जब हम सिनला की चढ़ाई पार कर रहे थे तो हमारे एक साथी की जेब में एक लिफाफा था. यह लिफाफा गुंजी में जंगलात के एक कर्मचारी ने दिया था जिसका गाँव गो था. इस लिफ़ाफ़े में उसने अपनी बूढ़ी माँ के लिए पांच सौ रूपये भेजे थे. हम सोलह अगस्त की शाम तेदांग पंहुचे तो गाँव में बड़ी चहल पहल थी. यह दारमा में त्योहारों का महीना था. Darma Valley Travelogue Vinod Upreti
आज तेदांग में कोई त्यौहार था. इस दिन अतिथि सत्कार करना बहुत अच्छा माना जाता है. हम जिस घर में पंहुचे उसके मालिक ने हमें अन्दर बिठाया. घर के मालिक निहायत ही प्यारे और हंसमुख इंसान थे. उनकी बेटियां भी बहुत खुशमिजाज बच्चियां थी. जब तक हम अपने सफ़र के मकसद बताते रहे तब तक हमारे सामने गरम चाय के साथ पुदीने के पत्तों के अलौकिक पकोड़े आ गए.
एक तो यह पुदीने का पकोड़ा था जिसे हम पहली बार खा रहे थे और दूसरा यह पुदीना भी बड़ा स्पेशल. आम पुदीने से कहीं बड़ी पत्तियां थी इसकी. हम भूखे और थके तो थे ही इसलिए कितना खा गए पता नहीं. दोनों बेटियां मुस्कुराते हुए पकोड़े लाते रही और हम खाते रहे. हम भीतर के कमरे में बीचोबीच बने परंपरागत चूल्हे को घेरे बातें करते रहे.
घर के मालिक बहुत तेज और थोड़ा नकिया के बोल रहे थे तो हममें से किसी को भी उनकी बातें पूरी तरह समझ नहीं आ रही थी. लेकिन फिर भी बातों में यहाँ की कई कहानियां और किस्से थे जिनको समझने की हमने कोशिश की. आज हमने बहुत दिन बाद बकरी के मांस का भोग लगाया और कुम्भकर्णी निद्रा में पसर गए.
सुबह उठे तो लसर यांगती के किनारे की ओर निकल लिए भुरभुरी धंसने वाली सफ़ेद रेत चौड़ा पाट था जिसमें पैर यूँ धंस रहे थे जैसे बर्फ में समाते हैं. यहाँ पर गाँव के बांयी और से एक बहुत बड़ा रोखड़ आया था जिसमें बहुत सारे खेत बहा दिए थे. इसका नाम पागल पानी बताया गया. बरसात में यह कब कितना मारक होकर बरसे पता नही. न इसकी धार का अंदाजा है. कभी उस छोर तो कभी इस छोर, हर साल अपने किनारों को काटता है.
गांव से कुछ ऊपर था एक बड़ा पवित्र जंगल – हुम्बाल सै. इतना पवित्र कि यहां से कोई लकड़ी काट कर नहीं ला सकता. आलम समौ तक बहुत दूर जाकर मारछा से लाने होते हैं. गाँव से ठीक ऊपर भोज के एक बूढ़े से पेड़ के नीचे एक बहुत पुराना मंदिर है जिसमें बहुत खास पूजा होती है बारह साल के अंतराल में और उस पूजा में एक बहुत पुराने लकड़ी के कुंदे में दूसरी लकड़ी रगड़ कर आग जलाई जाती है. कहते हैं जब यह गांव बसा तब से इसी लकड़ी से आग जलाई जाती है.
आज हमने दो दलों में दारमा को जानना था. एक दल में लोकेश दा और खग्गी दा निकले मारछा और सिपू और दुसरे में मोहन और मैं निकले गो की तरफ. वह लसर यांगती के बहाव के उलट तो हम धौली के बहाव के साथ.
गो धौली गंगा के बांये किनारे पर बसा छोटा लेकिन बेहद सुन्दर गाँव है. दान्तु से लगा चीड का जंगल जहाँ समाप्त होता है वहीं कहीं एक पुल है धौली पर जिसे पार कर हम गो पंहुचते हैं. गाँव से ठीक पहले रास्ते के एक ओर पानी का एक धारा है. यहाँ के स्रोतों का पानी बहुत ही स्वादिष्ट और मीठा लगता है. पुल के दोनों ओर जमीन कुछ दलदली है और यहाँ दलदलों में उगती है विशिष्ट वनस्पति, हत्था जड़ी या सालम पंजा. हमने यहाँ बहुत सारे पौधे देखे जिनमें खूबसूरत गुलाबी- बैंगनी फूल खिल रहे थे. Darma Valley Travelogue Vinod Upreti
गो गाँव में पंहुचे तो सबसे पहले उस अम्मा के घर गए जिनके बेटे ने उनके लिए पैसे भेजे थे. अम्मा काफी उम्रदराज थी लेकिन बहुत कर्मठ भी जिस समय हम वहां पंहुचे तो वह ओखली में जंगली जम्बू को कूट कर नरम कर रही थी. हमने उन्हें बताया कि उनके बेटे ने कुछ पैसे भेजे हैं तो हमें अन्दर ले गयी. चटख रंगों का सुन्दर गलीचा बिछा था जो उन्होंने खुद बनाया था.
सामने दीवार पर एक खूँटी में बलमा की माला तंगी थी जिसका इस्तेमाल स्थानीय शराब बनाने में होता है, वह शराब जो हर रश्म, हर काम में जरुरी है. कुछ औजार इधर-उधर रखे थे. रिंगाल के बुने हुए बड़े-बड़े पुतके और टोकरियाँ थी. अन्दर चूल्हा था जो कमरे के बीचों-बीच था. छत की बल्लियों में बिल्ल की टहनियां सूखने हो डाली हुई थी. अम्मा ने एक टहनी चूल्हे में डाली तो बिल्ल की खुशबू हमारे नथुनों में भर गयी. वह खुशबू जिसे मैं पहली बार मिलम यात्रा से हमेशा के लिए फेफड़ों में बसा लाया था.
अम्मा ने हमें बिठाया और हाथ में चांदी के तीन कटोरे ले आई. हम तीन लोगों को एक-एक कटोरा पकड़ाया उनमें एक-एक फूल सरसों का डाला अन्दर जाकर एक लोटे में कुछ लायी. उन्होंने हमारे कटोरों में यह डाला और पीने को कहा. कुछ संकोच के साथ हम पी गए. बहुत तेज गर्माहट गले से नीचे उतरी और मुंह में हलकी झनझनाहट का एहसास होने लगा. अम्मा ने बताया कि यह उवा (एक प्रकार का जौ) से बनी दारु है जो उन्होंने खुद बनायी है. पूजा पाठ, काम-काज हर चीज में इसकी जरुरत होती है. कुछ मिनटों में हमारे शरीर हल्के महसूस होने लगे और थकान कहीं गायब हो गयी.
अम्मा के साथ कुछ देर बतियाने के बाद हम गाँव में अन्य लोगों से मिले और गाँव को देखने लगे. सारे खेत गुलाबी रंग से भरे हुए थे. बीच-बीच में कुछ सरसों के पीले फूल झलक रहे थे. पलथी के इन गुलाबी फूलों के पार एक घना चीड़ का जंगल नजर आ रहा था, जहाँ हमने आगे के सफ़र पर जाना था. लेकिन अभी हमें यहाँ से चरागाहों, मंदिरों, जंगलों को लोगों को जान समझ कर वापस तेदांग जाना था और अपने साथ ले जानी थी कई कहानियां, जहाँ कुछ और कहानियां आ रही थी बरास्ता लोकेश दा और खग्गी दा. Darma Valley Travelogue Vinod Upreti
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पिथौरागढ़ में रहने वाले विनोद उप्रेती शिक्षा के पेशे से जुड़े हैं. फोटोग्राफी शौक रखने वाले विनोद ने उच्च हिमालयी क्षेत्रों की अनेक यात्राएं की हैं और उनका गद्य बहुत सुन्दर है. विनोद को जानने वाले उनके आला दर्जे के सेन्स ऑफ़ ह्यूमर से वाकिफ हैं.
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