कला साहित्य

ईजा की बाटुली : हिचकी से अधिक आत्मीय याद

बढ़ती उम्र के साथ पहाड़ में अकेले न रह पाने की विवशता के कारण गोविंदी हल्द्वानी आकर मकानों के जंगल में कैद हो गई. आज सात साल हो गए लेकिन सात मिनट को भी गोविंदी का मन यहां नहीं लगा. भरा पूरा परिवार है लेकिन फिर भी गोविंदी अकेली है.
(Batuli Story by Pramod Sah)

कुछ समय जो पूजा और शाम को तुलसी के पास बैठकर अपने मन की बात कर लेने में बीतता है उसे छोड़ हर समय उदेख ही लगा रहता है.

सात साल पहले जब बेटा विनीत बंगलौर में किसी मल्टीनेशनल कंपनी में बड़ा साहब हुआ तो विनीत को छुट्टी नहीं मिलने के झंझट के कारण गोविंदी हल्द्वानी आने को बेमन से राजी हो गई थी. राजी होने के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी न था. गाँव में बुढ़ापे की दुख-तकलीफ बढ़ रही थी. वह अपने लिए बच्चों को दुख नहीं देना चाहती थी इसलिए ना चाहते हुए भी गोविंदी अनमने मन से भाबर आ गई.

यहां गाँव की यादें ही गोविंदी का समृद्ध संसार थीं. बाटुली उसे अपनों को याद करने का बहाना देती थी.  बाटुली आते ही वह कभी गाँव की अपनी सहेलियों, कभी  झोड़े चांचरियों में मगन दिनों, तो कभी पूरे माघ महीने के व्रतों में मंदिर और थान की यात्राओं को याद करती.
(Batuli Story by Pramod Sah)

बाटुली, प्रकृति का संकेत, सब कुछ बता देती थी. यहां शहरों में आदमी जो बताता भी है उस पर अक्सर शक होता है. रिश्तों में अपनेपन का आभाव, सिर्फ आप वाली औपचारिकता गोविंदी को अक्सर बहुत खटकती है.

गोविंदी शुरुआती दिनों में हल्द्वानी में बेटे-बहू के घर को भी अपना घर समझती. नाती स्कूल से आने में देर कर दें तो गोविंदी बेचैन हो जाती, उसे बाटुली लगती. रात आठ से नौ बजे के बीच विनीत का बहू को फोन आता. कभी नहीं आता तो गोविंदी को बाटुली लगती और वह सो नहीं पाती. हांलाकि फोन माँ को नहीं बहू को ही आता था लेकिन संतोष गोविंदी को होता. वह चैन की नींद सो पाती.

एक दिन जब रात दस बजे तक विनीत का फोन नहीं आया तो गोविंदी को बाटुली तेज लगने लगी. वह बिस्तर छोड़ लाबी में चक्कर लगाने लगी. तब बहू ने झिड़क कर कहा, “माँजी, आपकी बाटूली से मैं तंग आ गई हूं. कुछ नहीं होता यह बाटुली-फाटुली. डॉक्टर को दिखाओ, आपको गैस बनती है गैस. नेटवर्क इश्यू भी होता है, खराब होगा. ठीक होने पर आ जाएगा फोन. आप यह फालतू टेंशन मत दिया करो!”

इस झिड़की के बाद गोविंदी अपने कमरे में चली गई. देर तक उसे नींद नहीं आयी. वह बहू की इस बात पर यकीन नहीं कर पा रही थी कि बाटुली गैस के कारण लगती है. मन मानने को तैयार न था. वह अपने पुराने दिनों को याद करने लगी जब बाटुली आसलकुशल का संदेश देती थी.
(Batuli Story by Pramod Sah)

गोविंदी चूल्हे की आग याद करते हुए कोई चालीस साल पुरानी घटना में खो गई. तब विनीत सात वर्ष का था. विनीत के बाबू सोर पिथौरागढ़ में ट्रेजरी में कार्यरत थे और महीना भर से उनका कोई पोस्टकार्ड नहीं आया था. छः-सात दिन से लगातार तेज बाटुली आ रही थी. बाबू को याद करने पर थोड़ा रुक जाती लेकिन फिर तेज आने लगती. खाना बनाते हुए चूल्हे की आग बार बार बाहर भुरभूरा आती और आटा डालने के टोटके के बाद भी शांत नही होती. इस घटना से गोविंदी की चिंता बहुत बढ़ गयी थी कि बाबू कहीं किसी दुख तकलीफ में तो नही हैं.

एक दिन सुबह गोविंदी विनीत को लेकर पिथौरागढ़ के लिए निकल पड़ी. तभी विनीत ने पहली बार इतनी लंबी बस की यात्रा की थी. कोसी के आलू और रायता तथा दनया के पंराठे भी खाए थे. गुरना माता के मंदिर में घण्टी बजाते हुए तो गोविंदी को देवता ही आ गया था. शाम सूरज ढ़लते-ढ़लते दोनों माँ-बेटे पिथौरागढ़ पहुंच गए. पता पूछते हुए सिलथाम चौराहे के पास ही बाबू के क्वार्टर में पहुंचे थे. वहाँ पहुँचकर पता चला कि बाबू का पीलिया बिगड़ गया था. हालत बहुत खराब थी, शरीर से आधे हो गए थे.
(Batuli Story by Pramod Sah)

तब गोविंदी ने उस दिन पिथौरागढ़ में रोटी बनाते हुए आग को दूध-पानी और रोटी चढ़ायी, संदेश के लिए अग्नि मैया का धन्यवाद किया. अगले दिन सुबह ईष्ट के नाम ग्यारह रूपये का उचैण भी उठाया. सब देवी देवताओं की पुकार कर बाबू को भभूति लगाई, सात दिन तक पीलिया झड़ाया. पूरे सप्ताहभर लगातार भाटिया खिलाया. यही सब तो इलाज था तब पहाड़ में पीलिया का. सप्ताह बीतते बीतते बाबू की रौनक लौटने लगी.

बाबू और उनकी यादों को याद करते हुए सोते-सोते गोविंदी को रात देर हो गई थी. सुबह जब उसकी आँख खुली तो दिन बहुत ऊपर चढ़ गया था. लेकिन बच्चे आज घर में ही थे, स्कूल नहीं गये थे. घर में आश्चर्यजनक रूप से शांति थी. यह शांति और घर का माहौल कुछ अनहोनी की आशंका दे रहा था.

गोविंदी को बहू की विनीत से हो रही बात से पता लग गया कि रात फोन नहीं आने का कारण नेटवर्क इश्यू नहीं था बल्कि विनीत की कार का एक्सीडेंट हो गया था. वह अस्पताल में था और रात भर बेहोश रहने के बाद अब  होश में आया है. सिर में गहरी चोट लगी है मगर अब खतरे से बाहर है.

गोविंदी को बाटुली और डांट दोनों याद आ गये. उसने बोला कुछ नहीं लेकिन मन ही मन सोचने लगी कि दुनिया चाहे कितने आगे चली जाए लेकिन जिस माँ ने बच्चे को अपनी नाल से खून पिलाकर सींचा हो वह उसका दर्द सबसे पहले जानती है, बाटुली इसीलिए आती है.
(Batuli Story by Pramod Sah)

इस हादसे से परिवार कुछ ही दिनों में उबर गया लेकिन गोविंदी अब बाटुली छिपाना चाहती थी. जब भी बाटुली आती वह दाएं-बाएं खुद को छिपा लेती. लगातार मुखर रहकर, सबकी आसल कुशल पूछने वाली गोविंदी अब चुप-चुप रहने लगी. पूजा-पाठ बढ़ा दिया. शाम को घण्टे दो घण्टे तुलसी के पास बैठ कर दुख सुख लगाती. सुबह उठकर कबूतरों को एक मुट्ठी दाना देती. यही दो-तीन काम उसे सुकून देते. बच्चे बड़े हो रहे थे. बड़े क्या, कांस के फूल हो  रहे थे, पलाशते ही झड़ जाते. अपनी माई गोविंदी भीतर ही दबाए रखती. जब असह्य हो जाता तो कुत्ते के बच्चे को पलाश देती.

गांव की याद भीतर बहुत हिलोर मारती लेकिन गोविंद अब चुप ही रहती. वह शहरों में रहने की औपचारिकता सीख रही थी. विनीत साल में एक-आध बार एक-दो दिन के लिए घर आता. थोड़ा बहुत गोविंदी के हिस्से भी आ जाता, फिर चला जाता. पता ही नहीं चलता विनीत आया भी था. विनीत पर गोविंदी का हक न जाने कब खत्म हो गया पता ही न चला.

गोविंदी को बाटुली अब भी आती थी मगर अब वह उसे दबाना सीख गई थी. वह  शहरी हो रही थी. इस साल होली के बाद न जाने कौन सी आफत आयी कि बच्चों के स्कूल, दुकानें, रिक्शे, ऑटो सब बंद हो गए थे. छत में खड़े होकर जब इस सुनसान पड़े शहर को गोविंदी देखती तो उसे लगता कि जैसे यह शहर अब उसकी जिंदगी की कहानी बयाँ कर रहा है. सब कुछ है लेकिन ऐसा कुछ भी तो पास नहीं जो जीवंत हो, जो अपनी मर्जी से चल सकता हो, रह सकता हो. जो उन्मुक्त हो पक्षियों सा. उसका भी जीवन एक तरह का लॉकडाउन ही तो है.
(Batuli Story by Pramod Sah)

लॉकडाउन के दिनो में ही विनीत भी घर आ गया. इस बार उसे घर में महीने से ऊपर हो गया है. चेहरे की रंगत भी हल्की पड़ गयी. उड़ते-उड़ते पता चला कि विनीत की कंपनी में छंटनी हो गयी. नौकरी चली गई है, अब बचत ही खर्च हो रही है.

एक शाम विनीत ने माँ से पूछा, “ईजा, पहले तेरी बाटुली से हमारे सुख-दुख का तुझे पता चल जाता था. अब तुझे बाटुली नहीं आती ईजा?”

गोविंदी ने कहा, “ना ईजा, अब नहीं लगती बाटुली. बाटुली कहाँ होती है, अब तो खाली गैस बनती है!”

यह कहकर अपने आँचल से चेहरा ढ़ककर गोविंदी छत पर चढ़ गयी और सहेली तुलसी को अंग्वाल डाल फफक-फफक कर तब तक रोयी जब तक पूरीतरह खाली नही हो गई!
(Batuli Story by Pramod Sah)

प्रमोद साह
हल्द्वानी में रहने वाले प्रमोद साह वर्तमान में उत्तराखंड पुलिस में कार्यरत हैं. एक सजग और प्रखर वक्ता और लेखक के रूप में उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफलता पाई है. वे काफल ट्री के नियमित सहयोगी.

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago