कॉलम

शहरी संकटों की मांद में जच्चाघर

बीतती बारिश के दिनों में हम सामने पड़े खाली प्लॉट में कुत्तों को गदर मचाते देख रहे थे. प्लॉट में…

6 years ago

तुम प्रेम में इतने डरे डरे क्यों हो

तुम प्रेम में इतने डरे डरे क्यों हो ? … और इसके उत्तर में काफ़ी देर शून्य में ताकता रहा.…

6 years ago

दिल्ली से तुंगनाथ वाया नागनाथ – 3

(पिछली क़िस्त – दिल्ली से तुंगनाथ वाया नागनाथ – 2) कहे अनुसार सुबह ठीक छह बजे परशु गिलास भर कर…

6 years ago

शमशेर सिंह बिष्ट की कलम से उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन का एक जीवंत दस्तावेज

पर्वतसेनानी शमशेर सिंह बिष्ट ने यह लेख उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के बीस वर्ष पूरे होने पर लिखा था. तब इसे…

6 years ago

सूरज की मिस्ड काल – 3

(पिछली कड़ी – सूरज की मिस्ड काल भाग- 2) गुलाबी जाड़े की एक सुबह सुबह उठकर चाय मुंह धो लिये हैं.…

6 years ago

बेरीनाग टू बंबई वाया बरेली भाग- 2

पिछली कड़ी से आगे... अमिताभ बच्चन या विनोद खन्ना ? 15 अगस्त 1971 को मेरी माँ के मन में ये…

6 years ago

पहाड़ के एक प्रखर वक्ता का जाना

वह ठेठ पहाड़ी थे. उत्तराखंड के पहाड़ी ग्राम्य जीवन का एक खुरदुरा, ठोस और स्थिर व्यक्तित्व. जल, जंगल और ज़मीन…

6 years ago

चालाक गीदड़ और शिबजी की कथा

जिन दिनों खेतों में हल लगाने का काम होता घर के सब बड़े लोग बच्चों की तरफ ध्यान ही नहीं…

6 years ago

अथ टार्च, लालटेन, लम्फू और ग्यस कथा

तब टार्च, लालटेन व लैम्फू के बिना अधूरा था जीवन -जगमोहन रौतेला आजकल तो भाबर में अब शहर तो छोड़िए…

6 years ago

काल से होड़ लेता था कवि विष्णु खरे

पहल के ताज़ा अंक में अपनी डायरी की शुरुआत में विष्णु खरे की कविता, ‘एक कम’ की आख़िरी चार लाइनों…

6 years ago