अनेक आलोचकों का ठोस यकीन है कि जीवनानन्द दास (Jibanananda Das) बांग्ला कविता के शीर्षस्थ कवि हैं – किसी भी कालखण्ड के. ठाकुर रवीन्द्र से भी बड़े और सुकान्त भट्टाचार्य से भी. उन्हें उनकी कविता ‘वनलता सेन’ (Banalata Sen) के लिए सबसे अधिक ख्याति मिली. आज उनका जन्मदिन है. इस अवसर पर पढ़िए उनकी यही सबसे मशहूर रचना –
बनलता सेन
-जीवनानन्द दास
हज़ारों साल से राह चल रहा हूँ पृथ्वी के पथ पर
सिंहल के समुद्र से रात के अँधेरे में मलय सागर तक
फिरा बहुत मैं बिम्बिसार और अशोक के धूसर जगत में
रहा मैं वहाँ बहुत दूर अँधेरे विदर्भ नगर में
मैं एक क्लान्त प्राण, जिसे घेरे है चारों ओर जीवन सागर का फेन
मुझे दो पल शान्ति जिसने दी वह-नाटोर की बनलता सेन
केश उसके जाने कब से काली, विदिश की रात
मुख उसका श्रावस्ती का कारु शिल्प-
दूर सागर में टूटी पतवार लिए भटकता नाविक
जैसे देखता है दारचीनी द्वीप के भीतर हरे घास का देश
वैसे ही उसे देखा अन्धकार में, पूछ उठी, ”कहाँ रहे इतने दिन?“
चिड़ियों के नीड़-सी आँख उठाये नाटोर की बनलता सेन
समस्त दिन शेष होते शिशिर की तरह निःशब्द
आ जाती है संध्या, अपने डैने पर धूप की गन्ध पोंछ लेती है चील
पृथ्वी के सारे रंग बुझ जाने पर पाण्डुलिपि करती आयोजन
तब क़िस्सों में झिलमिलाते हैं जुगनुओं के रंग
पक्षी फिरते घर-सर्वस्व नदी धार-निपटाकर जीवन भर की लेन-देन
रह जाती अँधेरे में मुखाभिमुख सिर्फ़ बनलता सेन
(मूल बांग्ला से अनुवाद:समीर वरण नंदी)
[वाट्सएप में काफल ट्री की पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें. वाट्सएप काफल ट्री]
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…