आज दिन है हिंदी कथा साहित्य को एक नई दिशा देने वाले हिंदी कहानी के वास्तविक जनक पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी को याद करने का. लहना सिंह के प्रेम त्याग व बलिदान के अमर गायक पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी का आज जन्म दिवस है. आज ही के दिन 1883 में कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश के गुलेर गांव में जन्मे चंद्रधर शर्मा के नाम के साथ “गुलेरी” उपनाम इसी जन्म भूमि की देन है. जयपुर के राजपंडित शिव राम शास्त्री के घर में जन्म लेने वाले गुलेरी जी का राजवंशों से गहरा संबंध रहा.
(Chandradhar Sharma Guleri)
1904 में मेयो कॉलेज अजमेर से अपने अध्यापकीय जीवन की शुरुआत करने वाले गुलेरी जी की छात्रप्रियता, अनुशासनप्रियता एवं विद्वत्ता से प्रभावित होकर मदन मोहन मालवीय जी ने उन्हें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में आमंत्रित किया. बहुमुखी प्रतिभा के धनी गुलेरीजी ने 1916 में मेयो कॉलेज में संस्कृत विभागाध्यक्ष का पद ग्रहण किया, 1920 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राच्य विद्या विभाग में प्राचार्य तथा 1922 में प्राचीन इतिहास और धर्म से संबंद्ध मनींद्र चंद्र नंदी पीठ में प्रोफेसर का कार्यभार ग्रहण किया. मात्र 39 वर्ष की आयु प्राप्त इस व्यक्तित्व की बहुमुखी प्रतिभा का आधार मात्र ये पद नहीं है, वरन हिंदी साहित्य एवं भाषा के लिए किया वह विपुल कृतित्व है, जिसपर आज समस्त हिंदी जगत गर्व करता है. इस अल्पावधि में भी गुलेरी जी के लेखन का परिमाण एवं विधाओं का वैविध्य सहसा चमत्कृत करता है.
निबंध, कविताएँ, शोध पत्र, संपादकीय टिप्पणियां, समीक्षा एवं कहानियाँ लगभग सभी विधाओं पर आपकी लेखनी चली है. कछुआ धर्म’, मारेसी मोंहि, कुठाऊं काशी, काशी की नींद और काशी के नूपुर, जय यमुना मैया की, अमंगल के स्थान पर मंगल शब्द आदि निबंधों के माध्यम से हिंदी निबंधों की दशा और दिशा निर्धारण करने में गुलेरीजी ने अहम योगदान दिया. यही नहीं भाषा विज्ञान और पुरातत्व में विशेष रुचि के कारण हिंदी भाषा के प्रारंभिक स्वरूप पर विचार करते हुए बड़े अकाट्य तर्कों के साथ अपने विचारों को विद्वत समाज के सामने रखा, भले ही उनकी लेखन शैली को देखते हुए आचार्य शुक्ल की यह टिप्पणी ठीक ही लगती है –“ ये जैसे धुरंधर पंडित थे, वैसे ही सरल और विनोदी प्रकृति के थे.“ किंतु विनोदपूर्ण शैली के लिए उन्होंने कभी अपनी तार्किकता को बलि नहीं चढ़ाया. भाषा के क्षेत्र में आपका किया कार्य तो अद्वितीय है ही लेकिन हिंदी साहित्य में आपकी प्रतिष्ठा का मूल आधार रही आपकी कहानी- “उसने कहा था”
यह वह कहानी थी जिसने हिंदी कहानी को एकदम से घुटनों से उठाकर अपने पैरों पर चलना सीखा दिया था. गुलेरी जी ने कुल छह कहानियाँ लिखी हैं- सुखमय जीवन, बुद्धू का कांटा, उसने कहा था, धर्मपरायण रीछ, घंटाघर, तथा हीरे का हीरा. इन छह कहानियों में से चर्चित रही तीन कहानियाँ जो क्रमशः 1911 तथा 1915 में प्रकाशित हुई. सुखमय जीवन तथा बुद्धू का कांटा लगभग एक साथ 1911 में प्रकाशित हुई थी जबकि, “उसने कहा था’ 1915 में सरस्वती में प्रकाशित हुई. ‘ सुखमय जीवन’ व्यंग्यात्मकता लिए हुए है, जिसमे लेखक ऐसे लेखकों पर व्यंग्य करता है जो बिना जीवन को भोगे उसका वर्णन मात्र किताबी ज्ञान के आधार पर अपने लेखन में करते हैं. यह भारतमित्र में प्रकाशित हुई थी. ‘बुद्धू का कांटा’ और ‘उसने कहा था’ दोनों प्रेम कहानियाँ हैं. ‘बुद्धू का कांटा’ में रघुनाथ एवं भागवंती के प्रेम का स्पष्ट चित्रण है. यह प्रेमकथा सुखांत है.
(Chandradhar Sharma Guleri)
‘उसने कहा था ‘ एक कालजयी रचना है, जिसमें प्रेम का गंभीर और उदात्त स्वरूप सामने आता है. यह कथा मात्र लहनासिंह की एक पक्षीय प्रेमकथा नहीं है, वरन सूबेदारनी की लहनासिंह के लिए दबे प्रेम और उन्मुक्त विश्वास की कथा है. इस कथा के वस्तुविन्यास व शिल्प को लेकर हिंदी आलोचना की कई पृष्ठ रंगे जा चूके हैं और आज भी रंगे जा रहे हैं. लेकिन हर बार कुछ अधूरा सा रह जाता है. अपनी पहली दो कहानियों में गुलेरी जी ने नायक और नायिका के बीच प्रेम की उत्पत्ति की सूचना स्पष्ट शब्दों में दी है किंतु इस कहानी में केवल संकेत दिए हैं. ससंकेतात्मकता इस कहानी के कहन में बड़ी भूमिका का निर्वहन करती है. पांच खंडों और 25 वर्षों के लंबे अंतराल को अपने में समेटती यह कहानी बच्चों की बातचीत से शुरू होकर युद्ध की विभीषिका पर समाप्त होती है. विषय और वर्णन में उपन्यास सी लगती इस कहानी में शाब्दिक विवरणों के स्थान पर सूक्ष्म मनोविज्ञान का चित्रण लुभाता है. प्रेम, कर्तव्य व देश प्रेम के त्रिकोणीय ढाँचे में बंधी यह कहानी, तत्कालीन पाठकों से लेकर अधुनातन पाठकों पर एक सम्मोहन सा कर देती है.
कुल मिलाकर हिंदी साहित्य की यह कहानी, एक अमूल्य धरोहर है. यह धरोहर क्यों बनती है, इसका कारण जैनेंद्र के लिखे शब्दों में कुछ सीमा तक ढूंढा जा सकता है,- “पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी विलक्षण विद्वान थे, उनकी प्रतिभा बहिर्मुखी व बहुमुखी थी. उनमें गजब की जिंदादिली थी और उनकी बोली भी अनोखी थी. गुलेरी जी न केवल विद्वत्ता में अपने समकालीन साहित्यकारों से ऊंचे ठहरते थे, अपितु एक दृष्टि से वह प्रेमचंद से भी ऊंचे साहित्यकार हैं. प्रेमचंद ने समसामयिक स्थितियों के चित्रण तो बहुत बढ़िया किए हैं, पर व्यक्ति मानस के चितेरे के रूप में गुलेरी का जोड़ नहीं है.“ वस्तुतः गुलेरी जी इस अर्थ में भी बेजोड़ हैं कि वह अपने समय से बहुत आगे थे. आज उनके जन्मदिवस पर समस्त हिंदी कथा साहित्य जगत उनको एक अमूल्य थाती सौंपने के लिए नमन करता है.
(Chandradhar Sharma Guleri)
डॉक्टर अमिता प्रकाश
डॉक्टर अमिता प्रकाश राजकीय महाविद्यालय सोमेश्वर के हिन्दी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं. हिंदी व गढ़वाली में लेखन करने वाली अमिता के कहानी संग्रह – ‘रंगों की तलाश’ तथा ‘पहाड़ के बादल’ प्रकाशित हो चुके हैं. आधुनिक भावबोध एवं कथाकार पंकज बिष्ट विषय पर शोध कर चुकी अमिता की कहानियां व शोध प्रबंध विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं.
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