कालिदास विश्व में सर्वाधिक पढ़े जाने वाले लेखकों में हैं. उनकी पुस्तक अभिज्ञानशाकुन्तलम पहली भारतीय पुस्तक है जिसका किसी यूरोपीय भाषा में अनुवाद किया गया. पिछले कई वर्षों से न जाने कितने लोगों ने कालिदास की रचनाओं पर शोध किये हैं और न जाने कितनों ने कालिदास पर शोध किये. शोध के इन विषयों में एक विषय है कालिदास का जन्मस्थान.
कालिदास के जन्मस्थान को लेकर विद्वानों में मतभेद है. यह मतभेद लाजमी भी है क्योंकि कालिदास की गणना भारत के सबसे पुराने कवियों में की जाती है. कुछ लोग कालिदास का जन्म स्थान नेपाल में मानते हैं तो कुछ लोग उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में.
गढ़वाल मंडल में एक जगह है कालीमठ. कालीमठ को ही बहुत से भारतीय विद्वानों ने कालिदास का जन्मस्थान माना है. कालीमठ रुद्रप्रयाग से केदारनाथ जाने वाले रास्ते पर पड़ता है. डा० भगवत शरण उपाध्याय, भीष्म कुकरेती, बालकृष्ण शास्त्री कुछ ऐसे नाम हैं जिन्होंने इस विषय पर गंभीर शोध किया है और इस बात पर एकमत हुये हैं कि गढ़वाल मंडल में स्थित कालीमठ, जिसका पुराना नाम कविल्ठा था, ही कालिदास की जन्मभूमि है.
इन सभी विद्वानों ने कालिदास की रचनाओं में गढ़वाल मंडल में मौजूद स्थानों, नदियों और पहाड़ों के नाम रेखांकित किये हैं और कालिदास की कविता और नाटकों में गढ़वाल हिमालय के स्थानों के अतिरिक्त यहां के स्थानीय पेड़-पौधों, फल-फूल के नाम भी रेखांकित किये हैं. इसके अलावा गढ़वाल हिमालय की विशिष्ट सामाजिक व्यवस्था भी कालिदास की रचनाओं में रेखांकित है.
जिन आधारों पर यह प्रमाणित किया गया है कि जन्मस्थान गढ़वाल था वह कालिदास की कुमारसंभव, अभिज्ञानशाकुन्तलम, मेघदूतम आदि रचनाएं हैं. कालिदास की रचनाओं में हिमालय क्षेत्र का जितना विस्तृत और बारीक भौगोलिक वर्णन मिलता है वह किसी यात्री के बस की बात नहीं. इसके अतिरिक्त अपनी मातृभूमि से पलायन की जो पीड़ा कालिदास की रचनाओं में है वह सहानुभूति कम स्व-अनुभूति अधिक लगती है.
– काफल ट्री डेस्क
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