पहले उत्तर प्रदेश का हिस्सा रहे उत्तराखण्ड को 2000 में अलग राज्य का दर्जा मिला. इसके बाद कई अन्य प्रक्रियाओं के साथ ही राज्य के प्रतीक चिन्ह भी तय किये गए. कॉमन पीकॉक को राज्य तितली का दर्जा दिया गया. Papilionidae परिवार की यह खूबसूरत तितली हिमालयी देशों की एक दुर्लभ तितली है. यह भारत के उच्च हिमालयी
क्षेत्रों के अलावा चीन, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणी हिमालय के एशियाई देशों में पायी जाती है. यह 7000 फीट से ज्यादा की ऊंचाई में पाई जाती है.
मोर जैसे रूप-रंग का होने की वजह से इसे ‘कॉमन पीकॉक बटरफ्लाई’ कहा जाता है. इस तितली को बसंत के मौसम में मार्च से लेकर जाड़ों की शुरुआत में अक्टूबर तक
आसानी से देखा जा सकता है. इसका वैज्ञानिक नाम ‘पैपिलियो बायनर’ Papilio bianor है.
उत्तराखण्ड में तितलियों की 500 से अधिक प्रजातियाँ पायी जाती हैं, कॉमन पीकॉक इनमें से एक है. भारत में यह उतराखंड के अलावा हिमाचल प्रदेश, उत्तर पूर्व के राज्यों में पायी जाती है. इस खूबसूरत तितली का जीवन काल डेढ़ महीने का होता है.
गौरतलब है कि राज्य की तितलियों के संरक्षण के लिए सरकार द्वारा प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में बटरफ्लाई पार्कों का निर्माण किया जा रहा है. इससे तितलियों को तो संरक्षित किया ही जा सकेगा साथ ही राज्य में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा.
पिछले साल उत्तराखण्ड के डीडीहाट में ही भारत की सबसे बड़ी तितली ट्रोइडेस को भी खोजा गया था. इस तितली को गोल्डन बर्ड विंग के नाम से भी जाता जाता है. तितली की यह प्रजाति उत्तराखण्ड के अलावा चीन और ताइवान में भी पायी जाती है. शोध संस्थानों में संरक्षित इस तितली को लम्बे समय से नहीं देखा गया था. 194 मिलीमीटर लम्बी इस तितली को मई से अगस्त तक के महीनों में देखा जा सकता है. इस तितली ने देश-दुनिया में उत्तराखण्ड राज्य में एक नयी पहचान दी है.
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