Featured

छिपला जात में स्वर्ग जाने का रास्ता

छिपला के दक्षिणी ढाल में भैमण गुफा में सभी यात्री अँधेरे में ही जाग कर आगे की यात्रा के लिए चल पड़े. हम इस लम्बी कतार में कहीं बीच में थे. गुफा के भीतर बुग्याल की नर्म घास बिछी थी लेकिन जैसे ही गुफा से बाहर निकले कठोर पत्थरों पर पड़े पाले को छूते ही पैरों में दर्द की तेज लहर उठी. दस कदम चलते-चलते लगा कि कहीं यहां आकर गलती तो नहीं कर दी? लेकिन छिपला के बुग्याल का आकर्षण दिमाग पर हावी था और इतनी भीड़ में छोटे-छोटे बच्चे और बूढ़े बुजुर्ग भी तो थे उन्हें देखकर जोश बढ़ने लगा और धीरे-धीरे पूरा दल गुफा से निकल कर पथरीले रास्ते में चल पड़ा. कुछ ही देर में इस ठण्ड ने पैर सुन्न कर दिए और अब चलने में कोई तकलीफ न थी. ठण्ड और दर्द का एहसास अब गायब हो चुका था.
(Chhipla Jaat Travelogue Kedar Kund)

हलकी चढ़ाई पार कर हम एक कम पथरीले और अधिक घास वाली ढलान में पंहुचे. अँधेरा छंटने लगा था. यहाँ पर एक झोपड़ी का ढांचा नजर आया. भुप्पी ने बताया कि यह भटियाखान है. इस दीवार के ढांचे पर घास की छत दाल कर अण्वाल डेरा डालते हैं और बरसातों में अपनी भेड़ों को आसपास के बुग्यालों में चराते हैं. कभी-कभी भैमण गुफा में भी अण्वाल रहते हैं. भटियाखान से यात्रा का मार्ग लगभग तिरछा सा है. हमें अपने आगे और पीछे जहाँ तक दिख रहा था यात्रियों की पंक्ति ही थी. कोई लाइन तोड़ता तो बीच बीच से कुछ आवाजें आती. बबलापुर नहीं… फिर होते जयघोष
छिपला केदार की जय…
कल्पसा भडों की जय…
कोकिला कनार की जय….


बीच-बीच में भंकौर और शंख गूँज उठते.

भटियाखान से आगे एक लम्बे तिरछे रास्ते में चलने के बाद यात्रा अचानक एक खड़ी पहाड़ी पर चढ़ती है. एकदम डरावनी पतली सी धार पर मोड़दार रास्ता. लेकिन कहीं भी यात्रा को बहुत तकलीफ नहीं दिखी. अब तक धूप इस पूरे इलाके को सुनहरा कर चुकी थी और बुग्यालों की घास से ओस गायब हो रही थी. हम खड़ी ढाल को पार कर एक ऐसी ऊंचाई पर पंहुचे जहाँ से एक तरफ मुनस्यारी का पूरा इलाका नजर आता है तो दूसरी और अस्कोट-सीरा-गर्खा का इलाका. यहाँ से घनधुरा, ध्वज, लोड़ी, द्योचुला और सीराकोट के पहाड़ आसानी से पहचाने जाते हैं. नीचे गोरी की बलखाती घाटी का नजारा भी शानदार होता है. यहां से एक और तिरछा रास्ता यात्रा के पडाव में आता है. इस जगह हो तेजम ख्या कहते हैं.

पहाड़ी पर गहरी नालीनुमा खाइयां कुदरती तौर पर बनी हैं लेकिन इससे जुड़ी है कगरौल और पासीभाट के सात दिन और सात रात तक चले भीषण द्वंद्व युद्ध की कहानी. यहाँ पर यात्रा को रोक कर सयाने पुजारी एक-एक कायदे को बहुत बारीकी से समझाते हैं. जितनी भी बातें उन्होंने कही उनमें सबसे ज्यादा जोर देकर जो बात कही वह थी कि किसी भी फूल, पत्ती, पौधे या जड़ को छूना, तोड़ना और सूंघना सख्त मना है. बड़ी रोचक बात पता चली कि कुछ यात्री इस बात को नहीं मानते और पौधें तोड़ते मसलते चलते हैं. अगर इन पौधों की मादक खुशबू अधिक ले ली तो आगे चल पाना मुश्किल हो जाता है. हर यात्रा में एक दो यात्री ऐसे होते ही हैं जो इस खड़ी चढ़ाई में हिम्मत खोकर बैठ जाते हैं. अधिकाँश पौधों की खुशबू से घायल होते हैं.

तेजम ख्या के बाद जिस रास्ते पर चलना था उसे देखकर अच्छे खासों की हिम्मत जवाब दे सकती है. सामने एकदम खड़ी चढ़ाई, इतनी खड़ी कि आम तौर पर वैसी ढलानों में कोई रास्ते होते ही नहीं. लगभग अस्सी अंश तक की खड़ी चढ़ाई. नाम है सर्गनिशानी यानि स्वर्ग जाने का रास्ता.

अपने नाम के अनुरूप जमीन को आसमां से जोड़ता प्रतीत होता. यहाँ पर यात्रा बहुत मंद क़दमों से चढ़ती है. इस भीषण चढ़ाई में भी रास्ता ऐसा जैसे तलवार की धार पर चल रहे हों. दोनों तरफ इतनी गहरी खाई कि नजर भी पूरी तरह वहां नहीं पंहुच पाती. अगर इतनी बड़ी पंक्ति न चल रही हो तो अकेले व्यक्ति के लिए इसे पार करना बहुत मुश्किल होगा. कुछ-कुछ जगहों पर तो इतना खतरनाक रास्ता है कि पाँव कांपने लग जाते हैं.

सर्गनिशानी को पार करने में ख़ासा समय लग गया. इस बीच भुप्पी और जित्तू हमारे साथ ही थे. एक-एक चीज बताते, हमें रास्ते को पार करने में मदद करते. बीच-बीच में ग्लूकोज का पानी हमारा सहारा था क्योंकि आज सबने पूजा करनी थी इसलिए सब खाली पेट ही आये थे. हमारे देखते-देखते एक दो यात्री सर पकड़ कर बैठ गए. इन्होंने कोई जड़ निकाल ली थी और उसकी खुशबू सूंघने के उनका सर भन्ना गया.

इस चढ़ाई को पार कर बांये हाथ की और एक पथरीले ढाल में यात्रा मुड़ी. इस ढाल में धूप कम पड़ती है इसलिए कुछ बर्फ भी पत्थरों की ओट में छिपी हुई थी. चढ़ाई चढने में जो पसीना आया अब वह शरीर को तेजी से ठंडा कर रहा था. फिर एक और चढ़ाई के बाद यात्रा एक स्थान पर रुकी और पुजारियों में यहाँ पूजा की.
(Chhipla Jaat Travelogue Kedar Kund)

नंदा सिक्दे, यह नाम था इस पडाव का. चारों और पत्थर की पत्थर. यहां आगे उल्ट उकाल में जैसे पत्थरों की गंगा बह रही हो. यहाँ पर भी केदार की च्यार्मियों से भीषण युद्ध की कहानी कही जाती है. च्यार्मी ऊपर से पत्थर बरसाते और वह वीर अपने जादू और बल से उन पत्थरों को ऊपर को दौड़ा देता. तब से ये उलटे भूस्खलन जैसे दिखने वाला पत्थरों का रौखड इस कहानी से जुड़ गया.

यहाँ से यात्रा आगे बड़ी तो बहुत मजेदार रिचुअल होता दिखा. दिखा क्या उसमें भाग भी लिया. धौड़ काटना. सामने पचास मीटर ऊंची एक खड़ी चढ़ाई में ऊपर एक ध्वज लगा था. यात्री जोश से दौड़ते हुए जाते और उड़ झंडे को छू कर आते. लेकिन यह धौड़ कोई अपने लिए नहीं काटता. आप अपने लिए किसी को पैसे देकर धौड़ कटवा सकते हैं. यह इस थकाऊ यात्रा में जोश भरने का जबरदस्त लम्हा होता है. लेकिन इस रिचुअल का महत्व तब पता चलता है जब यहाँ से रास्ता पहाड़ी के दुसरे ढाल में प्रवेश करता है.

एकदम बादलों में चलने का एहसास होता है यहाँ. क़दमों के नीचे बहुत दूर कनार का इलाका नजर आता है. ऐसा जैसे कि अगर गिरों तो वहीं पंहुचो. बादल पैरों के नीचे होते हैं. रास्ते में नाम पर सदियों से बने क़दमों के निशानों की एक पतली सी डोर. यह टुकड़ा अधिक लम्बा नहीं लेकिन पूरे रास्ते में सबसे खतरनाक जगह यही लगती है. छोटी की चूक भी जानलेवा साबित होती. यहाँ संभालें और बचने का कोई चांस है ही नहीं. इस हिस्से को पार करते ही आप स्वर्ग में होते हैं.

पहाड़ी के दुसरे ढाल में प्रवेश करते ही हमारे सामने होता है छिपला का भव्य बुग्याल. पैरों के नीचे इतनी नर्म घास कि रास्ते भर का दर्द और थकान कहीं खो जाते हैं. यहाँ से थोड़ी दूरी पर है कगरौल कुंड, उस वीर कगरौल के नाम का ताल जिसने पासिभाट को तेजम खया में धुल चटाई थी. यह छोटा सा लेकिन बड़ा गहरे रंग का ताल है जो सब तरफ से पत्थरों और बड़ी-बड़ी चट्टानों से घिरा है. यहाँ कुछ देर विश्राम में बाद यात्रा केदार कुंड की और बढती है जो यहाँ से किलोमीटर भर दूरी पर होगा. यहाँ चलना बड़ा मजेदार लग रहा था. क़दमों में नीचे बहुत नर्म बुग्याल था और सामने मंजिल. इस विशाल बुग्याल में छोटे बड़े बहुत से कुंड हैं. इनमें बरम कुंड, पटौद कुंड, नाजुरी कुंड और केदार कुंड प्रमुख हैं. केदार कुंड में यह यात्रा अपनी मंजिल पाती है. यहाँ पर नौलधप्प्यों का मुंडन हुआ और लोगों ने पुरखों को तर्पण दिया. ताल की परिक्रमा हुई, ककड़ी, घोघे की सौगात चढ़ाई और कुछ देर विश्राम किया.
(Chhipla Jaat Travelogue Kedar Kund)

यहाँ पर आकर मन अपने दायरों को तोड़ बाहर आ जाता है और प्रकृति की विराटता के सम्मुख आत्मसमर्पण कर देता है. मेरे लिए यह यात्रा कभी धार्मिक अनुभव न बन सकी क्योंकि धर्म ने प्रकृति को भी भेदभाव का जरिया बना दिया है. इस यात्रा में कोई महिला न थी. इसलिए नहीं कि कोई महिला इस कठिन यात्रा को नहीं कर सकती, महज इसलिए क्योंकि धर्म महिला के पैरों को अपने कायदों से बाँध देता है और यह यात्रा महिलाओं के लिए वर्जित है. कोई शिल्पकार यहाँ नहीं जा सकता क्योंकि उनको जाने ही नहीं दिया जाता और यह सब धर्म के ही नाम पर होता है. कितना अजीब है यह सब कि प्रकृति की शक्तियों के अधीन हम लोग आधी प्रकृति को ही इससे वंचित कर देते हैं.

वापसी के सफ़र में सब तेजी से लौटे और रात होते होते गुफा में पंहुचे. थकान इतनी थी कि खाना भी खाया न गया. कब सोये पता नहीं. अगली सुबह भुप्पी के साथ नीचे को निकल आये. नौ बजे तक भुप्पी के घर में थे. अम्मा देहली पर बैठी रास्ता देख रही थी. उन्होंने बड़े प्रेम से खाना खिलाया और आराम करने को कहने लगी. उन्हें पूरी उम्मीद थी कि हम आज उनके घर रुकेंगे लेकिन हमें तो निकलना था उस दौड़ में जो आज तक चल ही रही है. हम उस दिन वहां से निकल तो आये लेकिन मन का एक टुकड़ा यहीं रह गया. इस परिवार के ऐसा प्रेम हुआ कि फिर वहां जाता ही रहा. एक साल बाद ही छोटा सा भुप्पी दूल्हा बना तो उसकी बरात में एक और रोमांचक यात्रा हुई. उसकी बात फिर कभी…
(Chhipla Jaat Travelogue Kedar Kund)

पिछली कड़ी : भैमण गुफा में अण्वाल की रसोई का लजीज आलू का थेचुवा और रोटियां

कनार में अम्मा
लॉकडाउन के चौबीसवें दिन विनोद द्वारा बनाई गयी पेंटिंग.

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

विनोद उप्रेती

पिथौरागढ़ में रहने वाले विनोद उप्रेती शिक्षा के पेशे से जुड़े हैं. फोटोग्राफी शौक रखने वाले विनोद ने उच्च हिमालयी क्षेत्रों की अनेक यात्राएं की हैं और उनका गद्य बहुत सुन्दर है. विनोद को जानने वाले उनके आला दर्जे के सेन्स ऑफ़ ह्यूमर से वाकिफ हैं.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

‘राजुला मालूशाही’ ख्वाबों में बनी एक प्रेम कहानी

कोक स्टूडियो में, कमला देवी, नेहा कक्कड़ और नितेश बिष्ट (हुड़का) की बंदगी में कुमाऊं…

12 hours ago

भूत की चुटिया हाथ

लोगों के नौनिहाल स्कूल पढ़ने जाते और गब्दू गुएरों (ग्वालों) के साथ गुच्छी खेलने सामने…

2 days ago

यूट्यूब में ट्रेंड हो रहा है कुमाऊनी गाना

यूट्यूब के ट्रेंडिंग चार्ट में एक गीत ट्रेंड हो रहा है सोनचड़ी. बागेश्वर की कमला…

2 days ago

पहाड़ों में मत्स्य आखेट

गर्मियों का सीजन शुरू होते ही पहाड़ के गाड़-गधेरों में मछुआरें अक्सर दिखने शुरू हो…

3 days ago

छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : जिंदगानी के सफर में हम भी तेरे हमसफ़र हैं

पिछली कड़ी : छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : दिशाएं देखो रंग भरी, चमक भरी उमंग भरी हम…

3 days ago

स्वयं प्रकाश की कहानी: बलि

घनी हरियाली थी, जहां उसके बचपन का गाँव था. साल, शीशम, आम, कटहल और महुए…

4 days ago