हाल ही में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कुमाऊं-गढ़वाल का संतुलन साधने के लिए दिल्ली में स्वास्थ्य मंत्री से मिलकर कुमाऊं के लिए एम्स की मांग की है. इसके बाद कुमाऊं के अंदर इसे लेकर घमासान शुरु हो गया है. हर कोई कह रहा है कि इसे हमारे यहां होना चाहिए. तराई, पहाड़ और भौगोलिक परिस्थितियों की दुहाई दी जा रही है.
(Demand for AIIMS in Kumaon)
एम्स जैसे हॉस्पिटल जरुर होने चाहिए लेकिन उसके साथ में प्रारम्भिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी), सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएससी) की हालत भी सुधरनी चाहिए ताकि हमारा स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर मूलभूत ढांचा मज़बूत हो. जिला अस्पतालों की हालत देखने योग्य है. डाक्टर, टेक्निशियन, सहायक कर्मचारी आदि के पद खाली हैं. लैब के नाम पर केवल ब्लड टेस्ट होते हैं. छोटी सी बीमारी का इलाज भी यहां नहीं हो सकता है.
कोरोना काल में सरकारी हॉस्पिटलों की कलई खुल गई है. कोरोना का पहला केस उत्तराखंड में मार्च 2020 में आया था. इसके बाद 18 महीनों में अस्पतालों की क्या तैयारी थी? सभी ने देखा. न ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध थे, न आईसीयू और न ही वेंटिलेटर. जहां थे वहां कम पड़ गए या धूल खाते रहे.
कोविड 19 के टेस्ट के लिए लोगों को धक्के खाने पड़े. अस्पताल में उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं था. पूरी व्यवस्था चरमराई हुई थी. इसके बाद सरकार ने होम आइसोलेशन पर जोर दिया. गांवों के गांव कोरोना की चपेट में आए. कुछ जगह कैंप लगाकर टेस्ट हुए तो संक्रमण की भयावहता का पता चला.
(Demand for AIIMS in Kumaon)
गांवों वाले लॉकडाउन में हजारों खर्च करके कैसे जिला अस्पतालों में कैसे पहुंचते, उन्होंने घर में रहना पसंद किया. कोरोना के वास्तविक आंकड़ों और मौतों को लेकर लगातार संदेह जताया जा रहा है.
इस परिस्थितियों में एम्स की स्थापना की घोषणा मात्र एक चुनावी जुमला अधिक प्रतीत होती है. आज भी मरीजों को एयर एंबुलेंस की सुविधा राज्य के लोगों के लिए नहीं है. उन्हें डोलियों में अस्पतालों तक लाया जाता है. गर्भवती महिलाओं की मौत प्रसव के दौरान सही इलाज नहीं मिलने की वजह से होती हैं. पर्वतीय इलाके में एम्स की मांग करने के साथ-साथ नेता स्वास्थ्य सुविधाओं के मूलभूत ढांचे को सुधारने के लिए संघर्ष करें तो शायद कई लोगों को ज़िंदगी बच जाए.
(Demand for AIIMS in Kumaon)
विविध विषयों पर लिखने वाले हेमराज सिंह चौहान पत्रकार हैं और अल्मोड़ा में रहते हैं.
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