समाज

बंसत पंचमी नये कार्यों की शुरुआत करने का पर्व है

बसंत ऐग्ये हे पार सार्यो मां, रूणक झुणक ऋतु बसंत गीत लगांदि ऐग्ये…

आज से बंसत का आगमन हो गया है. बसंत पंचमी खुशियों की शुरुआत का त्योहार है. इस बार बसंत पंचमी दो दिन मनायी जा सकती है. दरअसल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि की शुरुआत 29 जनवरी को सुबह 10.45 बजे से हो रही है और समापन 30 तारीख को 1.19 बजे हो रही है. धर्म सिंधु ग्रंथों के निर्णय के अनुसार 29 जनवरी बुधवार को चतुर्थी तिथि युक्त पंचमी तिथि को पर्व मनाना शास्त्रोक्त रूप से श्रेष्ठ रहेगा. (Basant Panchmi Festival Uttarakhand)

बंसत पंचमी नये कार्यों की आधारशिला रखने का पावन पर्व है. आज ही के दिन शंकराचार्य ने सनातन धर्म की स्थापना की थी. आज नरेंद्रनगर के राजमहल से बैकुंठ धाम बद्रीनाथ के कपाट खुलने की तिथि तय होती है. आज छोटे-छोटे बच्चों के नाक, कान छेदतें हैं. परम्परा के अनुसार आज जौ की पत्तियों को घर के दरवाजे, खिडकियों, देहरी, देवस्थानों, गौशाला से लेकर भूमि का भूमियाल, मोरी नारायण, खोली का गणेश में चढाते हैं. खुद भी धारण करते है. साथ ही गुड़, तिल का प्रसाद बांटते है. इस दिन लोग कुंडली देखते हैं.

बसंत के आगमन पर प्रकृति के चितेरे कवि चंद्रकुंवर बर्त्वाल कहते हैं-

‘अब छाया में गुंजन होगा वन में फूल खिलेंगे, दिशा-दिशा से अब सौरभ के धूमिल मेघ उठेंगे, जीवित होंगे वन निद्रा से निद्रित शैल जगेंगे, अब तरुओं में मधु से भीगे कोमल पंख उगेंगे.’

प्रकृति नये श्रृंगार को तैयार हो चुकी है. चारों दिशाओं में नया रंग, नई उमंग, उल्लास एवं उत्साह का माहौल है. हरे-हरे खेतों में सरसों के पीले-पीले फूलों को देख हृदय फूला नहीं समा रहा. आखिर बसंत जो आ रहा है. बसंत को ऋतुओं का राजा माना गया है.

बसंत को प्रकृति का उत्सव भी कहा गया है. बसंत पंचमी निराशा, नीरसता एवं निष्क्रियता को त्यागकर सदैव प्रसन्न रहना चाहिए, ताकि जीवन में यौवन, सौंदर्य एवं स्नेह का संचार हो का संदेश देती है. पंचमी पर पीले वस्त्र पहनने के साथ ही लोग बसंती हलुवा, पीले चावल एवं केसरिया खीर खाकर इस उत्सव का आनंद लेते हैं. पंचमी के दिन विद्या एवं वाणी की देवी सरस्वती का आविर्भाव हुआ माना गया है. इसलिए सरस्वती ही हमारे जीवन का मूल है. बसंत पंचमी के दिन तेल एवं उबटन लगाकर स्नान करना चाहिए. अच्छे वस्त्र एवं आभूषण धारण करने चाहिएं तथा गुलाल, चंदन, पुष्प, दीप, नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करनी चाहिए. (संजय चौहान की फेसबुक वाल से साभार)

बसंत ऋतु आई गेछ फूल बुरूंशी जंगलो पारा

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

उत्तराखण्ड के पीपलकोटी में रहने वाले संजय चौहान पत्रकार है. संजय उत्तराखण्ड के विभिन्न मुद्दों पर सारगर्भित लेखन के लिए जाने जाते हैं.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

हमारे कारवां का मंजिलों को इंतज़ार है : हिमांक और क्वथनांक के बीच

मौत हमारे आस-पास मंडरा रही थी. वह किसी को भी दबोच सकती थी. यहां आज…

2 days ago

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

6 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

7 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

1 week ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

1 week ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

1 week ago