कला साहित्य

चंद्रकुंवर बर्त्वाल की कविता ‘काफल पाक्कू’

हे मेरे प्रदेश के वासी
छा जाती वसन्त जाने से जब सर्वत्र उदासी
झरते झर-झर कुसुम तभी, धरती बनती विधवा सी
गंध-अंध अलि होकर म्लान, गाते प्रिय समाधि पर गान
एक अंधेरी रात, बरसते थे जब मेघ गरजते
जाग उठा था मैं शय्या पर दुःख से रोते-रोते
करता  निज जननी का चिन्तन,
निज मातृभूमि का प्रेम-स्मरण
उसी समय तम के भीतर से मेरे उर के भीतर
आकर लगा गूंजने धीरे एक मधुर परिचित स्वर
काफल पाक्कू, काफल पाक्कू
काफल पाक्कू, काफल पाक्कू
(Chandrakunwar Bartwal Poem)

चंद्रकुंवर बर्त्वाल की दो कविताएं यहां पढ़िये: चंद्रकुंवर बर्त्वाल की दो कविताएं

चंद्रकुंवर बर्त्वाल

-चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

गढ़वाल की मंदाकिनी नदी घाटी के मालकोटी गांव में भूपाल सिहं तथा जानकी देवी घर 20 अगस्त 1919 को जन्मे चन्द्रकुंवर बर्त्वाल (Chandrakunwar Bartwal Poem) कुल 28 साल की आयु में दुनिया को विदा कह गए थे. प्रकृति को केंद्र में रख कर लिखी गयी उनकी कविताओं ने उन्हें अपने समय के बड़े हिन्दी कवियों की जमात में ला खड़ा किया था.

इसे भी पढ़ें: मुझको पहाड़ ही प्यारे हैं – जयन्ती पर चंद्रकुंवर बर्त्वाल की स्मृति

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

AddThis Website Tools
Kafal Tree

Recent Posts

हो हो होलक प्रिय की ढोलक : पावती कौन देगा

दिन गुजरा रातें बीतीं और दीर्घ समय अंतराल के बाद कागज काला कर मन को…

3 weeks ago

हिमालयन बॉक्सवुड: हिमालय का गुमनाम पेड़

हरे-घने हिमालयी जंगलों में, कई लोगों की नजरों से दूर, एक छोटी लेकिन वृक्ष  की…

3 weeks ago

भू कानून : उत्तराखण्ड की अस्मिता से खिलवाड़

उत्तराखण्ड में जमीनों के अंधाधुंध खरीद फरोख्त पर लगाम लगाने और यहॉ के मूल निवासियों…

4 weeks ago

यायावर की यादें : लेखक की अपनी यादों के भावनापूर्ण सिलसिले

देवेन्द्र मेवाड़ी साहित्य की दुनिया में मेरा पहला प्यार था. दुर्भाग्य से हममें से कोई…

4 weeks ago

कलबिष्ट : खसिया कुलदेवता

किताब की पैकिंग खुली तो आकर्षक सा मुखपन्ना था, नीले से पहाड़ पर सफेदी के…

4 weeks ago

खाम स्टेट और ब्रिटिश काल का कोटद्वार

गढ़वाल का प्रवेश द्वार और वर्तमान कोटद्वार-भाबर क्षेत्र 1900 के आसपास खाम स्टेट में आता…

4 weeks ago