संगीत का जादू सर चढ़कर बोलता है लोक का जादुई प्रभाव होता है. इन कथनों की सच्चाई दूरदर्शन के एक विज्ञापन-गीत के जरिए समझ में आई. तत्कालीन सरकार ने तय किया कि देश को विविधता में एकता विषय पर एक गहरा संदेश दिया जाना चाहिए. बेसुरेपन का इलाज सुरीली तान के सिवा और कुछ नहीं हो सकता. यह गीत लोगों की जुबान पर इस कदर चढ़ा कि ग्रामीण बच्चे तमिल, तेलुगू और कन्नड़ तक के अंतरे दोहराते नजर आने लगे. (Column by Lalit Mohan Rayal)
सूचना प्रसारण मंत्रालय ने काम का जिम्मा सौंपा दूरदर्शन को. दूरदर्शन को किसी एड एजेंसी से इस काम में मदद मिली. अगले महीने 15 अगस्त को इस गीत के प्रसारण को शुरू हुए 33 वर्ष पूरे हो जाएंगे.
गीत बहुत सरल और सहज भाषा में लिखा गया था-
मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा
सुर की नदियाँ हर दिशा में बह के सागर में मिलें
बादलों का रूप लेकर बरसें हल्के हल्के…
गीत इतना सा ही था लेकिन उसे आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं (तब 13) में रोचक अंदाज में पेश किया गया. इसी मुखड़े को अलग-अलग कलाकारों के जरिए, बहुभाषी भारत के परिदृश्य में फिल्माया गया.
यह गीत पक्के राग यानी राग भैरवी में गाया गया. इसके पीछे भी एक मकसद था. वैसे तो राग भैरवी सुबह के समय गाया जाने वाला राग है. अत्यंत मधुर होने के चलते इसे हर समय गाया जा सकता है. सभी समारोहों का समापन राग भैरवी से करने का चलन सा हो गया था.
समूचे देश को एक गुलदस्ते में दिखाना था. तो इसे शास्त्रीय संगीत, कर्नाटक संगीत, लोक संगीत और पाश्चात्य संगीत की धुनों में गूँथकर परोसा गया. स्वर पंडित भीमसेन जोशी, लता मंगेशकर, बाला मुरली कृष्णन और अन्य सितारों का था.
गीत के फिल्मांकन में खेल, कला, साहित्य और अन्य विधाओं से जुड़ी नामचीन शख्सियतें शामिल रहीं। कोशिश रही कि देश के सभी हिस्सों का प्रतिनिधित्व हो जाए। उद्देश्य भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और विविधता में एकता की अंतर्निहित भावना को दर्शाना था। इसमें क्या नहीं दिखाया गया. नदी-सागर, जल-सारणी, झील-प्रपात, नहरें, जलराशियाँ, नाव-शिकारा, लीक पर चलता ट्रैक्टर, अठखेलियाँ खेलते हाथी और महावत। कहने का मतलब है, छह मिनट के इस गीत में समूचा लोक समाहित था.
भारत 21वीं सदी की बाट जोह रहा था. एकजुटता का आह्वान गीत का मकसद था. भारतीय रेलवे व अन्य योजनाओं के जरिए इसमें आधुनिक होते भारत की तस्वीरें दिखाई गईं.
यह एक गतिमान गीत था. आखिर में विपरीत दिशाओं से आती तीन रंगों की स्कूली बच्चों की मानव-श्रृंखलाएँ एकसूत्र में बँधकर भारत माता के आकार में सिमट जाती. इसे भी पढ़ें : महाभारत पढ़ने का सही तरीका
चॉन्य् तरज़ तय म्यॉन्य् तरज़
इक-वट बनि यि सॉन्य् तरज़ (कश्मीरी)
तेरा सुर मिले मेरे सुर दे नाल
मिलके बणे इक नवाँ सुर ताल (पंजाबी)
मुहिंजो सुर तुहिंजे साँ प्यारा मिले जडेंह
गीत असाँजो मधुर तरानो बणे तडेंह (सिंधी)
सुर का दरिया बह के सागर में मिले
बादलाँ दा रूप लैके बरसण हौले हौले (पंजाबी)
इसैन्दाल नम्म इरुवरिन सुरमुम नमदक्कुम
तिसैई वैरु आनालुम आऴि सेर
मुगिलाय मऴैयय पोऴिवदु पोल इसै
नम इसै (तमिल)
नन्न ध्वनिगॆ निन्न ध्वनिय,
सेरिदन्तॆ नम्म ध्वनिय (कन्नड़)
ना स्वरमु नी स्वरमु संगम्ममै,
मन स्वरंगा अवतरिंचे (तेलुगु)
निंडॆ स्वरमुम् नींगळुडॆ स्वरमुम्
धट्टुचेयुम् नमुडेय स्वरम (मलयालम)
तोमार शुर मोदेर शुर
सृष्टि करूर अइको शुर (बांग्ला)
सृष्टि हो करून अइको तान (असमिया)
तोमा मोरा स्वरेर मिलन
सृष्टि करे चालबोचतन (उड़िया)
मिले सुर जो थारो म्हारो
बणे आपणो सुर निरालो (गुजराती)
माँझा तुमच्या जुलता तारा
मधुर सुराँचा बरसती धारा (मराठी) (Column by Lalit Mohan Rayal)
उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दूसरी पुस्तक ‘अथ श्री प्रयाग कथा’ 2019 में छप कर आई है. यह उनके इलाहाबाद के दिनों के संस्मरणों का संग्रह है. उनकी एक अन्य पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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