आजादी के पहले शायद भारत बंद जैसी कोई पहली घटना हो तो 1905 में बंगाल विभाजन के समय का भारत बंद पहला भारत बंद होगा. इस पहले भारत बंद के दिन लोगों ने सुबह नहा धोकर प्रभात फेरी निकाली थी इसी साल वंदे मातरम भारत में लोकप्रिय भी हुआ था. भारत विरोध प्रदर्शन के रुप में बंद का जनक किसी को माना जा सकता है तो महात्मा गांधी पर शायद सभी एक मत हों. बंद का स्वरुप समय के साथ बदलता गया.
हमारे स्कूल के दिनों भारत बंद का नेतृत्व स्थानीय स्तर पर 36 इंच कमर के अपनी नजरों में बेहद युवा कालेज कार्यकर्ताओं पर रहता. भारत बंद के दिन हमारी नजर पहाड़ की उस चोटी पर होती जहाँ से नीली कमीज और खाकी पेंट में 30 लड़कों के साथ वैल्बाटम पेंट के ऊपर चटख बड़े फूलों वाली कमीज पहने कुल 4 से 6 युवा कालेज कार्यकर्ता हा-हू-हा करते स्कूल की ओर बढ़ते थे.
बजट की खासी कमी के कारण इनके पास हॉकी की एक स्टिक, साईकिल की जंग लगी दो चैन, दो एक नटराज की पीले रंग की लकड़ी वाली पटरियां, और भांग के डंडे हुआ करते थे. इन सबके अलावा दो लड़कों के हाथ में किसी जमाने में सफ़ेद रंग का रहा मटमैले रंग का एक लाख आठ सौ अडहत्तर सिलवटों वाला एक बैनर हुआ करता था जिसपर लगभग मिट चुका अंग्रेजी में Bharat Band लिखा होता था. स्कूल पहुचंते ही एक लड़का तीन चार अन्य लड़कों के साथ सबसे पहले स्कूल की छुट्टी वाली घंटी बजा देता. यह कार्य विशेष रुप से नीली कमीज और खाकी पेन्टधारी में से उन्हें दिया जाता था जिनकी दाड़ी-मूंछ के आठ से अधिक बाल निकल आये हों.
इसके बाद 36 इंची पतली कमर वाले दिलबाग चबाते युवा नेता का झुण्ड के साथ स्कूल में प्रवेश होता. जो सीधा छठी की कक्षाओं में घुसकर मास्टर और बच्चों दोनों की छुटी करता हुआ प्रिंसिपल आफिस को बढ़ता. प्रिंसिपल के निर्णय लेने तक आधा स्कूल घर की राह पकड़ चुका होता था.
इसी झुण्ड की एक और ब्रांच हुआ करती थी जो गर्ल्स स्कूल बंद करवाती थी. इस झुण्ड का कथित लीडर अकसर शहर के किसी लाला का लौंडा हुआ करता था. कथित इसलिए क्योंकि इसकी सारी जिन्दगी कालेज में चुनाव लड़ने के सपने में बीत जाती थी. कालेज के हर इलेक्शन में शराब से लेकर मुर्गा इसी के पिता का होता था और हर बार यह अगले साल का घोषित केंडिडेट होता था.
गर्ल्स स्कूल में जाने से पहले पहला काम मुंह में पानी की बौछारों से दिलबाग की महक खत्म करना हुआ करता था दूसरा दिलबाग के कुल्ले से बच्चे पानी से बालों को तरीके से गीला कर एक ओर मोड़ना था. हॉकी, चैन, भांग के डंडे समेत नीली और खाकी वर्दीधारी स्कूल गेट के बाहर ही खड़े कर दिये जाते. स्कूल की प्रिंसिपल लड़कों की गेट में एंट्री देखते ही चपरासी से स्कूल की घंटी बजवा देती.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…