भानुराम सुकोटी उस पीढ़ी के प्रतिनिधि गायक थे जब रेडियो मनोरंजन का बादशाह हुआ करता था. भानुराम सुकोटी बेहतरीन साजिंदे, गायक और गीतकार थे. वे तबला और सारंगी के उस्ताद थे, सितार और हारमोनियम भी बजाय करते थे. वड्डा, पिथौरागढ़ के सुकोट में पैदा होने की वजह से वे सुकोटी कहलाना पसंद करते थे.
भानुराम महान कुमाऊनी लोकगायिका कबूतरी देवी के रिश्तेदार भी थे. कबूतरी देवी ने उनके लिखे कई गीत आकाशवाणी के लिए भी गाये. पुरुषप्रधान मानसिकता की वजह से भानुराम को कहीं कबूतरी देवी का गुरु भी कहा जाने लगा. भानुराम उनके गुरु तो नहीं थे बहरहाल दोनों एक साथ संगत जरूर किया करते थे. दोनों ही उत्तराखण्ड में शिल्पकार कही जाने वाली दलित जाति की उस उपजाति से थे जिसके काम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा लोकसंगीत हुआ करता है.
उनके बारे में पिथौरागढ़ के रहने वाले लोकगायक और रंगकर्मी धीरज कुमार लोहिया बताते हैं. “मैं 2005 में गुरु जी से मिला था पहली बार जब उन्हें देखा तो लगा कि ये कोई योगी महात्मा हैं. लम्बी दाढ़ी, चूड़ीदार पायजामा, गोल सोरियाली टोपी, जिसके बीच में चारों ओर से पैबन्द आते हैं और चमकदार चेहरा. क्योंकि मैं संगीत में विशेष रुचि लेता था तो गुरु जी भी मुझे प्रेम करते थे. उन्होंने अपने जीवन में जातिवाद के दंश को बहुत करीब से झेला था जिसका वो अक्सर जिक्र भी किया करते थे. उन्होंने मुझे तथा फुर्सत गुरु जैसे कितने ही बच्चों को निशुल्क संगीत की शिक्षा दी.
गुरु का वर्णन उनके भजनों में अक्सर मिलता है. आडम्बर पर उन्होंने हमेशा कड़ा प्रहार किया है. उनका एक भजन ‘इन नैनों ने सब कुछ देखा नहीं देखे भगवान, वाको रूप अनेक. बखाने न कोई पहचाने ध्यान नेत्र से जो कोई देखे, सो ईश्वर पहचाने पतित भानु बिन सतगुरु पाए न दिखे भगवान. भानुराम सुकोटी का निधन 6 जनवरी 2016 को हुआ.”
भानुराम सुकोटी के एक लोकप्रिय गीत को पुनर्प्रस्तुत किया है युवा गायक करन जोशी ने. आप भी सुनिए…
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