समाज

महाभारत में बदरीनाथ धाम

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये क्लिक करें – Support Kafal Tree

बदरीनाथ धाम के विषय में महाभारत में अलग-अलग जगह लिखा गया है. यह माना जाता है कि महाराज पांडु बदरीनाथ के समीप पांडुकेश्वर में रहा करते थे. पांडवों का जन्म भी यहीं माना जाता है. लाक्षागृह से भागने के बाद वनवास के दौरान भी पांडव उत्तराखंड में ही घुमे. अश्वमेध यज्ञ करने के लिये जव धन की जरूरत पड़ी तब भगवान को आज्ञा से मरुत्त के यज्ञ के बचे सुवर्ण को लेने भी पांडव उत्तराखण्ड ही आये और यहां से बहुत धन लाकर यज्ञ किया.
(Bardinath Uttarakhand in Mahabharat)

अंत में पांडव राज्य छोड़कर जब महाप्रस्थान पथ की ओर चले तब भी उन्होंने उत्तराखण्ड की ही गोद में आश्रय पाया. यह माना जाता है कि बदरीनाथ में ही पांडवों का जन्म हुआ, यहीं उनकी क्रीड़ा भमि और तपोभूमि रही और यहीं तपस्या करके अर्जुन सशरीर स्वर्ग जाकर, अस्त्र ज्ञान प्राप्त कर के लौटे.

वनपर्व के अन्तर्गत जो तीर्थयात्रा पर्व है उसके 90वें अध्याय में श्रीबदरीपुरी का बदरीनाथ का माहात्म्य वर्णन है. प्रसंगवशात् स्थान-स्थान पर बनरीवन को पवित्रता और महत्ता का उल्लेख आया है. वहाँ पर वर्णन है कि श्री नारायण देव आश्रम परम पवित्र है जहाँ उष्ण गंगा और शीतल गंगा हैं, जहाँ देवता, यक्ष, गन्धर्व, ऋषि मुनि सदा वास करते हैं. यह क्षेत्र पवित्र से से भी पवित्र है. इस विषय में हे राजन् ! तुम्हें कुछ भी शंका न करनी चाहिये.

तस्याऽति यशसः पुण्यां विशालां बदरी मनु।
आश्रमः ख्यायते पुण्यास्त्रिषु लोकेषु विश्रुतः॥
उष्णतोयवहा गंगा शीततोयवहा परा।
सुवर्णसिकता राजन् विशालां बदरी मनु॥
ऋधयो व यत्र देवाश्च महाभागा महौजसः।
प्राप्यं नित्यं नमस्यन्ति देवं नारायणं प्रभुम्॥
आदिदेवो महायोगी यत्रास्ते मधुसूदनः।
पुण्यानामपि ततपुण्य मन्त्र त संशयोऽस्तुमा॥

(महाभारत वन पर्व 9 अ. 25-26-27-32 श्लोक)

हरिवंश पुराण महाभारत का ही एक भाग है. उसमें 76वें अध्याय से 88वें अध्याय तक बड़े विस्तार से घंटाकर्ण की कथा है जिसमें बदरीनाथ माहात्म्य का वर्णन है. एक बात और भी याद रखने की है, पांडव इस प्रान्त में देवताओं की तरह पूजे जाते हैं. पांडवों के संबंध में पहाड़ी भाषा में गीत गाये जाते हैं. उनकी लीलाओं का अनुकरण किया जाता है और उनके नाम का नृत्य भी होता है. पांडव नृत्य समस्त गढ़वाल में प्रसिद्ध नृत्य है.
(Bardinath Uttarakhand in Mahabharat)

पांडवों की स्मृति में यहाँ बहुत से गाँव, शिला, नदी, नाले प्रसिद्ध हैं. जैसे पांडुकेश्वर, पन्नोसेरा (पांडवशिरा), पन्नोबाड़ी (पांडव बाबड़ी), पनाऊँ, भ्यूँधार (भीम द्वार या भीम भंडार), भ्यूँलते (भीमलता), भ्यूँपूर (भीमपुर), भ्यूँ शिला (भीमशिला), भीमपानी आदि-शादि.

पांडवों में भी भीम यहाँ अधिक प्रसिद्ध हैं. संभव है इसका यह कारण हो कि भीमसेन ने हिडम्बा नाम की राक्षसी से विवाह किया था. उससे उन्हें घटोत्कच नाम का पुत्र भी हुआ था. गंधमादन यात्रा में जब द्रौपदीजी थक गयी यां तो भीमसेन ने अपने पुत्र घटोत्कच को स्मरण किया. वह अपने कई राक्षसों के साथ आया और द्रोपदी जी को पीठ पर लादकर ले गया था. सचमुच ठेठ देहाती काले कलूटे हष्ट-पुष्ट पहाड़ी बाल खोले पीठ पर कुंडो में यात्रियों को चढ़ाकर जब बदरीनाथ यात्रा को ले जाते हैं तो वे साक्षात् घटोत्कच के वंश के प्रतीत होते हैं. उनकी वह सूरत बड़ी विचित्र होती है. इस प्रकार महाभारत में स्थान-स्थान पर बदरीनाथ गन्ध-मादन तथा वहाँ की संस्कृति का उल्लेख है.
(Bardinath Uttarakhand in Mahabharat)

श्री बद्रीनाथ दर्शन से साभार

-काफल ट्री फाउंडेशन

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

हरियाली के पर्याय चाय बागान

चंपावत उत्तराखंड का एक छोटा सा नगर जो पहले अल्मोड़ा जिले का हिस्सा था और…

3 hours ago

हो हो होलक प्रिय की ढोलक : पावती कौन देगा

दिन गुजरा रातें बीतीं और दीर्घ समय अंतराल के बाद कागज काला कर मन को…

4 weeks ago

हिमालयन बॉक्सवुड: हिमालय का गुमनाम पेड़

हरे-घने हिमालयी जंगलों में, कई लोगों की नजरों से दूर, एक छोटी लेकिन वृक्ष  की…

4 weeks ago

भू कानून : उत्तराखण्ड की अस्मिता से खिलवाड़

उत्तराखण्ड में जमीनों के अंधाधुंध खरीद फरोख्त पर लगाम लगाने और यहॉ के मूल निवासियों…

1 month ago

कलबिष्ट : खसिया कुलदेवता

किताब की पैकिंग खुली तो आकर्षक सा मुखपन्ना था, नीले से पहाड़ पर सफेदी के…

1 month ago

खाम स्टेट और ब्रिटिश काल का कोटद्वार

गढ़वाल का प्रवेश द्वार और वर्तमान कोटद्वार-भाबर क्षेत्र 1900 के आसपास खाम स्टेट में आता…

1 month ago