कॉलम

लौंडे-लबारों की बरात में सयाने बूढ़े की होशियारी

छी भै ये बूढ़े लोग भी न, बहुत तंग कर देते हैं. जब कुछ काम नहीं कर सकते तो आराम से खाएं, पियें एक जगह में बैठे रहें. जब देखो सारे घर में घूम घूम के ये करो, वो करो, ऐसे करो, वैसे करो. इस काम को करने से बुरा होता है, उस काम को करने से सुख संम्पत्ति आती है. वो चीज कहाँ गयी, घर में कौन आया, कौन गया. क्यों आया, क्या खिलाया. तुम तो घर को लुटा दोगे. हर बात पर टोका टाकी. हर बात में अपनी खुट्टी ऊपर. Column by Geeta Gairola

घर की भीड़ में काम करने वाले सब जवान, जहान लोग इस बड़बड़ाहट के लिए कुछ बोल तो सकते नहीं. पीठ पीछे सर पर हाथ लगा के बोलते, हद हो गयी. अरे! हम क्या घास खोद रहे हैं. इनका जमाना गया, अब नया जमाना है हमारा जमाना. अरे हम भी तो सब समझते हैं. पर जब देखो अपने जमाने की घिसी पिटी बातें. हमें तो कुछ समझते ही नहीं.

दो पीढ़ियों की इस तनातनी में प्रेम, इज्जत, मान, सम्मान सब होता है पर पुरानी पीढ़ी को अपनी अहमियत ख़त्म होती लगती है. उन्हें लगता नए ज़माने के बच्चे उनके अनुभवों से फायदा उठाये. जवानों को लगता है अरे! इन्होंने अपनी जिंदगी गुजार दी अब हमें भी तो कुछ करने दें. गंगा फूफू शांत रह कर चुपचाप दोनों की सुनती रहती. हम कहते, ये देखो फूफू कितनी अच्छी है, अपना नहाया, धोया, खाया पिया, पूजा पाठ निबटाया और चुप घाम तापती रहती है.

न किसी बात पर टोका टाकी न कोई बड़बडाहट. दिनभर की गहमागहमी के साथ रात को रोज की तरह मैं बोली, फूफू कथा लगा. वो खित्त खित्त करके हंस दी. मेरी पीठ मलासी और बोली मेरे साथ ही तेरे बाल भी पक गए पर मेरे लिये तू छोटी बच्ची ही है. बहुत अच्छा लगता है इन दिनों में, जब मैं कथा लगाती हूँ और तू सुनती है.

द भुलु अब किसके पास बगत है हमारी कथा सुनने का. हम तो पुराने जमाने की ऐसी बिरासत हो गए जो घर में सजा-धजा के रख देते हैं. जो देखती तो सब है पर बोले कुछ नहीं.

मुझे आज दिन भर की हलचल याद आ गयी. झेंप मिटाने के लिए बोली फूफू कथा लगा न.

त सूँण भुलु आज ऐसी ही एक कथा सुन. किसी गाँव में लड़के के ब्याह की धूम मची थी. माँ बाप अपनी चिंता में, किसको न्यूतना है, पैसे का क्या होगा, किसको क्या देना है, कोई नाराज न हो जाये, दीसा द्याण की बिदाई कैसे होगी, कितनी भेली के अरसे बनेगे, कितने मण दाल की पकौड़ी बनेंगी, मीठी स्वाली कितने दूण आटे की बनेंगी, दीसा ध्यानियों को दूण में क्या देंगे. बस चिंता ही चिंता.

बूढ़े बुजुर्ग पत्तल, पुड़के बनाते अपने जमाने में हुए किसी ब्याह के किस्से सुना कर हुक्के के धुएं को नाक से छोड़ते हाथ के साथ मुँह भी चलाते जाते. घर की औरतें कभी बाहर, कभी भीतर जाती थक रही थी. सबके अपने-अपने काम थे. बुजुर्ग, अधेड़, जवान, युवा सब बारात में जाने की तैयारी कर रहे थे.

पांच लोग स्या पट्टा (ब्याह का कार्यक्रम जो लड़के वालों की तरफ से ब्याह से पहले लड़की के घर जाता है) ले कर ब्योली के घर गए थे. अब भुलु लड़के नेक थे तो वहां जितनी डक्की मार सकते थे, जितनी रौब दिखा सकते थे दिखाते रहे. हमें खाना ऐसा चाहिए, रहने की व्यवस्था वैसी चाहिए. अपने पौणा होने का जितना दबाव लड़की वालों पर डाल सकते थे डाला.

ब्यौली के घर वाले बारातियों की ऐसी हरकतें देख कर बहुत दुखी हो गए. उन्हें लगा हमने अपनी बेटी कितने ओछे, नंगे लोगों को दे दी. वो अब लड़के वालों के घर से स्या पट्टा ले कर आये हुए पौणों को देख कर बहुत पछताने लगे. लड़की का मामा बहुत समझदार आदमी था. लड़की के बाबा से बोला जीजा जी तुम फिकर मत करो. इनसे अब मुझे निपटने दो.

मामा ने लड़के वाले बामण को बुलाया और बोला बामण जी हम बरातियों के लिए जैसा तुम कहोगे वैसी ही व्यवस्था कर देंगे. खुश कर देंगे सारी बरात को. पर हमारी एक शर्त है, वो आप लोगों को पूरी करनी पड़ेगी. बरात में सब जवान लड़के आएंगे, एक भी बूढ़ा नहीं आना चाहिए. बामण खुद जवान लड़का था. उसने बाकी लोगों की तरफ देखा और खुश हो के बोला हमें शर्त मंजूर है.

स्या पट्टा में पौणे बन कर जाने वाले लोगों ने जब ब्याह वाले घर में लड़की वालों की शर्त बताई तो घिपरोल मच गया. ये क्या बात हुई. जरूर स्या पट्टा ले कर जाने वालों ने कुछ गड़बड़ की है. बूढ़े सयाने जिन्होंने बरात में जाने के लिए कई दिन पहले से कपडे लत्ते धो-धा के सिरहाने के नीचे रख दिए थे, वो उदास हो गए. कन मरी यूँ छोरों कु.

लड़के का पिता बहुत चिंतित था पर बाबा ब्या तो करना ही था. और इधर छोरे-छपारे, लौंडे-लबारे इतने खुश थे कि पूछो ही मत. अब आएगा मजा. इन बूढ़ों की टोका-टाकी से हमारा सारा मजा ख़त्म हो जाता है. घरातियों की लड़कियों, बव्वारियों के साथ ब्यौ बरात में मजाक करने का मजा ही कुछ और होता है. उधर उन्होंने गाली गा के देनी शुरू की और इधर हमारी फौज जबाब देने में पीछे नहीं रहेगी. बूढ़े तो हर बगत ऑंखें दिखाते रहते है. ये मत करो. ऐसा मत बोलो. जादा चकरौल मत मचाओ.

बस जुल्फी जल्फी बना के, स्यून्दि पाटी निकाल के छोरों की बारात हो गयी तैयार. बड़े बुजुर्ग लौंडे-लबारों की सब चटका-पटक़ी समझ रहे थे पर ब्यौली के घर वालों की शर्त के आगे करते क्या, मजबूर थे बिचारे. बरात की तैयारी करते हजार बार बारातियों को बरज दिया, देखो रै ख़बरदार नाक मत कटाना हो हमारी. कहीं हमारे गांव के गीत न लग जाएँ कल परसों, भारै…

तभी एक लड़का बोला यार ब्यौली वालों की शर्त के पीछे कोई तो बात है. कुछ गड़बड़ हो सकती है, उन्होंने बूढ़े को ही लाने को न क्यों बोला. ऐसा करते हैं एक बूढ़े आदमी को छुपा के ले जाते हैं. कुछ लोगों को उस लड़के की बात जंच गयी. कुछ बोले न भै न लड़की वालों ने देख लिया तो बरात बिना ब्यौले के वापिस कर देंगे. अब बात यहाँ फंसी कि ले कैसे जायेंगे. सोच बिचार के बाद ये तय हुआ कि बूढ़े को ढोल की पूड़ खोल के उसके अंदर बंद कर देंगे.

द बाबा चली लौंडे-लबारों से भरी बरात. उन दिनों इस ब्याह की हाम सारी पट्टी में फ़ैल गयी थी. लोग अपना काम-धाम छोड़कर बरात को देखने चले आते. तो पंहुच गयी बरात लड़की के घर पर. आम पीपल की बंदनवार और रंग बिरंगी झंडियों से सजा द्वार देख कर बराती देखे रह गए.

सजावट से नजर हटी तो देखते क्या हैं द्वार के दोनों तरफ बड़े-बड़े डंडे लेकर ब्योली के सारे रिश्तेदार खड़े हैं. ब्यौले वालों ने एक-एक बाराती को देख कर भीतर जाने दिया. चारों तरफ चांदनी तनी थी. दरियों के ऊपर कालीन बिछे थे. थके बाराती आराम से पैर फैला कर बैठ गए. कुछ छोरों की आँखे छज्जों में बैठी औरतों की लङग्यात में सुंदर चेहरों की ढूँढ में नाचने लगी. छज्जा से गालियों की बौछार आ रही थी.

बड़ी धूम गजर से आई रे बारात
अपनी अम्मा को नचाती क्यूं न लाई रे बारात
अपनी बहना को नचाती क्यों न लाई रे बारात

ब्यौला की आरती उतार कर धुली अर्क की पूजा होने लगी. थके बाराती चाय खाने के बुलावे का इंतजार करने लगे. एक घंटा बीत गया, ब्याह का सारा पूजा पाठ निबट गया और ब्योली वाले ब्यौला को लेकर अंदर चले गए. सारी ही ही ठी ठी के बाद बरातियों का सबर ख़तम हो गया. उनमें से एक ने खाने-पीने के बारे में पूछा.

अब लड़की का मामा फिर सामने आया बोला चलो सब बाराती खाना खिलाते हैं. देखना करना क्या था भुली वहां तो चाल ही उल्टी थी. एक गुठ्यार में एक किनारे पर कुछ चावलों के बोरे रखे थे और दूसरे किनारे पर बकरे बंधे थे. गुठ्यार के चारोँ तरफ ये बड़े-बड़े लट्ठे लेकर लोग खड़े थे. लड़की का मामा बोला अब हमने तुम्हारी हर बात मानी अब हर बाराती के लिए एक बकरा और चावल का बोरा है. खाओ सब.

द भुलु किसका खाना किसकी भूख. बारातियों के तो छक्के छूट गए. क्या जो करें अब. स्या पट्टा लाने वालों की चकड़ैती की ये सजा मिलेगी, ऐसा तो सोचा ही नहीं था. वो तो बाराती की धौंस में थे. पसीने के साथ भूख प्यास से रोना छूट गया. ओहो ये ब्योली वाले तो हमसे भी बड़े चकड़ैत निकले. तभी तो बूढों को लाने के लिए मना किया था इन्होंने. सबको अपने बूढ़े लोगों की याद आने लगी. वो होते तो कुछ रास्ता निकालते.

तभी एक चुपके से सरक लिया और ढोल के पास जा के फुसफुसाया बोडा जी भारी गलगल आ गयी यहाँ तो. अंदर से आवाज आई क्या हुआ बे! मेरे तो भूख से पराणी जा रही है. अब आई तुमको मेरी याद. अरे बोडा हमारी पराणी छुटाओ पहले. उसने पूरी बात लगा दी. बोडा जी बोले अरे बेवकूफों तभी तो कहते हैं छोरे-छपारों के बस की कुछ नहीं होती.

इनु करो बल पहले एक बकरा मारो और सब उसी को खाओ फिर दूसरा मारना और उसे भी बाँट के खाना. मेरे लिए भी ले आना रै. मुझे मत बिसरना. अब वो लड़का आया उसने एक बकरा मारा और सबको बाँट दिया. ऐसे ही बाँट चावलों की भी की. लड़की का मामा बोला तुम्हारे साथ कोई तो बूढा आदमी आया है. ऐसा सोचना तुम्हारी बुद्धि की बात नही है.

बाराती साफ़ मुकर गए कि उनके साथ कोई बूढ़ा भी है. तब ब्योली का मामा बोला हम तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे पर तुम उस बूढ़े आदमी को ले आओ. तब जाके ये छोरे बाराती बोडा जी को ढोल के पूड़े से निकल कर लाये. ब्योली वाले बोले हम तुम्हे सबक सिखाना चाहते थे. चलो सब बाराती, खाने की पूरी व्यवस्था है.

इस ब्याह के किससे बहुत दिनों तक लोग सुनते सुनाते रहे. बूढ़े कहते; देखा बाबा बूढ़ों की बगत.

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-गीता गैरोला

देहरादून में रहनेवाली गीता गैरोला नामचीन्ह लेखिका और सामाजिक कार्यकर्त्री हैं. उनकी पुस्तक ‘मल्यों की डार’ बहुत चर्चित रही है. महिलाओं के अधिकारों और उनसे सम्बंधित अन्य मुद्दों पर उनकी कलम बेबाकी से चलती रही है. काफल ट्री की नियमित लेखिका.

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