अल्मोड़ा नगर में पुतले बनाने की परंपरा की शुरूआत कब हुई इसके बारे में कुछ पता नहीं है हुक्का क्लब अल्मोड़ा से निकलने वाली पत्रिका ‘पुरवासी’ के एक अंक में 1930 में बनाए गए रावण के पुतले का फोटो प्रकाशित हुआ जिसके बाद माना गया कि अल्मोड़ा में दशहरे के पुतले बनान की परंपरा 1930 से ही शुरू हुई होगी. शुरुआती दौर में सिर्फ रावण का पुतला ही बनाया जाता था पर फिर अल्मोड़ा के लाला बाजार, जौहरी मोहल्ला, मल्ली बाजार सहित कुछ जगहों पर पांच-छह पुतले बनने शुरू हुए और उसके बाद से पुतलों की संख्या में बढ़ोतरी होती रही और अब लगभग 28 पुतले तक बनाए जा रहे हैं. अब अल्मोड़ा में दशहरा महोत्सव समिति बन गयी है जिसके अंतर्गत विभिन्न मोहल्लों में पुतलों का निर्माण किया जाता है.
कुछ मोहल्लों और बाजारों को पहले से ही पुतले आवंटित किये गये हैं. जैसे लाला बाजार की पुतला समिति — रावण, त्रिपुरा सुंदरी – अहिरावण, हुक्का क्लब — ताड़िका, जौहरी बाजार — कुंभकर्ण, थाना बाजार — मेघनाद, राजपुरा — देवांतक, धारानौला — प्रहस्त का पुतला बनाती है. इसके अलावा भी कई अन्य पुतला कमेटियां अलग-अलग राक्षसों के पुतले तैयार करती हैं.
कलात्मकता की दृष्टि से ये पुतले काफी सुंदर होते हैं. इन पुतलों को स्थानीय कलाकार बनाते हैं और पुतलों के साज—सज्जा को बहुत ध्यान रखते हैं. अल्मोड़ा में पुतलों का निर्माण बाँस खपच्चियों से नहीं होता है बल्कि ऐंगिल अचरन के फ्रेम पर पुतलों का निर्माण होता है. पुतलों में पराल भरकर उसे बोरे में सिल देते हैं और फिर मनचाही आकृति दे देते हैं. पुतलों का पूरा धड़ एक साथ बनता है बस चेहरा अलग से लगाया जाता है और फिर पुतलों को वस्त्रों और आभूषणों से सजाया जाता है.
पुतलों के निर्माण में बच्चे भी हिस्सा लेते हैं और अपने पुतले बनाते हैं. शाम के समय इन पुतलों की परेड शहर में निकाली जाती है और फिर रामलीला ग्राउंड में रात्री के समय इन पुतलों का दहन कर दिया जाता है.
अलग अंदाज में दशहरा मनाने के कारण अल्मोड़ा का दशहरा विश्व प्रसिद्ध हो चुका है जिसे देखने के लिये भारी संख्या में लोग बाहर से अल्मोड़ा पहुंचते हैं. पिछले साल अल्मोड़ा में दशहरे की कुछ तस्वीरें.
विनीता यशस्वी
विनीता यशस्वी नैनीताल में रहती हैं. यात्रा और फोटोग्राफी की शौकीन विनीता यशस्वी पिछले एक दशक से नैनीताल समाचार से जुड़ी हैं.
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