सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ के धारचूला तहसील में काली एवं गोरी घाटी के मध्य उच्च हिमालय में स्थित छिपला कोट, अपने में विशेष धार्मिक महत्व रखता है. समुद्र तल से लगभग 4200 मीटर की ऊचाई एवं बरम कस्बे से लगभग 50-55 किलोमीटर की कठिन पैदल चढ़ाई के बाद स्थित यह बुग्याल क्षेत्र प्राकृतिक सौन्दर्य, जैव-विविधता के साथ देवी-देवताओं का निवास स्थान भी माना जाता है. भगवान केदार के नाम से इसे छिपला केदार नाम से भी जाता है.
(Chhipala Jaat 2015)
माता मैणामाई और पिता कोडिया नाग से जन्म लेने वाले केदार देवता दस भाई-बहन थे. तीन भाइयों में केदार सबसे छोटे थे. उदैण और मुदैण भाई और होकरा देवी, भराड़ी देवी, कोडिगाड़ी देवी, चानुला देवी, नंदा देवी, कालिका देवी, कोकिला देवी बहनें थी. बहनों में कोकिला देवी सबसे छोटी थी. कोकिला देवी, छिपला कोट के हृदय में स्थित गाँव कनार में विराजमान है अतः छिपला जात यात्रा कोकिला कनार मन्दिर से आरम्भ होती है. (यह कथा झोड़ा गायन से)
छिपला जात यात्रा – गोरी छाल में बरम, कनार आदि गाँवों के लोग प्रत्येक तीसरे वर्ष श्रावण भाद्र के मास में छिपलाकोट एवं नाजूरीकोट की यात्रा करते है. इसे छिपला जात नाम से जाना जाता है. यात्रा में विशेष यह है कि यहां बालकों का व्रतपन (जनेउ / मुण्डन संस्कार) किया जाता है. मान्यता है कि बिना व्रतपन वाले लोग एवं महिलाओं का इस क्षेत्र में जाना वर्जित है. जिन बालकों का व्रतपन होना होता है उन्हें नौलधप्या बोला जाता है. सभी नौलधप्या सफेद पोषाक, सफेद पगड़ी, हाथों में षंख एवं लाल-सफेद रंग का नेजा (ध्वज), गले में घंटी लेकर नंगे पांव चलते हैं. 4 दिवसीय यह धार्मिक यात्रा बरम कस्बे से आरम्भ होकर 16 किलोमीटर पैदल मार्ग यात्रा के प्रथम पड़ाव, माँ कोकिला के दरबार, कनार गांव पहुंचती है. दूसरे दिन प्रातः पूजा में पुजारी, जगरिया एवं बोण्या (अवतरित देवता) की गरिमामयी उपस्थिति में विशेष देव वाद्य यंत्रों शंख, भकोर (धात्विक पाइप यंत्र) की ध्वनि से देवताओं का आह्वान होता है. एक-एक कर देवी-देवता अवतरित होते है, सभी यात्री आशीर्वाद लेकर यात्रा की कुशलता की कामना करते हुए यात्रा के दूसरे पढ़ाव भैमन उड़ीयार गुफा की ओर प्रस्थान करते है. यहां भगवान जगन्नाथ जी का मन्दिर है.
रात्रि विश्राम हेतु गुफा है जिसमे 300 लोग बड़े आराम से आ जाते हैं. यहां की व्यवस्था यहां पर अन्वाल (भेड़ चराने वाले) करते हैं. जिन्हें कर के रूप में घी और धनराशी दी जाती है. तीसरे दिन प्रातः स्नान के बाद छिपला कोट के लिये चढ़ाई आरम्भ होती है. यहां से आगे का मार्ग चट्टानी, कठिन एवं कष्टकारी होता है. अतः सभी बालकों को जगरिया एवं अवतरित देवता अपने मार्गदर्शन में सबसे आगे लेकर चलते हैं.
समुद्र तल से अत्यधिक उंचाई में स्थित होने के कारण यहां ऑक्सीजन की अत्यधिक कमी है, जो इस कठिन मार्ग को और भी जटिल बनाती है.
भट्याखान, तेजम-खैया, नन्दा शिख से गुजरते हुऐ छिपला कोट पहुंचते हैं. मौसम साफ होने पर छिपला कोट से पंचाचूली की चोटियों की झलक नजदीक से पा सकते है. यह क्षेत्र उच्च हिमालयी औषधियों के भण्डार है, ब्रहम कमल, जटामॉसी, कुटकी, कीडा-जड़ी (फंगस) यहां बहुतायत में है. छिपला कुण्ड पहुंचकर सभी पूजा-अर्चना कर व्रतपन (मुण्डन) का कार्य करते हैं एवं कुण्ड में पवित्र डुबकी लगाकर, कुण्ड की परिक्रमा करते हैं. अत्यधिक ठण्ड व मौसम के प्रतिकुल होने की अत्यधिक संभावनाओं के कारण यहां ज्यादा न रूक तीसरे पड़ाव, भैमन की ओर प्रस्थान करते हैं रात्रि विश्राम के बाद चौथे दिन के प्रातः मुण्डन संस्कार के कुछ अन्य कार्यो को पूर्ण कर यात्रा का प्रायोजन सकुशल पूर्ण कर अब सभी लोग अपने-अपने घरों की ओर प्रस्थान करते हैं.
छिपला कोट से प्रसाद के रूप में कुण्ड का पवित्र जल एवं पवित्र पुष्प ब्रहमकमल साथ लाने की पंरम्परा है, फूलों को मार्ग में मिलने वाले मन्दिरों में चढ़ाया जाता है. इस तरह 4 दिन की यह कठिन यात्रा घने वनों, चट्टानों, जटिल मार्गो, मौसम की विषय परिस्थितियों से भरी हुई धार्मिक यात्रा भगवान केदार की अषीम कृपा से सकुषल सम्पन्न होती है और सभी भाग्यशाली लोग इस अलौकिक धार्मिक यात्रा की यादों को जीवन भर अपने यादों में संजोये रखते हैं.
(Chhipala Jaat 2015)
2015 छिपला जात की तस्वीरें ( सभी फोटो नरेन्द्र सिंह परिहार के हैं. )
मूलरूप से पिथौरागढ़ के रहने वाले नरेन्द्र सिंह परिहार वर्तमान में जी. बी. पन्त नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन एनवायरमेंट एंड सस्टेनबल डेवलपमेंट में रिसर्चर हैं.
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बहुत सुंदर एवं सटीक वर्णन हमारी विरासत व संस्कृति का, लेखक (नरेंदर सिंह परिहार ) का बहुत आभार, हिमालयन सभ्यता को पाठकों तक पहुंचाने के लिए.
बहुत सुंदर चित्रण किया गया है एवं लेख में छायाचित्रों का समुचित समावेश लेख में और चार चांद लगा रहा है,
हिमालय की एक और पावन सांस्कृतिक धरोहर से सभी पाठकों को लाभान्वित कराने हेतु आपका सादर आभार??
बहुत सुंदर चित्रण किया गया है एवं लेख में छायाचित्रों का समुचित समावेश लेख में और चार चांद लगा रहा है,
हिमालय की एक और पावन सांस्कृतिक धरोहर से सभी पाठकों को लाभान्वित कराने हेतु आपका सादर आभार??
जय छिपला केदार
मैं दिल्ली में रहता हूं। क्या मैं भी इस यात्रा में जा सकता हूं।