समाज

गंगोलीहाट की डॉ. सविता जोशी जो गुड़गांव में गेरु और बिस्वार से ऐपण बना कर देश और दुनिया में अपनी संस्कृति को लोकप्रिय बना रही हैं

ऐपण हमारी परवरिश का एक हिस्सा रहा है जो बाद में केवल महिलाओं और लड़कियों तक सीमित रह गया. ऐपण का मतलब है लीपना. लीप शब्द का अर्थ है अंगुलियों से रंगने से है. गेरु की पृष्ठभूमि पर बिस्वार अथवा कमेछ मिट्टी से विभिन्न अलंकरण किये जाते हैं. ऐपण के विषय त्योहार अथवा अनुष्ठान की पूर्व निर्धारित परंपरा से तय होते हैं, इस बात का मतलब यह है कि आप किसी भी ऐपण में अपनी कोई भी आकृति का प्रयोग नहीं कर सकते हैं. युवा लड़कियों द्वारा पेंट और ब्रश से बने ऐपण बनाकर अपनी संस्कृति को बचाने के लिये किये जा रहे प्रयास सराहनीय हैं. ऐसे प्रयास करने वालों में एक युवा नाम है गुड़गांव में रहने वाली डॉ. सविता जोशी का. (Dr. Svita Joshi Aipn Enthusiast)

फेसबुक और इंस्टाग्राम पर आपको ऐपण_एन्थुयास्ट (aipn_enthusiast) नाम से एक प्रोफाईल मिलेगी. यह प्रोफाइल गंगोलीहाट में रहने वाली डॉ. सविता जोशी की है. वर्तमान में सविता गुड़गांव में अपने परिवार के साथ रह रही हैं. डॉ सविता बताती हैं कि मूलरूप से वह गंगोलीहाट के पोखरी गांव की रहने वाली हैं और वर्तमान में गुड़गांव में रह रही हैं. (Dr. Svita Joshi Aipn Enthusiast)

डॉ सविता पिछले चार सालों से गुड़गांव में रह रही हैं. गुड़गांव में रहकर वह अपने घर में प्रत्येक कुमाऊंनी त्योहार पर गेरु और बिस्वार से अपनी घर की देली में ऐपण डालती हैं. काफल ट्री से बातचीत के दौरान डॉ सविता ने बताया कि

हमें बचपन से हमारी ईजा ने घर पर सिखाया है कि हर त्योहार में अपने आंगन में ऐपण डालने चाहिये. शादी के पड़ जब मैं गुड़गांव आई तो मैंने अपने घर में अपनी परम्परा को जारी रखा. यहां हमारे पक्के मकान की देली में मार्बल के ऊपर मैंने गेरु और बिस्वार से ऐपण डाले. मैं अपने मायके से गेरु लाई थी, बिस्वार घर पर ही चावल को भीगोकर बनाया. अब तो गेरु ऑनलाइन भी मिल जाता है.

डॉ सविता बताती हैं कि अभी के समय में जो ऐपण बन रहे हैं वह पेन्ट और ब्रश से बन रहे हैं, लेकिन जो ऐपण का मूल स्वरूप है वह लगभग विलुप्ति की कगार पर है, अब शायद गांव-घरों में बूढी औरेतें ही हाथ की उंगलियों से ऐपण डालती होंगी. मैं चाहती हूं की लोग उस पारंपरिक ऐपण को न भूलें.

डॉ सविता अभी के समय पेन्ट से बने दिये, नेम-प्लेट, पेपर पेंटिंग बना रही हैं. डॉ सविता बताती हैं कि कुछ साल पहले मैंने अपने घर के बाहर ऐपण से बना एक नेम-प्लेट बनाया था, बेसिक्ली इस तरह की नेम-प्लेट आपको पहचान देता है कि आप उत्तराखंड से हैं. इसे देखकर काफ़ी लोग प्रभावित हुये और मैंने बाकि लोगों के लिये भी यह बनाया. पिछले साल मैंने इन्सटाग्राम प्रोफाइल बनाकर उसमें वीडियो और फोटो डालने शुरू किये, लोगों को बहुत पसंद आया. इसके बाद मैंने ऐपण से जुड़े कुछ कमर्शियल काम भी किये. इनमें हाल ही में मैंने ऐपण वाले दीये बनाये थे, काफ़ी सारी पेपर पेंटिंग भी बनाई थी. मुझे लगता है युवा लोगों के लिये यह रोजगार का भी एक माध्यम बन सकता है.

परिवार द्वारा सहयोग के विषय में डॉ. सविता जोशी कहती हैं कि मुझे जो कुछ सीखने को मिला है मेरी ईजा से मिला है और अपने गांव से मिला है. मेरा पूरा परिवार मुझे इसके लिये खूब प्रोत्साहित करता है.

फ़िलहाल गुड़गांव में रहते हुये डॉ. सविता अपने इस काम को अपने घर से ही व्यावसायिक रूप में कर रही हैं और देश और दुनिया में उनके बनाये ऐपण लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं.

जनेऊ चौकी
नामकरण चौकी
श्रीयंत्र
शिव की चौकी

aipn_enthusiast से उनके प्रोडक्ट आप उनके फेसबुक पेज Aipan Art by Savita Joshi से भी मंगा सकते हैं. Aipan Enthusiast के यूट्यूब चैनल पर डॉ. सविता जोशी के वीडियो आप यहां देख सकते हैं :

(काफल ट्री के लिए  डॉ. सविता जोशी से गिरीश लोहनी की बातचीत पर आधारित)         

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Girish Lohani

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