जेठ म्हैणा जेठ होली, रंगीलो बैसाख, रंगीलो बैसाख
लाड़ो म्हैणा, योछ चैतोलिया मास.
बैणा वे येछ गोरी रैणा मैणा ऋतु मयाल.
कुमाऊँ के जोहार अंचल में गाये जाने वाले इस गीत का भाव है—
जेठ का महीना सबसे बड़ा है और बैशाख का रंग-रंगीला. पर चैत के महीने के बात ही अलग है, वो सबसे प्यारा और मनमोहक होता है.
चैत के महीने को प्रकृति की रंगत तो महत्वपूर्ण बनाती ही है. इस और ज्यादा रंगीला बनाते हैं त्यौहार. यह उत्तराखण्ड में भिटौली का महीना है. इस महीने कुमाऊँ की ब्याहतायें अपने भाइयों से भेंट का इन्तजार करती हैं तो गढ़वाल में माता-पिता की भेंट का.
भेंट यानि मुलाकात और भिटौली यानि भेंट पर दिया जाने वाला तोहफा. उत्तराखण्ड में यह हर भेंट और भिटौली को दर्शाने के बजाय एक ख़ास तरह की सांस्कृतिक परंपरा का बोध करता है.
इस महीने हिमालय की पर्वत श्रृंखला में बसे गाँवों के दूर-दराज के क्षेत्रों में ब्याह दी गयी बहनें-बेटियां अपने भाइयों से मुलाकात और मायके वालों की कुशल पाने की अभिलाषा करती हैं.
जब परिवहन और संचार के साधन न के बराबर हुआ करते थे तब इस परंपरा की महत्ता काफी ज्यादा हुआ करती थी.
इस महीने कफुवा पक्षी पहाड़ में कुहकने लगता है. बहने-बेटियां कफुवा पक्षी को अपनी भावनाओं के साथ जोड़ती हैं. इन भावनाओं को अभिव्यक्त करने वाले गीतों को रितुरैण, ऋतुरैंण, चैती कहा जाता है. गढ़वाल में इन्हें खुदेड़ गीत भी कहते हैं. ऐसे ही एक ऋतुरैंण में कफुवा को बोलता सुन बेटी की भावना को कुछ यों कहा गया है—
रितु ऐगे रणमणी, रितु ऐगे रैणा,
डालि में कपुवा बासो खेत फली देंण.
ईजु मेरी भाई भेजली भिटौली दिणा.
रितु ऐगे रणमणी, रितु ऐगे रैणा.
कुमाऊँ के भिटौली के महीने में गाये जाने वाले ऋतुरैण गीतों में भाई-बहन के प्रेम की कई कथाएँ भी इन गीतों में अभिव्यक्त की जाती हैं. इन्हीं गीतों में से एक है कुमाऊँ मंडल में गायी आने वाली गोरिधना की कथा—
कथा के अनुसार कोश्यां का राजा था, जिसका नाम कालीय नाग था. भानद्यो नामक एक व्यक्ति ने अपनी रूपवती कन्या गोरिधना का विवाह दोहद की शर्त के रूप में कालियनाग से कर दिया.
कहा जाता है कि राजा गोरिधना को बहुत प्यार करता था. लेकिन उसे अपने मायके नहीं जाने देता था. इसी तरह कई साल बीत गयी और गोरिधना कालियनाग के महल की ही होकर रह गयी.
उधर गोरिधना के विवाह के बाद उसके घर में एक भाई का जन्म हुआ. बड़े होने पर अब भाई को अपनी बहन के बारे में पता चला तो वह उससे मिलने के लिए मचल उठा.
जब वह बड़ा हुआ तो उसकी माँ ने उसकी जिद के आगे हार मानकर चैत के महीने में भिटौली लेकर गोरिधना के पास भेज दिया.
वहां पहुंचकर उसे अपनी बहन की ननद भागा मिलती है. भागा उसे उसकी बहन गोरिधना के पास ले जाती है. इत्तेफाक से इस समय कालियनाग घर पर नहीं था.
दोनों भाई-बहन एक दूसरे से मिलकर भावविभोर हो जाते हैं. धना का भाई कालियनाग के आने से पहले ही अपने घर की ओर लौट पड़ता है.
विदा होते समय वह जल्दबाजी में अपनी बहन से पैलाग कह भूल गया. भाई को अपनी बहन के पैर न छूता देख धना की ननद को संदेह होता है. उसे लगता है कि यह उसका भाई न होकर कोई बचपन का प्रेमी है, छोटा भाई होता तो अवश्य ही बहन के पाँव छूता.
कालियनाग के घर आने पर उसकी बहन अपना शक जाहिर कर उसके सामने घटना का बयां कर देती है.
कालियनाग धना के भाई का पीछा करता है. वह रास्ते में उसे घेर लेता है. दोनों में भीषण लड़ाई हो जाती है. इस लड़ाई में दोनों मारे जाते हैं. उधर इस सूचना को पाकर धना भी मृत्यु को प्राप्त करती है.
इस कथा के एक अन्य संस्करण के अनुसार जब धना का भाई उससे मिलता है तो बहुत सालों बाद मिलने की ख़ुशी में भाई बहन के पैर छूना भूल जाता है और दोनों गले लगते हैं. इससे पैदा हुए संशय को धना की ननद कालियनाग के सामने रखती है और कालियनाग पीछा कर धना के भाई को मार डालता है.
जब उसे असलियत पता लगती है तो वह स्वयं का भी सर धड़ से अलग कर देता है. इस दुःख में धना भी मर जाती है.
मामूली बदलावों के साथ कथा के कई अन्य संस्करण भी प्रचलित हैं. पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक रूप से सहेजे जाने के कारण कथाओं में यह भिन्नता दिखाई देती है. क्षेत्रीय बदलाव भी इस भिन्नता की वजह हैं. भै भुको, मैं सिती : भिटौली से जुड़ी लोककथा
खैर, कुल मिलाकर भिटौली की ये कथाएँ बहन-भाई के अनूठे प्यार को ही बयां किया करती हैं. लोग बताते हैं कि कभी इन कथाओं को सुनने वालों की आंखों से आंसुओं की धारा बह जाया करती थी.
-सुधीर कुमार
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