कला साहित्य

पोस्टमैन : शैलेश मटियानी की कहानी

लिफाफे के बाहर पता यों लिखा हुआ था :सोसती सिरी सरबोपमा - सिरीमान ठाकुर जसोतसिंह नेगी, गाँव प्रधान - कमस्यारी…

3 years ago

कहानी – पहाड़ की याद

जून के महीने की भरी दोपहरी. इतना भरा पूरा गांव आराम की मुद्रा में था. इसलिए चारों ओर खामोशी सी…

3 years ago

कहानी : बाहर कुछ नहीं था

मेरा एक सीक्रेट है, जिसे मैं किसी से शेयर नहीं कर सकता. मुझे डर है कि जानते ही लोग मुझ…

3 years ago

हरि मृदुल की कहानी ‘कन्हैया’

 वह विरल दृश्य था. सड़क पर एक युवक बांसुरी बजाता जा रहा था. सैकड़ों कान उसका पीछा कर रहे थे…

3 years ago

चंद्रकुंवर बर्त्वाल की कविता ‘काफल पाक्कू’

हे मेरे प्रदेश के वासीछा जाती वसन्त जाने से जब सर्वत्र उदासीझरते झर-झर कुसुम तभी, धरती बनती विधवा सीगंध-अंध अलि…

3 years ago

प्रेम पिता का दिखाई नहीं देता

तुम्हारी निश्चल आंखेंचमकती हैं मेरे अकेलेपन की रात के आकाश मेंप्रेम पिता का दिखाई नहीं देताईथर की तरह होता हैजरूर…

3 years ago

ज्ञानरंजन की कहानी ‘पिता’

उसने अपने बिस्तरे का अंदाज लेने के लिए मात्र आध पल को बिजली जलाई. बिस्तरे फर्श पर बिछे हुए थे.…

3 years ago

शेखर जोशी की कहानी ‘बदबू’

एक साथी ने उसकी परेशानी का कारण भाँप लिया था, “ऐसे नहीं उतरेगा मास्टर. आओ, तेल में धो लो”, कहकर…

3 years ago

पहल पत्रिका के आखिरी अंक से हरि मृदुल की कहानी ‘बाघ’

मुझे अपने बूबू (दादा जी) की खूब याद है. अब तो उन्हें गुजरे हुए भी चालीस साल के ऊपर हो…

3 years ago

गाली में भी वात्सल्य छलकता है कुमाउनी लोकजीवन में

किसी भी सभ्य समाज में गाली एक कुत्सित व निदंनीय व्यवहार का ही परिचायक है, जिसकी उपज क्रोधजन्य है और…

3 years ago