शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को धनतेरस के साथ ही 5 दिनों तक मनाए जाने वाले दीपावली का त्योहार शुरू हो गया है. पर अभी भी लक्ष्मी पूजन किस दिन किया जाए? इसको लेकर ज्योतिषाचार्यों और पंचांग बनाने वालों में मतभेद जारी हैं. लक्ष्मी पूजन 31 अक्टूबर को किया जाए या 1 नवंबर को? इस पर अभी तक एक राय नहीं बन पाई है. जिससे यह तय हो गया है कि इस साल दीपावली का मुख्य त्योहार यानी कि लक्ष्मी पूजन दो दिन होगा. कोई 31 अक्टूबर को लक्ष्मी पूजन करेगा तो कोई 1 नवंबर को.
(Deepawali 2024 Date)
पिछले दो-तीन वर्षों से त्योहारों को मानने को लेकर ज्योतिषाचार्यो में गहरे मतभेद दिखाई देने लगे हैं. त्योहारों को लेकर हर बार यह असमंजस पैदा किया जा रहा है कि त्योहार असल में है किस दिन? पंचांग बनाने वाले ज्योतिषाचार्य और दूसरे ज्योतिषाचार्य त्योहारों की तारीखों को लेकर जैसे-जैसे त्यौहार नजदीक आते हैं, वैसे-वैसे विरोधाभासी बयान देने लगते हैं. कोई त्योहार मनाने को किसी दिन शास्त्र सम्मत मानता है तो कुछ लोग दूसरे दिन त्योहार मनाने को शास्त्र सम्मत बताने लगते हैं. इस तरह के विरोधाभासी बयानों से आम आदमी दुविधा में रहता है.
गत दो-तीन साल से यह दुविधा मुख्य तौर पर राखी और होली को लेकर सामने आती रही है. इससे यह हो रहा है कि पहले जहां त्योहार पूरे देश में एक ही दिन मनाए जाते थे, अब त्योहारों को लेकर पैदा की जा रही असमंजस की स्थिति से त्योहार दो-दो दिन मनाए जाने लगे हैं. रक्षाबंधन और होली को मानने को लेकर पैदा विवाद इस साल दिवाली तक भी पहुंच गया.
दीपावली मनाने को लेकर पंचांगों में भी अलग-अलग तिथियां घोषित थी. इस पर मीडिया और सोशल मीडिया में जमकर तर्क-वितर्क होता रहा. त्योहारों की तिथियों को लेकर पैदा विवाद कई बार इतनी गंभीर स्थिति में पहुंच जाता है कि अनेक ज्योतिषाचार्य एक-दूसरे को अभद्र भाषा में अज्ञानी तक ठहरने लगते हैं. इस बार दिवाली की तारीख को लेकर एक महीने से विवाद जारी रहा. अंत तक भी यह सहमति नहीं बन पा रही है कि दीपावली पूरे देश में 31 अक्टूबर को मनाई जाएगी या 1 नवंबर को?
दीपावली की तारीख को लेकर पैदा हुए विवाद के बीच गत 15 अक्टूबर 2024 को वाराणसी में काशी के पंचांग और ज्योतिष के विद्वान एक मंच पर आए. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में एक पत्रकार वार्ता के दौरान काशी के विद्वानों ने घोषणा की कि पूरे देश में दीपावली का पर्व 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा. तिथि निर्णय के पीछे उन्होंने धर्म शास्त्रों के अनुसार तर्क भी दिए.
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बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से प्रकाशित विश्व पंचांग के समन्वयक प्रोफेसर विनय कुमार पांडे ने बताया कि शास्त्रों में दीपावली के लिए मुख्य ‘काल प्रदोष’ में अमावस्या का होना जरूरी माना गया है. उन्होंने कहा कि इस साल प्रदोष (दो घंटा 24 मिनट) और निशीथ (अर्धरात्रि) में अमावस्या 31 अक्टूबर को पड़ रही है. इसी वजह 31 को ही दीपावली मनाना शास्त्र सम्मत है. देश के किसी भी भाग में 1 नवंबर को पूर्ण प्रदोष काल में अमावस्या की प्राप्ति नहीं है. ऐसी स्थिति में 1 नवंबर को किसी भी मत से दीपावली मनाना शास्त्र सम्मत नहीं है.
प्रोफ़ेसर विनय कुमार पांडे ने बताया कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत धर्म, विद्या धर्म विज्ञान संकाय, श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद, श्रीकाशी विद्वत परिषद, बनारस के पंचांगकारों, धर्म शास्त्रियों, ज्योतिर्विदों ने विभिन्न बिंदुओं पर विचार- विमर्श के बाद सर्वसम्मति से 31 अक्टूबर को दीपावली मनाने की पक्ष में निर्णय दिया है. उन्होंने कहा कि पारंपरिक गणित से निर्मित पंचांगों में किसी प्रकार का भेद नहीं है. सभी पंचांगों के अनुसार, अमावस्या का आरंभ 31 अक्टूबर को सूर्यास्त से पहले शुरू होकर 1 नवंबर को सूर्यास्त के पूर्व ही समाप्त हो रहा है. इससे देश के सभी भागों में पारंपरिक सिद्धांतों से निर्मित पंचांगों के अनुसार 31 अक्टूबर को ही दीपावली का त्योहार मनाया जाना एकमत से सिद्ध है.
श्रीकाशी विद्वत परिषद के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रोफेसर रामचंद्र पांडे के अनुसार, दृश्य गणित से संबंधित पंचांगों के अनुसार भी देश के कई भागों में तो अमावस्या 31 अक्टूबर को सूर्यास्त के पहले प्रारंभ होकर 1 नवंबर को सूर्यास्त के बाद एक घटी से पहले समाप्त हो रही है. इससे उन क्षेत्रों में भी दीपावली को लेकर कोई भेद शास्त्रीय विधि से नहीं है और वहां भी दीपावली 31 अक्टूबर को निर्विवाद रूप से सिद्ध हो रही है. देश के कुछ भागों जैसे गुजरात, राजस्थान और केरल के कुछ क्षेत्रों में अमावस्या 31 अक्टूबर को सूर्यास्त के पहले आरंभ होकर 1 नवंबर को सूर्यास्त के बाद प्रदोष में कुछ काल तक व्याप्त हैं. इससे 31 अक्टूबर व 1 नवंबर की तारीख को लेकर कुछ विरोधाभासी स्थितियां उत्पन्न हो गई हैं. इसके बाद भी धर्मशास्त्रीय वचनों के क्रम में वहां भी दीपावली 31 अक्टूबर को ही मानना तय हुआ है.
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर शत्रुघ्न त्रिपाठी ने कहा कि सनातन धर्म में व्रत, पर्व के निर्धारण में तिथि, ग्रह, नक्षत्र आदि के मानों का भी मूल्यांकन किया जाता है. ऐसे में स्थान बदलने से व्रत, पर्व आदि की तिथियों में अंतर पड़ना भी स्वाभाविक है. धर्म शास्त्र कहते हैं कि 31 अक्टूबर सबसे बेहतर तारीख है. डॉ सुभाष पांडे ने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित विश्व पंचांग सहित काशी के सभी पंचांग में इसका स्पष्ट निर्देश है. प्रोफेसर चंद्र मौली उपाध्याय ने कहा कि इस निर्णय को सभी को स्वीकार करते हुए त्योहारों में एकरूपता की दृष्टि से 31 अक्टूबर को ही दीपावली पर्व मनाया जाना उचित है.
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काशी विद्वत परिषद की राय को दरकिनार करते हुए उत्तराखंड में अलग ही राय ज्योतिषाचार्यों के बीच है. यहां के ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि 1 नवंबर को ही दीपावली मनाना शास्त्र सम्मत है. हल्द्वानी में प्रांतीय उद्योग व्यापार मंडल की पहल पर 22 अक्टूबर को ज्योतिषाचार्यों की एक बैठक हुई. व्यापार मंडल के अध्यक्ष नवीन वर्मा ने कहा कि दीपावली की तारीख को लेकर व्यापारी भी असमंजस में हैं, इसीलिए व्यापार मंडल की पहल पर ज्योतिषाचार्यों की बैठक आयोजित की गई.
बैठक के बाद पर्व निर्णय सभा के सचिव डॉक्टर नवीन चंद्र जोशी ने बताया कि उद्यापिनी तिथि में ही पर्व और व्रत किए जाते हैं. उदय काल में शुरू पूजा रात तक की जा सकती है. स्थानीय पंचांगों में 1 नवंबर को ही दीपावली पर्व मनाए जाने का निर्णय दिया गया है. पर्व निर्णय सभा के उपाध्यक्ष पंडित गोपाल दत्त भट्ट ने कहा कि पूरब की ओर तांत्रिक पूजा का विधान है. इसी कारण वहां 31 अक्टूबर को दीपावली मनाने पर जोर दिया जा रहा है.
हल्द्वानी में हुई बैठक में ज्योतिषाचार्यों ने एकमत से कहा कि पंचांग के अनुसार 1 नवंबर को प्रदोष काल में अमावस तिथि की व्याप्ति कम समय के लिए है. शास्त्रीय गणना के अनुसार, 31 अक्टूबर को दोपहर तक चतुर्दशी भी है, कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि का समाप्ति कल दोपहर बाद 3:53 बजे है. जिससे 1 नवंबर को ही महालक्ष्मी के पूजन का शुभ योग है. इससे स्पष्ट है कि देश के अन्य स्थानों में भले ही 31 अक्टूबर को ही दीपावली का पर्व मनाया जाए, पर उत्तराखंड में 31 अक्टूबर और एक नवंबर को दो दिन दीपावली पर्व मनाया जाएगा.
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हल्द्वानी में दीपावली मनाने को लेकर व्यापार मंडल भी दो धड़ों में बांटा हुआ हैं. व्यापार मंडल का एक धड़ा 31 अक्टूबर और दूसरा धड़ा 1 नवंबर को दीपावली मनाने की घोषणा कर चुका है. प्रांतीय उद्योग व्यापार मंडल जहां 1 नवंबर को दीपावली के पर्व पर बाजार बंद रखने की घोषणा कर चुका है, वही प्रांतीय नगर उद्योग व्यापार मंडल के प्रदेश महामंत्री राजेंद्र फर्स्वाण ने कहा कि 2 दिन दीपावली मनाना ठीक नहीं है. काशी के विद्वानों ने 31 अक्टूबर को दीपावली मनाया जाना धर्म सम्मत बताया है. उनकी मान्यता देश के साथ ही विदेशों में भी है. ऐसे में उनके अनुसार 31 अक्टूबर को ही दीपावली माननी चाहिए. देवभूमि उद्योग व्यापार मंडल के संस्थापक अध्यक्ष हुकम सिंह कुंवर ने कहा कि संगठन से जुड़े व्यापारियों ने 31 अक्टूबर को ही दीपावली मनाने का निर्णय लिया है.
पंचपुरी हरिद्वार के ज्योतिषाचार्यों का भी मानना है कि दीपावली पूजन के लिए प्रदोष काल, निशीथ काल, महा निशीथ काल और स्वाति नक्षत्र केवल 31 अक्टूबर की रात्रि में उपलब्ध हैं. इसी कारण दीपावली 31 अक्टूबर को माननी चाहिए. ज्योतिष अनुसंधान केंद्र कनखल के ज्योतिषाचार्य विजय कुमार जोशी कहते हैं की पंच पर्व को लेकर असमंजस की स्थिति अच्छी नहीं है. एक नवंबर को दिवाली मनाना शास्त्र सम्मत नहीं है. ज्योतिष सूर्य सिद्धांत कहता है कि तिथि, वार, योग एक खगोलीय प्रक्रिया है. इसमें परिवर्तन संभव है. 31 अक्टूबर को पूर्ण प्रदोष काल और रात्रि व्यापिनी अमावस्या पूर्ण प्रामाणिक है. इसके उपलब्ध होते 1 नवंबर को प्रतिपदा युक्त दीपावली मनाना पूरी तरह गलत है. सभी लोगों को 31 अक्टूबर को ही दिवाली माननी चाहिए.
सीकरी तीर्थ के आचार्य चंद्रशेखर शास्त्री भी कहते हैं कि पूरे देश को कार्तिक अमावस्या स्थिर लग्न और नक्षत्र के साथ माननी चाहिए. यह दोनों 31 अक्टूबर की रात्रि में ही उपलब्ध हैं. हमें कार्तिक अमावस्या और निशीथ काल का विशेष ध्यान रखना है. यही कालरात्रि है. जिसमें लक्ष्मी पूजन हो सकता है. स्थिर लग्न और स्वाति नक्षत्र का मिलन 31 अक्टूबर की रात में ही है. सभी लोगों को जिद छोड़कर 31 अक्टूबर को ही दीपावली माननी चाहिए.
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वहीं उत्तराखंड स्थित चार धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री में 1 नवंबर को दीपावली मनाने की घोषणा की गई है. वरिष्ठ पत्रकार कौशल सिखौला की अमर उजाला में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, हरिद्वार के गंगा सभा ने भी 1 नवंबर को ही दीपावली मनाने का पंचांग जारी किया है. गंगा सभा का मानना है कि यदि 2 दिन की अमावस्या होती है तो दूसरे दिन ही दीपावली पूजन और मां लक्ष्मी का पूजन किया जाना चाहिए. एक नवंबर को सूर्योदय के समय भी अमावस्या है और सूर्यास्त के समय प्रदोष काल में भी अमावस्या है. इसी वजह से 1 नवंबर को दीपावली माननी चाहिए. मान्यता के अनुसार, दीपावली का पर्व सतयुग और उसके बाद त्रेता युग की दो घटनाओं से जुड़ा है. सतयुग में कार्तिक कृष्ण अमावस्या पर समुद्र मंथन से महालक्ष्मी प्रकट हुई थी. लक्ष्मी पूजन तभी सतयुग से होता आ रहा है. कालांतर में त्रेता युग आया. भगवान विष्णु ने रामावतार लिया. संयोग से रावण वध के बाद श्री राम छोटी दिवाली के दिन भरत को साथ लेकर अयोध्या पहुंचे. अगले दिन अमावस्या को लक्ष्मी पूजन के साथ ही राम-जानकी के आगमन पर देशभर में दीप जलाए गए. तब से लक्ष्मी और राम की पूजा एक साथ दीपावली पर्व के रूप में जुड़ गई. कलयुग में भी वही पर्व चला आ रहा है.
इस तरह एक बार फिर से त्योहार की एकरूपता को लेकर कोई राय देश के ज्योतिषाचार्यो में नहीं बन पाई. लगातार त्योहारों को लेकर इस तरह का विवाद होना आम लोग सही नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि ज्योतिषाचार्यों को इस बारे में पहले से ही एक राय बनाकर पंचांग बनाने चाहिए. ताकि हर त्योहार को लेकर इस तरह के विवाद उत्पन्न ना हों.
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जगमोहन रौतेला
जगमोहन रौतेला वरिष्ठ पत्रकार हैं और हल्द्वानी में रहते हैं.
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