अमित श्रीवास्तव

ललित मोहन रयाल का नया उपन्यास ‘चाकरी चतुरंग’

व्यावहारिक- सामाजिक सन्दर्भों में 'व्यवस्था' का दृश्य-अदृश्य जितना व्यापक प्रभाव है साहित्यिक-सामाजिक विमर्श में ये उतना ही सामान्यीकृत पद है.…

3 years ago

वकील साहब आज भी कोई दलील नहीं सुनते!

'आज फिर उधार करना पड़ा बेटा'... उनकी आवाज़ में कुछ बूँदें थीं. फोन पर एक घरघराहट थी जो निस्संदेह फोन…

3 years ago

माँ का जादुई बक्सा

हलवाई पांचवीं बार अपना हिसाब करने आया था. (Mother's Magic Box) —'तुम्हारा कितना हुआ भाई' पापा पांचवीं बार उससे पूछ…

3 years ago

कहानी : बयान इक़बालिया

'इसे क्या हुआ है इतना गुमसुम क्यों है' चौकी इंचार्ज साहब ने दस मिनट बाद ही पूछ लिया. (Bayan Iqbaliya)…

3 years ago

सरदार उधम: आर्ट और विचार का ऐसा मेल कम ही देखने को मिलता है

कोई ज़िंदा है...?  इन तीन शब्दों का नाद बहुत देर तक ज़ेहन में होता है... होना चाहिए भी क्योंकि ये…

3 years ago

बहुत कुछ घुमड़ रहा था उसकी आँखों में

बहुत कुछ घुमड़ रहा था उसकी आँखों में. आँखों में देखकर बातें नहीं कर रहा था वो. सामने मेज पर…

3 years ago

कहानी : कोतवाल का हुक्का

आज सुबह तीन पानी के पास उस फ़कीर की लाश मिली थी. कुछ दिन से शहर में एक फ़कीर को…

3 years ago

जब `स्पानी फ़्लू’ की तीसरी लहर लौटकर आई

वो वापस आई!  प्रथम विश्व युद्ध अपने साथ अमरीका के तिरपन हज़ार सैनिकों को ले गया था और उसकी मृत्यु–सहोदरा…

3 years ago

आज ‘ओलंपियन विवेक’ का चौसठवां जन्मदिन है

ओलंपिक खेलों के दौरान घर के सबसे छोटे बच्चे की नज़र से मैच, ख़ासकर हॉकी, देखना अजब गुदगुदा देने वाला…

3 years ago

अलविदा दिलीप कुमार

हमारे बचपने में अमिताच्चन ने अपनी एंग्री यंग मैन वाली गर्वीली गर्माहट से खासा बवाल काट रक्खा था. उसकी भारी…

3 years ago