही अपनी डिक्शनरी से हटा दिया वरना हम हमेशा ही बीमारु रहते है. विशेष राज्य कहना अच्छा लगता है इसलिए हम विशेष ही हैं.

लोकसभा सांसदों का चुनाव है. संसद के भीतर प्रधानमंत्री और सांसद दोनों समान हैं. प्रधानमंत्री भले कोई हो लेकिन प्रतिनिधित्व ऐसे व्यक्ति के पास होना चाहिए जो अपने क्षेत्र की बुलंद आवाज संसद में उठा सकता है. राष्ट्र के सम्मुख अपने क्षेत्र के लोगों की बात रख सकता है अपने लोगों का प्रतिनिधित्व कर सकता हो.

पढ़िये उत्तराखंड के बड़े नेता कैसी व्यक्तिगत टिप्पणी कर रहे हैं- नैनीताल लोकसभा सीट में उज्याड़ खाणी बल्द और यकलू बानर हैं मुद्दे

-गिरीश लोहनी

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Girish Lohani

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