भाई साहब एक साथ कई प्रतिभाओं के मालिक हैं यानी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. भाई साहब मौके के हिसाब से गा सकते हैं, नाच सकते हैं, अभिनय कर सकते हैं. जीवन का कौन सा क्षेत्र है, जहां भाई साहब की प्रतिभा फूटने को बेताब नहीं रहती. वे राजनीतिज्ञ हैं, कवि हैं, लेखक हैं, चित्रकार व छायाकार हैं. वे बड़े-बड़े आयोजन करा सकते हैं. नृत्य, संगीत तथा नाटक के निर्देशक बन सकते हैं. जिस दौर में जिस कला या सांस्कृतिक विधा की बहार होती वे उसी के रचनाकार बनकर उभर जाते हैं.
विडम्बना यह है कि भाई साहब जैसी प्रतिभाओं के होते हुए भी हम प्रतिभाहीन दौर में जी रहे हैं. हमने जितनी प्रगति की है, उस अनुपात में हमारे पास प्रतिभाएं नहीं हैं. दरअसल प्रतिभाएं देश-समाज, कला-संस्कृति, धर्म-मान्यताओं के बारे में नये तरीके से सोचती हैं. अपने पाठकों तथा दर्शकों को उद्वेलित कर उन्हें एक बेहतर तथा समावेशी समाज के निर्माण के लिए प्रेरित करती हैं. वे सत्ता के प्रतिपक्ष में रहती हैं तथा मंच व पुरस्कारों से असहज हो जाती हैं. मौलिक प्रतिभाएं पुराने के प्रति अविश्वास पैदा करती हैं. उन की यही आदत हमें बुरी लगती है. हम दोयम स्तर के नेताओं, दुकानदारों, ठेकेदारों, खरीददारों तथा नौकरों की फौज खड़ी करते जा रहे हैं. ये लोग अपनी जैसी दोयम दर्जे की प्रतिभाओं को प्रतिभा समझते हैं. इसलिए हमारे पास सच को कहने, अपनी वास्तविकता से आंख मिलाने के लिए प्रेरित करने के बजाय लोगों का मनोरंजन करने वाली प्रतिभाओं की कमी नहीं है.
भाई साहब लोगों के लिए नहीं खुद के लिए रचना करते हैं. वे बदलाव तथा प्रतिबद्धता के लिए नहीं लोगों की खुशी के लिए गाते हैं. उनकी गतिविधियों के केंद्र में देश-समाज नहीं उनका अपना वजूद रहता है. भाई साहब खुद पर मोहित रहने वाले लोगों में से हैं. आप भले ही उनकी प्रतिभा को दोयम दर्जे की कहें. मगर वे अपनी प्रतिभा के कायल हैं. वे आये दिन पुरस्कृत होते रहते हैं. अपनी खूबसूरत तस्वीरों के साथ खुद की उपलब्धियों की सूचना लोगों को देते रहते हैं. लोग उनकी प्रतिभा से अभिभूत रहते हैं और उनके कमेंट बॉक्स में शुभकामनाओं की बौछार होती रहती है. भाई साहब खुद को सामान्य लोगों की श्रेणी से ऊपर मानकर चलते हैं. ऐसी किसी भी कोशिश से वे आहत हो जाते हैं तथा ऐसा करने वालों को अपना विरोधी मान लेते हैं.
भाई साहब को उपलब्धियों को अर्जित करने का इतना शौक है कि वे दूसरों की रचनाओं या कोशिशों को बड़ी होशियारी से अपना बनाकर लोगों के सामने प्रस्तुत कर देते हैं. उन्हें जीवन में शीर्ष की स्थिति खूब पसंद है. वे विभिन्न क्षेत्रों के शीर्ष लोगों के निरन्तर संपर्क में रहते हैं. वे खुद को भी शीर्ष का व्यक्ति समझते हैं तथा दूसरों से अनुयायियों के जैसे व्यवहार की उम्मीद करते हैं.
हम मौलिक प्रतिभाओं से खौफ खाने वाले लोग हैं. उन्हें बर्दाश्त नहीं कर पाते. उनके खिलाफ साजिशें और षडयंत्र करते हैं. उनके विचार हमें अपनी मान्यताओं पर खतरा प्रतीत होते हैं. हम उनकी आवाज को दबाने की हर संभव कोशिश करते हैं. उन्हें चुप करने के लिए हम कभी उन्हें पश्चिम से प्रभावित, कभी कम्युनिस्ट, कभी नास्तिक, कभी देशद्रोही, कभी माओवादी कहते हैं.
हम असली प्रतिभाओं के सामने नकली प्रतिभाओं को खड़ा करते हैं. हमने अपनी सत्ता तथा ताकत के दम पर कर्ण और एकलव्य को उभरने नहीं दिया. हमने कबीर, विवेकानंद, दयानंद सरस्वती जैसों से सीखने के बजाय आसाराम, राम-रहीम, राधे मां, ओम बाबा, निर्मल बाबा, रामपाल जैसे नमूने तैयार किये. हमने नरेंद्र दाभोलकर, कलबुर्गी, पनसारे तथा गौरी लंकेश जैसी आवाजों को चुप कर दिया. हम कन्हैया कुमार के सामने संबित पात्रा को बैठाने वाले लोग हैं. हम उसके द्वारा उठाये जाने वाले मुद्दों पर बात नहीं करते बल्कि देश विरोधी नारों, देशभक्ति की बातों से उसकी आवाज दबा देना चाहते हैं.
भाई साहब के अपने कोई विचार, सिद्धांत और प्रतिबद्धता नहीं है. यह अलग बात है कि वे अपने को मौके के अनुसार वैचारिक दिखाने की भरपूर कोशिश करते हैं. उनकी प्रतिबद्धता सत्ता के अनुसार बदल जाती है. जब उदारतावादी सत्ता में होते हैं, वे सर्वधर्म समभाव तथा सद्भावना की बात करने लगते हैं. उनकी धर्मनिरपेक्षता की बातें सुनकर आप निहाल हो जाते हैं. जब दक्षिणपंथी सत्ता में होते हैं. वे प्राचीन गौरव, अपने धर्म की महानता, मंदिर-मस्जिद, दूसरे धर्म की बुराइयों तथा आरक्षण की बात करने लगते हैं.
भाई साहब को अभी समझना है कि सच्चा कवि होने का अर्थ है, कबीर, निराला तथा पाश होना है. उनका जैसा सरल तथा परेशान करने वाला जीवन जीना और बेहतर जीवन को समर्पित तथा उद्वेलित करने वाली कविताएं लिखना. अपने समय के सच से आंख मिलाना तथा उसे आम जनता की आकांक्षाओं के अनुसार पूरी तटस्थता से बयां करना. भाई साहब को अभी यह भी समझना है कि सिर्फ तुकबंदी तथा जज्बातों की बात करना कविता नहीं है. इसी वजह से उनकी कविता खिलते ही मुर्झा जाती है और उन्हें लोगों को अपनी याद दिलाने के लिए नई-नई खुराफातें करनी पड़ती है.
फिलहाल तो यह भाई साहब जैसी बहुमुखी प्रतिभाओं की कामयाबी का दौर है. उनकी सफलता देश-समाज तथा आम लोगों की असफलता बन जाती है. मगर तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद कबीर, निराला, पाश, सफदर हाशमी जैसी प्रतिभाएं अपना काम कर रही हैं. वे हैं, यही उम्मीद बनाये रखने के लिए काफी है.
दिनेश कर्नाटक
भारतीय ज्ञानपीठ के नवलेखन पुरस्कार से पुरस्कृत दिनेश कर्नाटक चर्चित युवा साहित्यकार हैं. रानीबाग में रहने वाले दिनेश की कहानी, उपन्यास व यात्रा की पांच किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं. ‘शैक्षिक दख़ल’ पत्रिका की सम्पादकीय टीम का हिस्सा हैं.
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