समाज

बूड़ी देवी को चढ़ाई जाती है पत्थरों की भेंट

उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्र के लोगों को बाहरी आक्रमणकारियों के अलावा ठकुराइयों द्वारा एक दूसरे की गढ़ियों को हड़पने के लिए की जाने वाली लडाइयों का भी सामना करना पड़ता था. इन आक्रमणों का सामना करने में पहाड़ की चोटियों से बड़ी-बड़ी चट्टानों और पत्थरों को हमलावरों पर लुड़काना और फेंकने का बहुत महत्त्व होता था. (Budi Devi Worshiped in The Mountainous Regions of Uttarakhand)

वक़्त आने पर इस योजना को अमल में लाने के लिए बड़े-बूढ़ों द्वारा एक योजना बनायी गयी, जिसके तहत सभी दर्रों पर ‘बूड़ीदेवी’ के नाम से मंदिरों की स्थापना की जाती. दर्रा पार करने वाले हर व्यक्ति के लिए बूड़ी देवी को एक पत्थर की भेंट चढ़ाना जरूरी होता था. इस परम्परा से उस जगह पर पत्थरों का ढेर लग जाया करता था जो बाहरी हमले के समय दुश्मनों पर फेंकने के काम आया करते थे. इसके अलावा पत्थरों का यह ढेर मार्गदर्शक की भूमिका भी निभाता था.  

आधुनिक भारत में भी इस परंपरा का उदाहरण 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान देखने में आया, जब अल्मोड़ा की सालम पट्टी के जैती गांव में अंग्रेज सिपाही पहुंचे. जब ब्रिटिश सिपाही आन्दोलनकारियों को गिरफ्तार करने पहुंचे तो वे एक पहाड़ी चोटी पर चढ़ गए. स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार करने के लिए ब्रिटिश सैनिक जब भी पहाड़ी पर चढ़ने की कोशिश करते तो वे उन पर बड़े-बड़े पत्थर लुढ़का देते. इस लड़ाई में कई ब्रिटिश सैनिक मारे गए लेकिन स्वतंत्रता सेनानी उनके हाथ नहीं लगे.

वक़्त बदलने के साथ ही इस परम्परा की जरूरत ख़त्म हो गयी लेकिन प्रतीकात्मक रूप में आज भी बूड़ी देवी के मंदिर मौजूद हैं और उनकी पूजा कर भेंट चढ़ाई जाती है. पहाड़ में जहाँ आज भी रास्ता बताने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है वहां ये युक्ति रास्ता बताने के संकेत के रूप में काम किया करती है.   

सन्दर्भ : उत्तराखण्ड ज्ञानकोष – प्रो. डी. डी. शर्मा    

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

थोकदार: मध्यकालीन उत्तराखण्ड का महत्वपूर्ण पद

रैदास के वंशज हैं उत्तराखण्ड के दास

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

View Comments

  • पथोड़िया बोला जाता था/ है ,उन जगहों को,,,,

Recent Posts

उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ

उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…

17 hours ago

जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया

अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…

5 days ago

कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी

हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…

5 days ago

पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद

आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…

5 days ago

चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी

बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…

5 days ago

माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम

आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…

5 days ago