कला साहित्य

तब मेरी जेब में एक नहीं दो बाघ होते हैं : विद्रोही की कविता

दो बाघों की कथा -रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ मैं तुम्हें बताऊंगा नहीं बताऊंगा तो तुम डर जाओगे कि मेरी सामने वाली…

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आसमान में धान बो रहा हूँ: विद्रोही की कविता

नई खेती -रमाशंकर यादव 'विद्रोही' मैं किसान हूँ आसमान में धान बो रहा हूँ कुछ लोग कह रहे हैं कि…

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पाब्लो नेरुदा से एक बातचीत

पाब्लो नेरुदा (12 जुलाई 1904 - 23 सितंबर 1973) की रहस्यमय -सी मृत्यु पर हिन्दी दुनिया में विशेष चर्चा नहीं…

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सैलून में हर दीवार पर आईने लगे थे : विष्णु खरे की कविता

ग्राहक विष्णु खरे दो बार चक्कर लगा चुकने के बाद तीसरी बार वह अंदर घुसा. दूकान ख़ाली थी सिर्फ़ एक…

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मंटो क्यों लिखता था

मैं क्यों लिखता हूँ -सआदत हसन मंटो मैं क्यों लिखता हूँ? यह एक ऐसा सवाल है कि मैं क्यों खाता हूँ...…

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कविता : दिल्ली में अपना फ़्लैट बनवा लेने के बाद एक आदमी सोचता है

(विष्णु खरे - 1940 से 2018) दिल्ली में अपना फ़्लैट बनवा लेने के बाद एक आदमी सोचता है (कविता सुनें)…

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लड़कियों के बाप

विष्णु खरे समकालीन सृजन परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण नाम रहे. मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में 9 फरवरी 1940 को जन्मे विष्णु…

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बार-बार अपनी जड़ों की ओर क्यों उगते हैं बंबई के डेढ़ यार

अल्मोड़ा से बम्बई चले डेढ़ यार – तीसरी क़िस्त कठोपनिषद की तीसरी वल्ली (अध्याय) का पहला मंत्र है: ऊर्ध्व्मूलोSवक्शाख एशोSश्वत्थः…

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मेरी नानी हिमालय पर मूंग दल रही है

रमाशंकर यादव 'विद्रोही' (3 दिसम्बर 1957 - 8 दिसंबर 2015) हिंदी के लोकप्रिय जनकवि हैं. वे स्नातकोत्तर छात्र के रूप…

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गाबो और उनकी शकीरा

आज से करीब सोलह साल पहले अंग्रेज़ी अख़बार 'द गार्जियन' ने शनिवार 8 जून 2002 को नोबेल विजेता गाब्रिएल गार्सीया…

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