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इतिहास रावत कौम का दूसरा हिस्सा – पंडित नैनसिंह रावत की डायरी

तिब्बत का पहला भौगोलिक अन्वेषण करने वाले उन्नीसवीं शताब्दी के महानतम अन्वेषकों में से एक माने जाने वाले मुनस्यारी की जोहार घाटी के मिलम गाँव के निवासी पंडित नैनसिंह रावत के बारे में एक लंबा लेख काफल ट्री पर पहले प्रकाशित हो चुका है. लिख का लिंक यह रहा – पंडित नैनसिंह रावत : घुमन्तू चरवाहे से महापंडित तक

पढ़िए इन्हीं पंडित नैनसिंह रावत की डायरी का अगला भाग.

(पिछले भाग का लिंक: इतिहास रावत कौम का पहला हिस्सा – पंडित नैनसिंह रावत की डायरी)

भाग 2: इतिहास रावत कौम

कहते हैं कि दावा के राजा बोतछोगेल सूर्यवंशी राजाओं के खानदान से था. उसके समय में मुल्क तिब्बत बादशाह चीन के आधीन नहीं था बलके मुल्क तिब्बत में बहुत से राजे अलग अलग राज्य करते थे. ल्हासा में लामाओं का राज्य कायम हो गया था और राजा बोतछोगेल हूण देश का औलाद न था. इसलिये अपने जीते जी अपना राज डरीकुरसुम का ल्हासा के लामा राजा को सौंप कर मर गया. तब से यह ङरीकुरसुम ल्हासा के आधीन हो गया. धाम सिंह रावत के जुहार में आने के बाद यह पट्टी बहुत बस गया और व्योपार की भी कुछ कुछ तरक्की होने लगा. हूणदेश हुणिये नमक ऊन लेकर बहुत आते. राजा बोतछोगेल के सनद मुताबक ऊन नमक के व्योपार में दसवां हिस्सा जो हूणियों से लिया जाता धाम सिह रावत को मिलता. कहां जुहार वाले व्योपार के माल में दसवां हिस्सा राजा बोतछोगेल को देते थे अब धाम सिह रावत ने उस महसूल को मुआफ करा कर हूणिया लोगों से नमक सुहागा के व्योपार में दसवां हिस्स महसूला (-) मिलम में आप लेने का दस्तूर करवाई. ऐसे नेक काम करने से धाम सिंह रावत को जुहार के हर देश के रईस सब चाहने लगें सब जुहार वालों के सिरगिरोह थे.

फेटांग वजन में छः आने भर होता हैं जिसे हूणिया बोली में सरस्यो कहते हैं .

(1) बोतछोगेल का असली शुद्ध लफज तिब्बती जुबान में बूथ छो गेल मालूम होता है अर्थात बुध मत का राजा तिब्बती जुबान में बोत बुध छोगे से उस्मत को और गेल राजा को कहते हैं.

(2) इस महसूल को तिब्बती जुबान में छोकल कहते हैं, माने कि व्योपार का हिस्सा.

धाम सिंह रावत का लड़का धरमू, धरमू का सोबनू रावत उसका नाकचू ओर रेचू पैदा हुए. नाकचू मिलम में रहता था रेचू पाछू में. रेचू के औलाद सात आठ पुस्त तक बहुत बढ़ गये. मिलम में भी नाकचू के औलाद बढ़े लेकिन ऐसा नामवर कोई नहीं हुआ बलके आपसे में फूट और दुश्मनी रखते. निदान नाकचू के औलाद ने रेचू के औलाद थुपवा वगैरहों को कतल कर के पाछू गांव अपने कब्जे में कर लिया. इस समय में बुर्फू गांव के बुर्फाल लोग बड़े जबरदस्त थे. अपने आगे किसी दूसरे को कुछ हकीकत नहीं समझते थे. बसबब नाम आबरी के नाकचू के नाकचू के औलाद मिलम वालों को दुश्मनी रखते थे कई आदमी मिलम वालों का जीता पकड़ थैला में डाल कर बुर्फू के करीब गोरी नदी में बहा दिये. उस वक्त तो मिलम्वालों से कुछ नहीं बन पड़ा. कीना खून का दिल में रख कर गढ़वाल के मढ़वाल आदि मदद में लाकर मुकाम समगों के दरम्यान लकेच बुर्फालों से लड़ाई हुई. बुर्फाल बहुत मारे गये सिर्फ छोट छोटे लड़के घर में रह गये. उस जमाने में सिरकोट के राजा हरमल को निकाल कर सारा राज कुमाउं का महाराज चन्द के दखल में आ गया था.

निदान कई औरतों ने राजें के दरबार में नालिस की. मिलम्वाल तलब होकर खून हो गया. राजा ने औरतों से पूछा कि तुम क्या चाहती हो. बुर्फालों की औरतों ने निवेदन किया कि मिलम्वाल कौम हमारी लड़कियों से शादी करे और अपनी लड़कियां हमारे को दे. तब से मिलम्वाल और बुर्फालों के बीच व्याह शादी चला नहीं तो सम्बन्ध मिलम्वालों के लिये गढ़वाल था. जुहार वालों की लड़कियां नहीं चाहते थे.

नाकचू मिलम्वाल में सातवां पीढ़ी के बाद कलपा बूढ़ा पैदा हुआ. अबल में इसी कलपा बूढ़ा के नाम पर बुढ़ाचारी के खिताब राजा चन्द के दरबार में इत्ता हुआ.

कलपा बूढ़ा का लड़का भादू बूढ़ा पैदा हुआ. इसी जमाने में राजा बाजबहादुर चन्द जुहार के राह तिब्बत तकला खार तक गया. व्यास के राह अपनी राजधानी वापस आया. हमराह में बहादुर चन्द के भादू बूढ़ा और लोरू बिलज्वाल वगैरह जुहार के कई लोग थे. महाराज ने भादू बुढ़ा का दिलेरी काम पशन्द किया. इस हुसन खिदमत के बदले में महाराज बाज बहादुर चन्द ने पाछू नौका बुई पातूं धापा और तेली मवाजात जागीर अता किया. लोरू बिलज्वाल जो भादू बूढ़ा का फरमावदार था उसका मल्ला दुमर के मुत्तसिल कोश्यारी बाड़ा नाम ताके जमीन दिया गया.

भादू बुढ़ा का लडका यामी बुढ़ा उसका समजांग का कोन्चो बुढ़ा पैदा हुआं कोन्चो बुढ़ा के दो शादी थी. अब्बल बिजोरी बुढ़ी छिनकेव मरतोलिया की बेटी थी. दोयम गढ़वाली तोलछा गढ़वाल जंलम के वक्त लड़ाई के छीन लाई गई थी. बिजारी बूढ़ी की चार लड़के पैदा हुए. सबसे बड़ा धामा उससे छोटा राजू उससे छोटा वसपाल उससे छोटा नरपाल था. नरपाल निसन्तान मर गया धामा बूढ़ा की तीन शादियों से दस-दस लड़के हुए. जसपाल दोलपा सुरजू कूंकरिया बिरसिंह फते सिंह देबू झेमू लादा और नागू ये दस लड़के पैदा हुए. चुनान्वे सबसे बड़ी मुगली बूढ़ी से जसपाल कलपा और सुरजू. टोलियानी बूढ़ी से कुकरिया और बिर सिंह ओर सबसे छोटी धरमी बूढ़ी माणा की जिवाण मारछे की बेटी थी जिससे पांच लड़के फते सिंह देबू झेमू लाटा और नागू पैदा हुए.

कोनच्यो बुढ़ा के दोयम शादी गढ़वाली से जैंता बुढ़ा पैदा हुआ. उसका हरपाल उसका मुसू बुढ़ा ने मिलम और दरकोट की तिहाई बुढाचारी पाई. मुसू से धामा पधान उससे जसपाल पधान पैदा हुआ.

कोनच्यो बुढ़ा का सबसे बड़ा लड़का धामा बुढ़ा बड़ा भाग्यशाली था. इन्हीं के जमाने में कई मवाजात राजे चन्द के दरबार से जागीरी अता हुई. चुनाचे सन् 1734 ईसवी में महाराजा दीपचन्द ने मौजे गोलमा ओर कोटाल गांव जागीर में बख्सा. उस जमाने में धामा बुढ़ा पट्टी तल्ला मल्ला बिचला तीनों पट्टी जुहार का थोकदार राज-बुढ़ा कहलाता. मालिकाना आठ काछ यानी 80 रुपये हक थोकदारी रियाया से मिलती और कई तरह का हक हकून अलाहदा मिलतां.

सून 1734 ईसवी मुताबक चेत शुदी दस के रोज 8 काछ पलांग थोकदारी दस्तूर के महराज चन्द्र देव ने 12 काछ पलाग यानी 130 रुपये थोकदार मुकर्रर कर दिई और सन् 1741 के ईसवी के मुताबिक चैत षुदी 8 के रोज महाराज मोहन चन्द्र देव मोजा कुईटी शेमलीं खेतों तल्ला भेंसकोट और गिरगांव जागीर दी.

यह धामा बुढ़ा सीधा सादा मिजाज का और बड़ा दयावान था. रइतो के झगड़ा निवेड़ करने मुकदम के बीच किसी को सखत सजा नहीं देता. बहुत से लोग जो धामा बुढ़ा के वक्त के मुझे मिले उसके नेक मिजाज का यहां तक बयान करते कि मुद्द और मुद्दाले दोनों राजी होकर घर चले जाते थे. धामा बुढ़ा के हाकिमी तक तमाम लोग जुहार के उस से राजी थे.

धामा बुढ़ा के बाद बुढ़ाचारी बड़ा लड़का जसपाल के नाम मुकर्रर हुआ. उसी जमाने में यह कुमाऊ गढ़वाल नेपालियों के कब्जे में आ गया. राजा चन्द अल्मोड़ा छोड़ कर देश की तरफ चला गया था. परन्तु जसपाल बुढ़ा ने राजा चन्द की तरफ से बराबर गोरखालियों के साथ लड़ता भिड़ा और राजा चन्द के बराबर खत किताबत के द्वारा बुलाता रहा यहां तक कि आठ बरस तक परगना जुहार को नैपालियों के दखल में जाने न दिया.

इस बीच नैपालियों के साथ नाकुरी और ओदान वगैरह जगहों में कई लड़ाइयां हुई गोरखे बहुत मारे गये तब राजा नेपाल के तरफ से हर्क देव जोशी जुहार पर चढ़ आया. हर्क देव जोशी ने सिपाही पीछे कर आप कुछ बहाने से जुहार में आया तो जसपाल बुढ़ा ने हर्क देव जोशी को पकड़ बेड़ी पहना कर कैद में रखा फिर राजा चन्द से जान न मार डालने का कोल करवा कर रिहा कर दी. जिसके औलाद अब मदन नारायण वगैरह बक्शी कौम के जोशी झिजाड़ वाले कहलाते हैं.

निदान जब राजा चन्द ने निराश होकर अपना मुल्क लेने का उद्योग छोड़ दिया इस बीच गोरखालियों ने जोर पकड़ लिया पहाड़ी राजाओं का जेर करता हुआ कांगड़ा तक नेपालियों का राज पहुंच गया था. भक्ति थापा राजा नेपाल का सेनापति चार हजार फोज लाकर हमारे देश जुहार पर चढ़ आया जसपाल बुढ़ा ने जाना कि अब नेपालियों से रखना अच्छा नहीं भक्ति थापा से भाई चारा कर पगड़ी बदल ली और जुहार का कर दकना कबूल किया.

जब तमाम कुमाऊ में नेपालियों का पूरा अमल दखल हो गया सारा जुहार का कार अजाम बतौर रजवारी के राजा नेपाल के तर्फ से जसपाल बुढ़ाके इखतियार किया गया. इस बीच जगू मरतोलिया बुढ़ा राठ भवान सिंह के बाप से जसपाल बुढ़ा की नाराजगी हुई. कारण यह था के जगू मरतोलिया ने जसपाल बुढ़ा को सारे परगनाह जुहार के कर अेक बंदा मामुली से जियादा तहसील कर लेने का झूठा कलंक लगाया था. इस कुसूर पर जसपाल बुढ़ा ने जगू मरतोलिया को हुण देश जाते हुए गोंखा जाम जगह पर गिरफदार करना चाहा लेकिन जगू मरतोलिया हाथ न लगा. भाग कर गढ़वाल की राह ली. जसपाल बुढ़ा ने भी जुहार का कारबार अपने बड़े बेटे बिजै सिह का सोंप कर आप भी मय हमराहियान कई मिलम्वालों के जगू का गिरफतारी के लिये गढ़वाल को गया. निदान जगू को पकड़ कर पैरों में बेड़ा डाल कर बद्रीनाथ के माणाघाटी होता हुआ हुणदेश की राह जुहार आना चाहा रास्ते में बेणा तोड़ जगू हुण देश को आया वहां भी उसका पैर न जमा तो व्यास को भाग गया. जसपाल बूढ़ा गढ़वाल में रहा. कहते है कि उस जमाने में माणा मे तो सबसे बड़ा आदमी धामू मोलपा था और नीती में मलारी का भूपचन्द मरवाल जो धामू बुढ़ा का भानिजा था . जगू नें परगना व्यास के कुटियाल वासियों को मदद में लाकर जसपाल बुढ़ा के मारने को गढ़वाल मलारी में फौज चढ़ा लाया.

(जारी)

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