शंभू राणा

दास्तान-ए-अकबर अली उर्फ़ क़िस्सा अक्कू मियाँ

एक हुआ करते थे अकबर अली. इन हजरत के बारे में अब ये तो नहीं कह सकते कि ये अल्मोड़ा…

6 years ago

हजारे का चूरा

आज न जाने कैसे अचानक ‘चूरे’ की याद आ गई- जैसे वर्षों बाद कोई बाल सखा सामने आ जाए. सचमुच…

6 years ago

कछुआ खरगोश की अल्मोड़िया कथा

पटवारी पद के सैकड़ों उम्मीदवार शारीरिक दमखम साबित करने के लिए दस किलोमीटर की दौड़ में हिस्सा ले रहे थे.…

6 years ago

फ़िल्मों की बहार उर्फ़ जाने कहां गए वो दिन – 3

(पिछली किस्त से आगे) और नजीर हुसैन हमेशा न जाने कैसे कोई एक बेहद अमीर आदमी होता है. उसकी बीवी…

6 years ago

फ़िल्मों की बहार उर्फ़ जाने कहां गए वो दिन – 2

(पिछली क़िस्त से आगे) सिनेमा की टिकटों के लिए खिड़की खुलने से काफी पहले ही लम्बी क़तार लग जाया करती…

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फ़िल्मों की बहार उर्फ़ जाने कहां गए वो दिन – 1

जिस तरह पुराने हीरो अब हीरो नहीं रहे, एक दम ज़ीरो हो गए हैं या दादा-नाना बनकर खंखार रहे हैं,…

6 years ago