Featured

कुमाऊं के सर्वाधिक पूज्य और लोकप्रिय देवताओं में से एक है भोलानाथ

भोलानाथ कुमाऊं के सर्वाधिक पूज्य और लोकप्रिय देवताओं में से एक है. यह अनेक कुलों का इष्ट देवता है. इसकी स्त्री का नाम बरमी है. घरों में कोई शुभ कार्य प्रारम्भ करते समय इसे रोट-भेंट अवश्य चढ़ाया जाता है. कुछ लोग भोलानाथ को भ्वलनाथ भी कहते हैं. Bholanath Important Kumaoni Local God

देवगाथाओं और जागर गाथाओं से ज्ञात होता है कि यह चंदवंशी राजा उदयचन्द का पुत्र, राजकुमार था जो अपनी साधु प्रकृति के कारण जोगी हो गया था. राजा उदयचन्द की दो रानियां थी दोनों के एक-एक पुत्र थे. इनमें से बड़े का नाम भोलानाथ और छोटे का ज्ञानचन्द था, पर चन्दों की नामकरण की परम्परा को देखते हुए कहा जा सकता है कि भोलेनाथ का मूल नाम कोई चन्द परक ही रहा होगा. इसे इसके साधु एवं सरल स्वाभाव के कारण भोलेनाथ कहने लगे जो इसी रूप में लोकप्रचलित हो गया. Bholanath Important Kumaoni Local God

‘कहा जाता है कि उसका अनुज ज्ञानचन्द बड़ा धूर्त, छली और कपटी था. उसने अपने छल और कपट से राज्य के वास्तविक उत्तराधिकारी अपने अग्रज को राज्यभ्रष्ट कर डाला था. अपने भाई के इस प्रकार के षडयन्त्रों से खिन्न होकर भोलानाथ ने राजपाठ को ठोकर मारकर सन्यास ले लिया तथा भोलानाथ नाम से जाना जाने लगा. कहते हैं एक स्त्री से उसका प्रेम था, जो उसके साधु बनने पर स्वयं भी साध्वी बन गयी और उसके साथ तीर्थाटन को निकल गयी.

एक बार ये दोनों घूमते-घूमते अल्मोड़ा के निकट नैलपोखरी में टिके हुए थे तो उसकी कपटी भाई ज्ञानचन्द को पता चला तो उसे आशंका हुई कि कहीं भोलानाथ राज्याधिकार की मांग न कर बैठे इसीलिए उसने अपने रास्ते के इस कांटे को सदा के लिए समाप्त कर देने की कामना से एक बाड़िया (माली) को धन देकर उन दोनों को वहीं अवस्थित शीतलादेवी के मंदिर के पास में उनके आश्रम में ही मरवा डाला. Bholanath Important Kumaoni Local God

कहा जाता है कि उस समय उसकी प्रेमिका गर्भवती थी, फलतः इस छलपूर्ण एवं क्रूर हत्या के उपरान्त वे तीनों प्रेतात्माएं बाड़ियों तथा ज्ञानचन्द को सताने लगी. राजा ज्ञानचन्द के द्वारा ज्योतिषियों के कहने पर इन तीनों की आत्माओं की संतुष्टि के लिए अल्मोड़ा नगर में अष्टभैरव की स्थापना की गई. सैम और हरू के समान ही यह भी एक अति लोकप्रिय सम्मानित देवता है. इसके अपने नामसाम्य के कारण भोलेनाथ (शिव) का अवतार माना जाता है  तथा सभी खुशी के अवसरों पर तथा प्रमुख पर्वों पर इसका स्मरण किया जाता है. कहीं-कहीं इसे भैरव के नाम से भी पूजा जाता है, तथा रोट का प्रसाद बनाकर इसका पूजन किया जाता है. इसके अतिरिक्त इसका ‘जागर’ भी लगता है.

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

(बद्रीदत्त पाण्डे की ‘कुमाऊं का इतिहास’ तथा प्रो. डी डी शर्मा की ‘उत्तराखण्ड के लोकदेवता’ के आधार पर)

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

  • Ye story galat ha vo stri bholnathji ki bhakat thi vo dono guru Or sisye the bholnathji unke guru the kripya glt story na pade Or na unka prachar kre

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago