फोटो : उत्तराखंड टूरिज्म की वेबसाईट से साभार
काली कुमाऊं की राजधानी के रूप में जाना जाने वाला चम्पावत शहर कुमाऊं के सबसे पुराने शहरों में एक शहर है. कुमाऊं में बसे सभी शहरों में चम्पावत सबसे पहले व्यवस्थित ढंग से बसा शहर था. कुमाऊं के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखने वाला चम्पावत शहर अपना पौराणिक महत्त्व भी खूब रखता है.
(Champawat in Puranas)
चम्पावत के संबंध में एक मान्यता यह है कि भगवान विष्णु का कूर्म अवतार यहीं हुआ. इतिहासकार बद्रीदत्त पाण्डेय के अनुसार विष्णु का कुर्मावतार स्थल चम्पावत की क्रांतेश्वर चोटी पर हुआ था. चंद शासकों की पहली राजधानी रहे चम्पावत का जिक्र स्कन्द पुराण के केदार और मानस खंड में भी माना जाता है.
(Champawat in Puranas)
वायु पुराण में चम्पावपुरी नाम का उल्लेख मिलता है. यह कहा जाता है कि चम्पावतपुरी नौ नागवंशीय राजाओं की राजधानी थी. जोशीमठ के गुरू पादुका नामक ग्रन्थ में भी चम्पावत नगर का जिक्र है. इस ग्रन्थ के अनुसार नागों की बहन चम्पावती ने चम्पावत नगर को बालेश्वर मंदिर के पास बसाया.
(Champawat in Puranas)
पुराणों के अतिरिक्त महाभारत काल से भी चम्पावत नगर को जोड़ा जाता है. यह माना जाता है कि अपने निर्वासन काल के दौरान पांडवों ने अपना प्रवास इसी इलाके में किया. यहां स्थित घटोत्कच का मंदिर मान्यता को और पुख्ता करता है. घटोत्कच से जुड़े लोकविश्वास पर प्रो. मृगेश पाण्डे लिखते हैं –
लोक विश्वास है कि यहां हिडिम्बा राक्षसी रहती थी जो श्रावण में हिण्डोला झूलती थी. इस क्षेत्र में द्वापर में जब पांडव आये तब झूले में बैठी हिडिम्बा ने बलशाली भीम से झूला झूलने हेतु धक्का देने का अनुरोध किया. भीम द्वारा सहजता से दिए धक्के का जोर इतना अधिक हुआ कि हिडिम्बा छिटक कर अखिलतारिणी नामक स्थान पर जा गिरी. भीम के शौर्य व शक्ति से सम्मोहित हो हिडिम्बा ने उससे विवाह का प्रस्ताव किया. भीम ने इस आग्रह को स्वीकार किया. घटोत्कच उन्हीं के पुत्र थे जिनका घटकू नामक स्थान पर मंदिर बना है. इसके समीप ही गंडक नदी के तट पर हिडिम्बा का मंदिर है.
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