समाज

नालायक समझे जाने वाले ड्राइवरों के बिना पहाड़ का जीवन मुश्किल है

17 और 19 का पहाड़ा न याद होने से हमें जिन्दगी के शुरुआत में ही करियर के दो विकल्प मिल चुके थे. पहला डुट्याल का, दूसरा ड्राइवर का. एलिफेन्ट की स्पेलिंग ने इस बात पर पक्की मोहर लगा दी थी कि हमने बड़े होकर डुट्याल या ड्राइवर में से ही कुछ बनना है.
(Driver’s in Uttarakhand)

उन दिनों स्कूल की नई बिल्डिंग बन रही थी और वहां लगे डुट्याल दाई की मेहनत देखकर यह विकल्प कभी जगह ही नहीं बना पाया. बाक़ी का पता नहीं हम तीन-एक का सपना अब बड़े होकर ड्राइवर बनने का पक्का होता जा रहा था. पठति, पठतः, पठन्ति की रोज की मार हमारे ड्राइवरी के सपने को दिन पर दिन मजबूत करती जा रही थी.

स्कूल आते जाते हमारी ड्राइविंग की ट्रेनिंग भी चालू हो चुकी थी. स्कूल में पढ़ाये जाने वाले किसी भी पाठ से आसान था –

आ…ओ हल्द्वानी-अल्मोड़ा-हल्द्वानी, आ…ओ थल-नाचनी-थल, आ…ओ लोहाघाट-चम्पावत-टनकपुर, वड्डा-झूलाघाट एक सीट-एक सीट…

इस शुरूआती पाठ को सप्ताह भर में कंठस्थ करने के बाद हमने मीठी सुपारी मुंह में ठूसकर लाल पीक ख़ास तरीके से दोनों दाँतों के बीच से निकालने का अभ्यास शुरु किया था. जिसके बाद लकड़ी जलाकर मुंह से धुँआ छोड़ने वाला सबसे जटिल पाठ हमारा इंतजार कर रहा था.

लाल पीक के अभ्यास के दौरान हम स्कूल में पकड़े गये. लाल पीक को ख़ास तरीके से निकालना तो कभी नहीं सीख पाये लेकिन हाथों में मार के लाल निशान ने ड्राईवरी में करियर का स्कोप जरुर खत्म कर दिया. पहाड़ में एक समय बच्चों का सपना हुआ करता था बड़े होकर ड्राइवर बनना.

हमारे पहाड़ में सबसे नालायक समझे जाने वाले इन ड्राइवरों के बिना पहाड़ का जीवन सोचना मुश्किल है. न जाने कितने बच्चे जन्म के समय केवल इसलिये बच पाये हैं क्योंकि उसके पड़ोस या गांव में कोई ड्राइवर मौजूद था. बड़े सारे बूढ़े और जवान पहाड़ में इसलिये खुशकिस्मत हैं कि उनके गांव में कुछ ड्राइवर हैं. (Driver’s in Uttarakhand)

पहाड़ में ड्राइवरों की बदौलत ही दीवाली और होली में अधिकतर पहाड़ी अपने घरों में समय पर होते हैं. चार दिन की छुट्टी के लिये पहाड़ जाने वाली प्रवासी जनता ने ड्राइवरों को खूब तौहमते दी हैं. त्योहार के दिनों लगातार चलने वाले उनकी गाड़ियों के पहिये अधिकांश प्रवासियों के आँखों को नहीं भाते हैं.

न तेल की बड़ी कीमत दिखती है न कभी ये सूझता है कि साल भर धीमें चलने वाले इन पहियों ने उनके पहाड़ से जीवन को कैसे थाम रखा है.

अच्छे और बुरे लोग हर व्यवसाय में होते हैं. दस सालों की एक छुट्टी में मिला एक खराब ड्राइवर इन सालों में मिले दसियों हंसमुख, मसखरे और मजबूत जिगरे वाले पहाड़ी ड्राइवर के सारे एहसान भुला देता है. एहसान ही तो है न बदनाम होने के बाद भी पहाड़ को अपनी पूरी जवानी देने वाले इस ड्राइवर की ड्राइवरी. (Driver’s in Uttarakhand)

-गिरीश लोहनी

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago