Featured

चूड़धार: जहां भगवान शिव ने किया था तांडव नृत्य

चूड़धार में भोलेनाथ अपने परिवार संग रहते हैं.

हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर स्थित चूड़धार घाटी के बारे में वैसे तो आप गूगल सर्च करेंगे तो एक क्लिक पर भौगोलिक जानकारी आपके सामने होगी. (Churdhar Himachal Pradesh)

लेकिन कुछ अनसुनी, अनकही कहानियां किस्से, कहावतें भी हैं. जो बहुत कम लोग जानते होंगे. तो आइए आपको लिए चलते हैं एक अद्भुत रोमांच से भरी धार्मिक यात्रा पर.

कुछ साल पहले अपने नवोदयन साथियों गीतांजलि, सीमा, अर्जुन, उषा, रवि, शीतल दी संग यहां जाना हुआ. कार्यक्रम पर मुहर लगते ही मेरी नींद काफूर हो गई. चूंकि चूड़धार के बारे बचपन से कई किस्से सुने थे. परिवार के सभी लोग हर चार साल के अंतराल पर होने वाले शीरगूल महाराज की पालकी के स्नान के अवसर पर यहां जा चुके थे. लेकिन मुझे मौका नहीं मिल पाता था. लिहाजा लंबे अरसे बाद अचानक चल पड़ने की खबर पाकर उत्साहित होना भी लाजमी था.

हम सभी दोस्त पांवटा साहिब में सीमा के घर एकत्रित हुए. जहां आंटी जी को मैंने सभी के सुरक्षा की जिम्मेदारी का भरोसा दिया, फिर उनके आशीर्वाद से यात्रा शुरू हुई.

हम पहले ही दिन शिलाई होते हुए सराहन पहुंचे. फिर वहां से शुरू हुई करीब आठ किलोमीटर की पैदल यात्रा. एकदम खड़ी चढ़ाई, लेकिन थकान वास्तव में कोई खास नहीं लगती. जिसकी वजह है प्रकृति के सुंदर नजारे. जैसे-जैसे आप मंदिर के नजदीक पहुंचेंगे, वैसे वैसे आप और अधिक ऊर्जावान होते जाएंगे. बीच में गुर्जरों का डेरा पड़ता है. जहां हमने भी अन्य लोगों की तरह भांग के पकोड़े, जलेबी व चाय का आनंद लिया. लेकिन ध्यान रहे भांग के पकोड़े ज्यादा न खाएं. हमारे साथी डॉ. अर्जुन को भांग के अत्याधिक सेवन ने अगले दिन तक अपने आग़ोश में रखा था. खैर आगे बढ़ते हैं. पहाड़ का पारम्परिक वाद्य यंत्र रणसिंघा बजाने वाले कल्याण सिंह

फोटो: डॉ. अर्जुन

आधे रास्ते के बाद जैसे ही हमारी नजर हरी घास के बड़े-बड़े मैदानों पर पड़ी तो थकान पूरी तरह से गायब. हर कोई यहां से वहां भागने लगा. फोटोग्राफी का दौर चलता रहा.

मंदिर पहुंचने से ठीक पहले एक चट्टान मिलती है, जिसमें चूड़ेश्वर महाराज यानि भगवान शिव अपने परिवार संग रहते थे. इसके बाद आप देर शाम तक मंदिर पहुंचेंगे जहां सुबह जलस्रोत में स्नान के बाद हम सभी ने पवित्र शिवलिंग के दर्शन किये. फिर हम चोटी पर बने मंदिर पर गए.

यहां सांप के फन की तरह नजर आने वाली विशाल चट्टान पर चढ़कर जो नजारा देखा, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. चोटी से नजारा ऐसा कि मन स्वतः ही सवालों के समंदर में गोते लगाने लगता है. घास के हरे मैदानों में बिखरी भीमकाय चट्टानें भगवान शिव के तांडव नृत्य का एहसास कराती हैं. आप कुछ देर के लिए यहां ध्यान साधना जरूर करें. रहने और भोजन की व्यवस्था मंदिर कमेटी की ओर से की जाती है. अप्रैल मई और अक्टूबर नवंबर के समय यात्रा के लिए उत्तम है.

सभी फोटो: डॉ. अर्जुन

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

मूल रूप से हिमाचल के रहने वाले महावीर चौहान हाल-फिलहाल देहरादून में हिंदुस्तान दैनिक के तेजतर्रार रिपोर्टर के तौर पर जाने जाते हैं.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

हो हो होलक प्रिय की ढोलक : पावती कौन देगा

दिन गुजरा रातें बीतीं और दीर्घ समय अंतराल के बाद कागज काला कर मन को…

2 weeks ago

हिमालयन बॉक्सवुड: हिमालय का गुमनाम पेड़

हरे-घने हिमालयी जंगलों में, कई लोगों की नजरों से दूर, एक छोटी लेकिन वृक्ष  की…

2 weeks ago

भू कानून : उत्तराखण्ड की अस्मिता से खिलवाड़

उत्तराखण्ड में जमीनों के अंधाधुंध खरीद फरोख्त पर लगाम लगाने और यहॉ के मूल निवासियों…

2 weeks ago

यायावर की यादें : लेखक की अपनी यादों के भावनापूर्ण सिलसिले

देवेन्द्र मेवाड़ी साहित्य की दुनिया में मेरा पहला प्यार था. दुर्भाग्य से हममें से कोई…

2 weeks ago

कलबिष्ट : खसिया कुलदेवता

किताब की पैकिंग खुली तो आकर्षक सा मुखपन्ना था, नीले से पहाड़ पर सफेदी के…

3 weeks ago

खाम स्टेट और ब्रिटिश काल का कोटद्वार

गढ़वाल का प्रवेश द्वार और वर्तमान कोटद्वार-भाबर क्षेत्र 1900 के आसपास खाम स्टेट में आता…

3 weeks ago