मेरे घर से कुछ दूर सड़क पर एक मूंगफली का खोमचा जाड़ा शुरू होते ही अवतरित होता है. नवंबर की जल्दबाज सांझ के झुटपुटे में जिस तरह माथे के ऊपर के आकाश से वह खोमचा हौले से उतर कर सोंधी गंध के साथ सड़क के सरपट भागते जीवन को हस्बेमामूल बदल डालता है, वह किसी अवतार का ही काम है. उसकी चटनी में पुरातन, घरेलू लेकिन इंद्रियों के पार ले जाती एक लपक है जिसके कारण उसके खोमचे पर भीड़ लगी रहती है. चटनी उसका यूनिक सेलिंग प्रपोर्शन है जिससे उसका लंबा-चौड़ा परिवार जिसका सबसे नया सिरा शहर में रहता है और पुराना वाला गांव में, बड़े मजे में चल रहा है. उसकी मोटी, अनगढ़ उंगलियों के चुन्नट से बंधती चटनी की वह पुड़िया मुझे एक वरदान, एक जादू की पुड़िया लगती है जो एक बड़े परिवार का भरण-पोषण कर सकती है. पुरानी कहानियों के मंत्रसिद्ध शंख, फूल या पात्र की तरह जिनसे कुछ भी पाया जा सकता था.
अचानक उसकी पुड़िया का रहस्य मुझे पता चल गया. वह खोमचा समेट कर घर जाने की तैयारी में था और मैं आखिरी ग्राहक आन पहुंचा. ज्यादा चटनी देने के आग्रह पर उसने दरियादिली से कहा, जितनी चटनी है सब ले जाएं क्योंकि हर दिन सिलबट्टे पर ताजी चटनी पीसनी पड़ती है. देने का भाव आया तो स्वाभाविक ही वह जरा सा वाचाल हो गया. उसने स्वगत कहा, अगर मिक्सी में पीसो तो मशीन की गरमी से धनिया जल जाती है और लोग कहते हैं कि चटनी में धनिया की जगह मूली के पत्ते डाले हैं. धनिये और अदरक का स्वाद तो सिलबट्टे से ही आ पाता है.
वाकई यह एक रहस्य था. जो अचक्के खुल गया. कैसे छोटे-छोटे रहस्य कई जिंदगियों को टिकाए, बनाए और आगे विकसित करते रहते हैं.
वैसे यह कोई छोटा रहस्य भी नहीं है. इसका पता कई पीढ़ियों ने पत्थर, घर्षण, तापमान और धनिए की तासीर के संबंध को परखने के बाद पाया होगा. हम किसी का ई-मेल नहीं जानते, फोन नंबर नहीं जानते, रिश्तेदारियां नहीं जानते, कोई खास आदत नहीं जानते ये सब रहस्य हैं. अगर जानते तो जिन्दगी जो आज है शायद उससे अधिक संतोषजनक होती. अगर सब जान ही जाते तो अनजाने के प्रति जो खिंचाव यानि जिन्दगी का एक्सीलेरेटर है वह नहीं होता. रहस्य जरूरी है. उसके बिना जीवन खत्म हो जाता है. हम मरने लगते हैं.
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