Featured

कालिय नाग के ज्येष्ठ पुत्र धौलीनाग पर अटूट आस्था है कुमाऊं के लोगों की

श्रीकृष्ण के बाल्यकाल में यमुना के तट पर उनका कालियनाग से संघर्ष का वर्णन मिलता है. श्रीकृष्ण और कालिय नाग के मध्य हुए इस संषर्ष में जब श्रीकृष्ण विजयी होते हैं तो कालिय नाग को यमुना छोड़कर जाने को कहते हैं. इसके बाद कालिय नाग कुमाऊं में रहकर शिव की आराधना करते हैं.
(Dhauli Nag Temple)

कुमाऊँ क्षेत्र में रहकर कालिय नाग यहां के स्थानीय लोगों की अनेक बार रक्षा करते हैं जिसकारण यहां कालिय नाग देव रूप में पूजे जाने लगते हैं. यहीं उनके पुत्र धवल नाम का भी जन्म होता है. धवलनाग अर्थात सफ़ेद नाग को स्थानीय भाषा में धौलीनाग कहा जाता है.

महर्षि व्यास ने स्कंद पुराण के मानस खण्ड के 83 वें अध्याय में धौलीनाग की महिमा का वर्णन करते हुए लिखा है:

धवल नाग नागेश नागकन्या निषेवितम्।
प्रसादा तस्य सम्पूज्य विभवं प्राप्नुयात्ररः।।

फोटो: सोशियल मिडिया से साभार

धौलीनाग का निवास स्थान बागेश्वर जिले में विजयपुर के समीप खन्तोली गांव में एक पहाड़ी चोटी पर है. विजयपुर से इस चोटी की दूरी डेढ़ किमी है. यहां स्थित एक बांज के पेड़ पर धौलीनाग का निवास स्थान बताया जाता है. लोकप्रचलित कथा अनुसार एक बार जब जंगल में आग लग गयी तो धवल नाग ने गांव वालों को सहायता के लिये पुकारा. रात के समय धौलीनाग की सहायता के लिये स्थानीय धपोलसेरा गांव के भूल जाति के लोग सर्वप्रथम गये.
(Dhauli Nag Temple)

उन्हें 22 हाथ लम्बी मसाल लेकर धौलीनाग की सहायता को जाते देख चंदोला वंशज भी अपने यहां से मसाल लेकर चल पड़े. सभी लो छुरमल के मंदिर में एकत्रित होकर धौलीनाग की मदद को चले. कहते हैं कि इसके बाद इस क्षेत्र में धौलीनाग की विशेष कृपा रहती है. इस क्षेत्र के आराध्य देवता भी धौलीनाग ही हैं.

इस पूरी पट्टी में धौलीनाग के प्रति अगाध भक्ति भावना है. यहां के गावों में आज भी घर में होने वाले अनाज से लेकर धिनाली तक धौलीनाग को चढ़ाने की परम्परा है. प्रत्येक वर्ष ऋषि पंचमी, नाग पंचमी और नवरात्रि की पंचमी को यहाँ विशेष पूजा की जाती है. यहां आयोजित होने वाले मेले में आज भी रात्रि में 22 हाथ लम्बी मसाल लेकर मंदिर की परिक्रमा करने की प्रथा है.

मेले के दिन धपोलासेरा से चीड़ के छिलकों की मसाल बनाकर गाजे-बाजे के साथ छुरमल देवता के मंदिर आया जाता है. यहां देव डांगरों का अवतरण होता है इसके बाद सभी धौलीनाग को जाते हैं मंदिर में घर-घर से आने वाले दूध, दही, घी, शहद, चीनी से पंचामृत बनाया जाता है. मंदिर में खीर का ही भोग लगाया जाता है और नया अनाज भी अर्पित किया जाता है.
(Dhauli Nag Temple)

फोटो: सोशियल मिडिया से साभार

काफल ट्री डेस्क

इसे भी पढ़ें: पैयाँ की टहनियों बिना पहाड़ियों की शादी का मंडप अधूरा रहता है

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

  • .......सहायता को सर्वप्रथम धामी लोग पहुंचते हैं एक छोटी सी मसाल लेकर तत्पश्चात कनियार व बाद में धपोला क्षेत्रवासी
    कुछ वर्ष पूर्व तक इसी क्रम में आर (अर्थात छिलके का बना मसाल) भी आती थी अब सिर्फ आर धपोल की आती है।
    यहाँ पुजारी भी धामी ही बनते हैं।

Recent Posts

उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ

उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…

3 hours ago

जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया

अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…

4 days ago

कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी

हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…

4 days ago

पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद

आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…

4 days ago

चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी

बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…

4 days ago

माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम

आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…

4 days ago