उत्तराखंड में एक बार फिर से नेतृत्व परिवर्तन की खबरें उठने लगी है. कोरोना की तीसरी लहर संबंधी केंद्र द्वारा राज्यों को जारी नई गाइडलाइन्स के बाद से इस खबर को और हवा मिलने लगी है. केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को चेतावनी दी है और कहा है कि सावधानीपूर्वक ही एक्टिविटिज को बढ़ावा देना चाहिए. केंद्र की तरफ से बेहद महत्वपूर्ण कोविड एप्रोप्रियेट बिहेवियर की पांच स्तरीय रणनीति को सुनिश्चित करने की अपील की गई है.
(Constitutional Crisis in Uttarakhand)
केंद्र की तरफ से एम्स निदेशक रणदीप गुलेरिया ने शनिवार को चेतावनी देते हुए कहा है कि कोरोना की तीसरी लहर अगले 6 से 8 हफ्ते में आ सकती है.
इस चेतावनी का अर्थ यह निकाला जा रहा है कि आने वाले दिनों में उत्तराखंड में चुनाव संभव नहीं है जबकि वर्तमान में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को 9 सितंबर को छह महीने पूरे होने से पहले विधानसभा का निर्वाचित सदस्य बनना है अन्यथा उत्तराखंड में एक संवैधानिक संकट पैदा हो जायेगा.
उत्तराखंड में गंगोत्री और हल्द्वानी विधानसभा सीटें मौजूदा विधायकों की मौत की वजह से खाली हैं. विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने में 9 महीने बचे हैं और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151 ए के तहत, उस स्थिति में उप-चुनाव नहीं हो सकता, जहां आम चुनाव के लिए केवल एक साल बाकी हो.
(Constitutional Crisis in Uttarakhand)
संविधान का अनुच्छेद 164(4) कहता है – राज्य का कोई मंत्री यदि छह महीने बाद भी राज्य की विधानसभा का सदस्य नहीं बन पाता है तो उसे अपना पद छोड़ना होगा. ऐसे में कयास लगाया जा रहा है कि उत्तराखंड में एक बार फिर नेतृत्व परिवर्तन की संभावना बनी हुई है.
यदि यही स्थित रहती है तो उत्तराखंड में भाजपा के पास दो विकल्प हैं या तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाय या मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के स्थान पर अन्य किसी नेता को मुख्यमंत्री बनाया जाय. वर्तमान मुख्यमंत्री को बिना विधान सभा में निर्वाचित हुये दुबारा मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा सकता है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ऐसे किसी प्रयास को पूरी तरह से गैर संवैधानिक बता चुका है, जिसमें किसी सीएम को बिना सदन का सदस्य रहे छह महीने से आगे का विस्तार दिया जाए.
(Constitutional Crisis in Uttarakhand)
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