आज छठ पूजा है और उत्तराखंड सरकार ने पूरे राज्य में इस अवसर पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की है. यह बात समझ से परे है कि जो राज्य सरकार कुमाउनी व गढ़वाली समाजों के मुख्य तीज त्योहारों फूलदेई, हरेला, घी संक्रान्त, घुघुतिया त्यार, सातों-आठों जैसे अनेक लोकपर्वों पर सार्वजनिक अवकाश नहीं करती, वह प्रत्येक वर्ष छठ के दिन छुट्टी क्यों करती है. (Chhaths Leave in Uttarakhand)
दरसल पहाड़ के नाम पर बनाये राज्य पर उत्तराखंड पर जो मैदानी क्षेत्र थोपे गये हैं वही आज पहाड़ की नीति निर्धारित करते हैं. यह उत्तराखंड का दुर्भाग्य है कि सरकार की नीतियों में पहाड़ कभी नहीं रहता. (Chhaths Leave in Uttarakhand)
उत्तराखंड सरकार पिछले कुछ सालों से अंतिम मौके पर छठ की छुट्टी की घोषणा करती है. इसका कोई औचित्य नहीं रहता क्योंकि यहां छठ लोकपर्व मनाया ही नहीं जाता और न ही ऐसा कोई बड़ा वोट बैंक है जिसे सरकार लुभाना चाहती है फिर सरकार किसके दबाव में छठ की छुट्टी करती है.
अपने लोकपर्व के प्रति सरकार के इस प्रकार के रवैये पर हमें कोई आश्चर्य भी नहीं होना चाहिये क्योंकि हम स्वयं अपने लोकपर्व भूल चुके हैं. उत्तराखंड के कितने लोग होंगे जो अपने बच्चों के साथ फूलदेई का त्योहार मनाते हैं. आफ़िस की इस भाग-दौड़ में कितने ऐसे लोग होते हैं जिनके घर में आज भी घी-त्यार मनाया जाता है.
आज हमारे घरों में कितने लोगों के बच्चे घुघुतिया त्यार पर अपने बच्चों के गले में संतरा, दाड़िम से सजी हुई घुघुते की माला डालते हैं. जब हमारे ख़ुद के समाज में अपनी परम्पराओं को निभाने वाले गंवार और पिछड़ा समझा जाता है फिर लोकपर्व के लिये छुट्टी का रोना एक बहाने से अधिक कुछ नहीं लगता.
हमारे लोकपर्व पहाड़ों तक सिमट गये हैं और पहाड़ का वासी अपने लोकपर्व मनाने के लिये किसी सार्वजनिक अवकाश का मोहताज़ नहीं होता वह तो हमेशा से पूरी शान के साथ अपने तीज-त्योहार मनाता है.
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एक बहुत बड़े क्षेत्र में एगाश बग्वाल होती है,
जौनसार, जौनपुर, उत्तरकाशी, टिहरी में रिख बग्वाल होती है।
Right ...??
Ghatiya Raajniti ke kaaran
यह एक बहुत ही वाजिब सवाल है। उत्तराखंड की क्या प्राथमिकताएं हैं, यह सवाल प्रदेश की दोनों मुख्य राजनीतिक पार्टियों के सामने बेमानी है। इस सम्बन्ध में खासकर भाजपा के रवैए से ज्यादा निराशा होती है।