बीती शाम उत्तराखंड के लोकगीत ‘छाना बिलौरी’ की धुन पर पूरा देश एक साथ झूमा. मौका था बीटिंग रिट्रीट 2022 के समारोह का. दिल्ली में रायसीना हिल्स की ठंडी शाम में जब ‘छाना बिलौरी’ की धुन बजी तो माहौल बेहद ख़ुशनुमा और शांत हो गया. सूबेदार जमन सिंह द्वारा कम्पोज इस धुन को जब भारतीय सेना के बैण्ड ने ड्रम और मशकबीन संग प्रस्तुत कर ‘स्लो मार्च’ किया तो रायसीना हिल्स की यह शाम वाकई धीमी नजर आने लगी.
(Chhana Bilauri Indian Army Band )
संभवतः ‘छाना बिलौरी’ उत्तराखंड का दूसरा लोकगीत है जिसे बीटिंग रिट्रीट समारोह में शामिल किया गया. इससे पहले ‘बेडू पाको बारामासा’ की धुन को ही इस समारोह में सुना गया है. ‘छाना बिलौरी’ उत्तराखंड में गाया जाने वाला एक लोकप्रिय लोकगीत है जिसके बोल कुछ इस तरह हैं:
झन दीया बोज्यू छाना बिलौरी
(Chhana Bilauri Indian Army Band )
लागला बिलौरी का घामा
हाथे कि कुटली हाथे में रौली
नाके की नथुली नाके में रौली
लागला बिलौरी का घामा
बिलौरी का धारा रौतेला रौनी
लागला बिलौरी का घामा.
लोकगीत में एक युवती अपने पिता से कह रही है कि छाना बिलौरी गांव में मेरी शादी मत करना वहां की धूप बीमार कर देती है. हाथ की कुदाल हाथ ही में रहेगी. बिलौरी की धार में रौतेला लोग रहते हैं. बांसुरी वादक प्रताप सिंह और मोहन सिंह रीठागाड़ी के इस लोकगीत को गाने के बाद यह लोकप्रिय हो गया था. रेडियो पर पहली बार यह लोकगीत बीना तिवारी ने गाया था.
बीटिंग रिट्रीट एक सदियों पुरानी सैन्य परंपरा है जो उन दिनों से चली आ रही है जब सैनिक सूर्यास्त के समय युद्ध से अलग हो जाया करते थे. जैसे ही बिगुलों से पीछे हटने की आवाज़ आती सैनिकों लड़ना बंद कर दिते और अपने आप को हथियार बंद कर युद्ध के मैदान से हट जाते। पीछे हटने की आवाज़ के दौरान आज भी खड़े होने की प्रथा को बरकरार रखा गया है. पीछे हटने पर झंडे उतारे जाते हैं. ड्रम बीट्स उन दिनों की याद दिलाते हैं जब शाम को नियत समय पर कस्बों और शहरों में तैनात सैनिकों को उनके क्वार्टर में वापस बुला लिया जाता था.
(Chhana Bilauri Indian Army Band)
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