समाज

प्रवासियों और यूएई सरकार के प्रयास से भारत पहुंचा उत्तराखण्ड के युवक का शव भारत सरकार ने लौटाया

उत्तराखंड के टिहरी जिले के रहने वाले कमलेश भट्ट की संयुक्त अरब अमीरात में 16 अप्रैल को हार्ट अटैक (मृत्यु का कारण अभी भी संदिग्ध है) से मौत हो गई थी. गुरुवार की रात को कमलेश भट्ट के साथ दो अन्य भारतीयों के शव एतिहाद एयरवेज के विमान से दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचा था. शव को शुक्रवार सुबह अबू धाबी लौटा दिया गया. कमलेश के शव को भारत पहुंचाने में उत्तराखंड मूल के प्रवासी समाज सेवक रोशन रतूड़ी ने बहुत मेहनत की थी. शव के वापस जाने से उनकी सारी मेहनत जाया हो गयी. इस घटना पर दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक राजीव पांडे ने अपनी फेसबुक वॉल पर भावुक टिप्पणी की ही. इसे उनकी फेसबुक वॉल से साभार लगाया जा रहा है : सम्पादक
(Social Activist Roshan Raturi Kamlesh Bhatt)

तुम्हारी भेजी हुई जवान बेटे की लाश पिता तक नहीं पहुंच पाई महान प्रवासी रोशन. यूएई सरकार के सामने तुम शर्मिंदा मत होना. शर्मिंदा तो हमें होना चाहिए. तुमने तो ऐसी विपरीत परिस्थिति में भी दूसरे देश की सरकार से मदद लेकर हमारे भाई-बेटे की लाश घर भिजवाई थी. ये तो हम उत्तराखंडियों की काहिली है कि एक 25 साल के युवक का पिता एयरपोर्ट पर गिड़गिड़ाता रहा और लाश वापस चली गई.

रोशन हम इसलिए भी शर्मिंदा हैं क्योंकि प्रवासियों के तौर पर तुम हमारे आदर्श नहीं हो. हमारे आदर्श हैं पीएम के आसपास दिखने वाले कुछ बड़े अफसर. जिनमें हमें जेम्स बांड दिखता है. सेना में ऊंचे ओहदों पर पहुंचे चुनिंदा लोग, जिन्हें हम इतिहास रचियता मानते हैं. कुछ अच्छे, कुछ चूके हुए क्रिकेटर. कुछ नेता, व्यापारी और बालीवुड में पिटे हुए कलाकार.

रोशन तुम उत्तराखंड आखिरी बार कब आए होगे पता नहीं लेकिन हमारे महानगरों के प्रवासी हीरो जब भी पहाड़ आते हैं तो इसमें भी उनका स्वार्थ होता है. वे यहां आते हैं हमारे लोकदेवताओं से और दौलत-शोहरत मांगने या धरती पर बोझ बन चुके अपने शरीरों की सेहत की खातिर. ये इतने स्वार्थी हैं कि इन्होंने लोकदेवाताओं के साथ भी धोखा किया है.
(Social Activist Roshan Raturi Kamlesh Bhatt)

कई बार इनकी वापसी की वजह चुनाव भी होते हैं. सालों से जिन महानगरों में ये लोग पड़े हैं, जहां की ये गाते हैं जब वहां की जनता इन्हें खारिज कर देती है तो इनकी पार्टियां इन्हें थोप देती हैं हमारे ऊपर.

ये जब चाहें हमारे उत्तराखंड चले आते हैं लेकिन हमें जब जरूरत होती है तब ये नहीं मिलते? इन्हें हरिप्रसाद भट्ट जैसे असहाय पिता के सुबकने की आवाज नहीं सुनाई देती.

हम इन पर गौरव महसूस करते हैं लेकिन इन्हें शर्म नहीं आती जब उत्तराखंड का एक अभागा पिता अपने 25 साल के बेटे की लाश के लिए एयरपोर्ट पर गिड़गिड़ा रहा होता हैं. ये तब भी अपने एसी कमरों से बाहर नहीं निकलते जब उत्तराखंड के जवान बेटे कमलेश की लाश यूएई सिर्फ इसलिए वापस भेज दी जाती है क्योंकि एयरपोर्ट पर कुछ अफसर मौजूद नहीं हैं.

अब तुम्हें कुछ और तकलीफ झेलनी होगी रोशन. यूएई पहुंच रहे कमलेश के शव का सम्मान रखना होगा. अंतिम संस्कार के फोटो संभाल कर रखने होंगे ताकि कमलेश के माता-पिता देखकर सुकून कर सकें कि तुम्हारी वजह से उनके बेटे की आत्मा को एक रास्ता मिला. उसकी अस्थियां भी तुम संभालकर रखना. क्योंकि एक अभागा पिता बेटे की लाश नहीं देख पाया तो क्या अस्थियां देखकर ही सुकून कर लेगा.
(Social Activist Roshan Raturi Kamlesh Bhatt)

राजीव पांडे की फेसबुक वाल से, राजीव दैनिक हिन्दुस्तान, कुमाऊं के सम्पादक हैं.

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  • क्या कमेन्ट दू । निशब्द हु । अपनी मिट्टी में आकर न मिल पाना ।

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