फ़ोटो: www.theguardian.com से साभार
अतुल अग्रवाल हल्द्वानी में रहते हैं. एक समय छात्र राजनीति में सक्रिय रहे अतुल फिलहाल हल्द्वानी में अपना व्यवसाय चलाते हैं.
केरल राज्य एक अभूतपूर्व, अप्रत्याशित बाढ़ की विभीषिका का सामना कर रहा है जिसमें 350 से ज्यादा लोगों की जानें जा चुकी हैं. हजारों लोगों को बेघर होना पड़ा है और लाखों लोग अनेक स्थानों पर फंसे हुए हैं.
अनेक बाधाओं के बावजूद हमारी सेना, राष्ट्रीय आपदा राहत बल, केंद्र व् राज्य सरकार बाढ़ राहत के लिए युद्धस्तर पर कार्य कर रहे हैं. इनके साथ-साथ बड़ी संख्या में आमजन, और अनेक सामाजिक, धार्मिक एवं स्वयंसेवी संगठन अपनी जान को जोखिम में डालते हुए पीड़ितों के लिए बचाव और राहत के कार्य में दृढ़तापूर्वक सहयोग कर रहे हैं.
बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा में बचाव कार्य मे सबसे पहले बाढ़ में फंसे लोगों को निकाल कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना, फिर राहत शिविरों का मैनेजमेंट करना,आवश्यक वस्तुओं को पीड़ितों तक पहुंचाना उनका वितरण करना और फिर जब बाढ़ का पानी उतरे तो तबाही के निशानों को दुरुस्त करना, पुनःनिर्माण करना. जगह जगह जो मलवे के ढेर लगे होते हैं उसे साफ कर ज़िंदगी को पुनः ढर्रे पर लाना होता है. इन सब के लिए धन की तो आवश्यकता पड़ती ही है साथ मे प्रशिक्षित वालंटियर्स की उपलब्धता भी महत्वपूर्ण होती है.
अफसोस कि भारत में आपदा से बचाव के लिए प्रशिक्षित वालंटियर्स का सर्वथा अभाव रहता है. वालंटियर्स को तात्कालिक प्रशिक्षण देकर आपदा प्रबंधन और सहायता में उतारा जा सके इसके लिए कोई व्यवस्था मौजूद नहीं है. आरएसएस , सेवा भारती , सिखों के धार्मिक संगठनों को एक संगठन के रूप में नियोजित काम करने का अभ्यास होता है और यह सभी ऐसी आपदाओं में हमेशा सहायता के लिए उतरते भी हैं पर अनेक दूसरे वालंटियर्स मन से चाहते हुए भी यह नहीं समझ पाते कि काम कैसे और कहां शुरू करना है.
सरकार को आपदा संबंधी रिसर्च पर कार्य करना चाहिए, स्कूल और कॉलेज लेवल पर इसके लिए आवश्यक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और देश के विभिन्न क्षेत्रों में आने वाली विशेष प्रकार की आपदाओं के लिए विशिष्ट रणनीतियां बनानी चाहिए.
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