Featured

धारी देवी मंदिर

पिछले एक महीने में अपने शोध कार्य को लेकर केदारनाथ की यह मेरी दूसरी यात्रा थी. हर बार की तरह इस बार भी सोन प्रयाग तक की यात्रा बाइक से व गौरीकुंड से केदारनाथ तक की यात्रा पैदल तय की गई. बाइक से यात्रा का सबसे सुखद अनुभव यह रहता है कि आप अपनी इच्छानुसार रास्ते पर पड़ने वाले अपने पसंदीदा गंतव्यों पर कितने ही समय तक रुक सकते हैं और तमाम यादों को कलमबद्ध करने के साथ ही अपने कैमरे में कैद भी कर सकते हैं. दिल्ली से आए मित्र मुकेश के साथ यह यात्रा श्रीनगर गढ़वाल से प्रारंभ हुई और इस यात्रा का प्रथम पड़ाव रहा श्रीनगर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर कलियासौड़ में स्थित धारी देवी मंदिर.
(Dhari Devi Temple Uttarakhand)

धारी देवी मंदिर अलकनंदा नदी के ठीक बीच में स्थापित है जिस वजह से यह रास्ते पर आते-जाते तीर्थयात्रियों को अनायास ही अपनी तरफ आकर्षित करता है. 2013 की आपदा से पहले यह मंदिर अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थापित था लेकिन जीवीके ग्रुप द्वारा बनाई जा रही श्रीनगर जल विद्युत परियोजना के लिए इकट्ठा किये गए पानी ने बाढ़ की भयावहता को इतना बढ़ा दिया कि मंदिर बाढ़ की चपेट में आ गया जिसकी वजह से इसके बाढ़ में बहने की आशंका को देखते हुए मंदिर की मूर्ति को सुरक्षित निकालकर जीवीके कंपनी द्वारा लगभग 6 करोड़ की लागत से नये ढाँचे का निर्माण करने का निर्णय लिया गया व धारी देवी की मूर्ति को भविष्य में नदी के बीचों-बीच नवनिर्मित मंदिर में स्थापित करने का फैसला लिया गया.

फिलहाल नवनिर्मित मंदिर का निर्माण कार्य अपने अंतिम चरण में है व धारी देवी की मूर्ति को नए मंदिर के पास ही बने अस्थाई मंदिर में स्थापित किया गया है. जैसे ही नवनिर्मित मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण होगा धारी देवी की मूर्ति को यथावत नए मंदिर में स्थापित कर दिया जाएगा. कुछ स्थानीय लोगों का यह भी कहना है कि मंदिर तक एक अलग से रास्ता दिये जाने को लेकर जीवीके ग्रुप के साथ कुछ विवाद चल रहा है जिस वजह से धारी देवी की मूर्ति को अब तक नवनिर्मित मंदिर में स्थापित नहीं किया जा सका है.

धारी देवी मंदिर अलकनंदा नदी के एक छोर में बसे धारी गॉंव के ठीक सामने स्थित है इसलिए इसे धारी देवी नाम दिया गया है. मंदिर की ऐतिहासिकता को लेकर स्थानीय लोगों में बहुत सी किंवदंतियॉं प्रचलित हैं. कुछ स्थानीय लोगों का मानना है कि मंदिर में स्थापित मूर्ति कालीमठ से अलकनंदा नदी में बहती हुई आई थी जिसे लोगों ने धारी गॉंव के सामने अलकनंदा नदी के तट पर एक मंदिर बनाकर स्थापित कर दिया.
(Dhari Devi Temple Uttarakhand)

एक अन्य मान्यता है कि आदि गुरू शंकराचार्य जब नवीं-दसवीं शताब्दी में उत्तर भारत की यात्रा में आए तो उन्होंने सूरजकुंड नामक स्थान से देवी की मूर्ति को निकाला और धारी गॉंव के ठीक सामने अलकनंदा नदी के तट पर स्थापित कर दिया व स्थानीय पुजारियों को पूजा करने के लिए सौंप दिया. यह भी मान्यता है कि धारी देवी मॉं चार धामों की रक्षा के साथ ही स्थानीय लोगों की विपत्तियों, रोग व व्याधियों से भी रक्षा करती है. इसी तरह की अन्य बहुत सी किंवदंतियों धारी देवी को लेकर स्थानीय लोगों के बीच आज भी प्रचलित हैं. स्थानीय लोग तो यहॉं तक मानते हैं कि यह धारी देवी का ही प्रताप था कि 2013 में आई भयानक बाढ़ में धारी देवी के आसपास के गॉंव व लोग एकदम सुरक्षित बच गए.

स्थानीय लोग एक दिलचस्प बात बताते हैं कि मंदिर की मूर्ति दिन में कई बार अपना रूप बदलती है व समय-समय पर लड़की, औरत व बुढ़िया का रूप धारण कर लेती है. वर्तमान समय में, खासकर नए कलेवर व नदी के बीचोंबीच स्थापित होने के बाद से मंदिर के दर्शन को लेकर तीर्थयात्रियों का उत्साह काफी बढ़ चुका है. बद्रीनाथ व केदारनाथ जाने वाले अधिकतर यात्री राष्ट्रीय राजमार्ग 58 के किनारे बसे इस मंदिर के दर्शनार्थ लगभग रुकते ही हैं.

सड़क से लगभग 500 मीटर के ट्रैक से होते हुए मंदिर के प्रवेश द्वार तक पहुँचा जाता है. सड़क व ट्रैक से मंदिर का बहुत ही सुंदर व विहंगम दृश्य नजर आता है जिसे यात्री अलग-अलग ऐंगल से अपने कैमरे में कैद करने को आतुर रहते हैं. मंदिर में दर्शन करने के बाद यात्री प्राकृतिक आनंद व अलकनंदा नदी का जल ग्रहण करने के लिए नदी व मंदिर के किनारे बनी बीच रूपी रेतीली जमीन पर कुछ समय जरूर बिताते हैं. नदी के ठीक किनारे प्रकृति, आध्यात्म, भक्ति व शांति का ऐसा संगम होता है कि मन हमेशा वहीं ठहर जाने को करता है.
(Dhari Devi Temple Uttarakhand)

नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago