Featured

कहाँ से आई अल्मोड़े की बाल मिठाई

अल्मोड़ा और बाल मिठाई तो जैसे एक दूजे के पर्याय हैं. इधर अपने बाल मिठाई कहा उधर अल्मोड़ा ख़ुद-ब-ख़ुद इससे जुड़ जाता है. अल्मोड़ा और बाल मिठाई की यह जोड़ी बीते दिन दुनिया भर में चर्चा का विषय रही जब थॉमस कप जीतने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैडमिंटन खिलाड़ी लक्ष्य सेन से अल्मोड़ा की बाल मिठाई खिलाने को कहा. फिर क्या था अपनी अगली ही मुलाक़ात में लक्ष्य सेन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अल्मोड़े बाल मिठाई भेंट कर दी.
(Bal Mithai Origin History)

इसके बाद दुनियाभर के लोगों ने अल्मोड़े की बाल मिठाई पर कहानियां लिखना शुरु कर दिया. कहा गया कि नेपाल से कुमाऊं आई सातवीं-आठवीं सदी की बाल मिठाई पहले कटारमाल के सूर्य देवता को चढ़ाया जाने वाला प्रसाद हुआ करती थी. इस कहानी से दो सवाल उठे.

पहला की क्या कटारमाल के सूर्य देवता को चढ़ाये जाने के कारण इस मिठाई को बाल मिठाई कहा जाता है और दूसरा क्या अल्मोड़े की बाल मिठाई नेपाल से आई है?

अगर पहले सवाल की बात करें तो इंटरनेट की दुनिया में इस बात को साल 2016 में भीमताल के शिक्षक राज शेखर पन्त ने अपने लेख में लिखा. द सिटीजन में अंग्रेजी में लिखे लेख The Sweet Tooth of Kumaon में राज शेखर पन्त बाल मिठाई, कटारमल मंदिर को जोड़ एक तर्क देते हैं जिसे बाद में इंटरनेट वीर अपने-अपने हिसाब से गढ़ते हैं और बाल मिठाई बन जाती है 7वीं 8वीं का प्रसाद जो सूर्य देवता को चढ़ाया जाता था.

दरसल राज शेखर पन्त ने बाल मिठाई और कटारमल मंदिर के प्रसाद को जोड़कर जो तर्क दिया है वह यमुनादत्त वैष्णव की किताब संस्कृति संगम उत्तराचंल पर आधारित है. अपनी किताब में उन्होंने लिखा है-

बाल भोग शब्द देवता को प्रातराश के रूप में दिए गए नैवेद्य को कहा जाता है. कुमाऊं में बाल मिठाई पहले इस प्रकार की नैवेद्य थी. जैसे परसाद का अर्थ आजकल कुमाऊंनी में हलुआ हो गया है वैसे ही बालभोग का बाल शब्द विशेष प्रकार की बिना अन्न की मिठाई हो गया है.

यमुनादत्त वैष्णव ने ठोस तर्कों के साथ अपनी बात को रखा है हालांकि कुमाऊं से जुड़ी किसी अन्य किताब में इस तरह का जिक्र नहीं है.

अब दूसरे सवाल की बात क्या अल्मोड़े की बाल मिठाई नेपाल से आई है. अल्मोड़े की बाले मिठाई के नेपाल से आने की बात भी इंटरनेट पर पहली बार राज शेखर पन्त के लेख में ही मिलती है लेकिन उनकी बात को गलत तरीके से समझा गया है. जब राज शेखर पन्त लिखते हैं कि बाल मिठाई, जो नेपाल से मध्य हिमालय के कुमाऊं क्षेत्र में आई तो उनका अर्थ आज के भारत नेपाल का राजनैतिक मानचित्र नहीं बल्कि पुराने समय राजनैतिक स्थिति से है. इस तरह अल्मोड़े की मिठाई का मूल भी कुमाऊं ही है जो कि कभी नेपाल का हिस्सा हुआ करता था. वर्तमान नेपाल का बाल मिठाई से बस इतना भर संबंध है कि कुमाउनियों की तरह नेपालियों को भी बाल मिठाई खूब पसंद है.

बाल मिठाई के विषय में यह भी कहा जाता है कि बाल मिठाई अंग्रेजों को भी खूब पसंद थी. कहते हैं क्रिसमस के लिये अल्मोड़े की बाल मिठाई पानी के जहाजों से होती हुई इंग्लैंड जाया करती थी. यह बात अलग है कि बाल मिठाई का कोई ख़ास जिक्र अंग्रेजों ने नहीं किया पर अल्मोड़े वाले मानते हैं कि कमीश्नर रैमजे की तो सबसे प्रिय मिठाई ही अल्मोड़े की बाल मिठाई थी.
(Bal Mithai Origin History)

वर्तमान में यह तथ्य सर्वमान्य रूप से माना जाता है कि सबसे पहले 1865 में बाल मिठाई अल्मोड़े के जोगा लाल शाह ने बनाई. जोगा लाल शाह की पांचवी पीड़ी आज भी बाल मिठाई का काम करती है. वर्तमान में अल्मोड़ा में 50 से ज्यादा बाल मिठाई की दुकानें हैं. लोकप्रियता की बात की जाय तो जोगा शाह की बाल मिठाई दूसरा खीम सिंह मोहन सिंह की बाल मिठाई का नाम देश दुनिया जानती है.

बाल मिठाई के पर्वतीय क्षेत्रों में लोकप्रिय होने का एक कारण यह रहा है कि यह लम्बे समय तक खराब नहीं होती. शुद्ध पहाड़ी खोये की बाल मिठाई महीने भर तक खराब नहीं होती. मैदानी क्षेत्रों से पहाड़ों में अपने घर जाने वाले लोग अक्सर बाल मिठाई ही अपने साथ ले जाया करते. बाल मिठाई कत्थई रंग की बर्फी और बाल दाने से मिलकर बनती है.

पहले अल्मोड़ा शहर के आस-पास के गावों खूब दूध हुआ करता था. अलग-अलग लोगों के यात्रवृत्तान्तों में इस बात का जिक्र देखने को मिलता है कि अल्मोड़ा के आस-पास के लोग दूध और इससे जुड़े पदार्थ बेचने अल्मोड़ा बाज़ार आया करते थे. अल्मोड़ा के आस-पास के लोग स्थानीय स्तर पर खोया बनाया करते थे. यह खोया चूल्हे में बांज की लकड़ियां जलाकर बनाया जाता था. पहले बाल मिठाई में लगने वाला सफ़ेद रंग का दाना भी स्थानीय लोग बनाया करते थे. बाद के दिनों बाल मिठाई का दाना स्थानीय तौर पर बनना बंद हुआ और यह रामनगर से आने लगा.
(Bal Mithai Origin History)

काफल ट्री फाउंडेशन

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब

1980 के दशक में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के जूलॉजी विभाग में प्रवक्ता रहे पूरन चंद्र जोशी.…

3 days ago

कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल…

5 days ago

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

1 week ago

पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा

वनस्पति जगत के वर्गीकरण में बॉहीन भाइयों (गास्पर्ड और जोहान्न बॉहीन) के उल्लेखनीय योगदान को…

1 week ago

पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश

पृथ्वी दिवस पर विशेष सरकारी महकमा पर्यावरण और पृथ्वी बचाने के संदेश देने के लिए…

2 weeks ago

‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक

पहाड़ों खासकर कुमाऊं में चैत्र माह यानी नववर्ष के पहले महिने बहिन बेटी को भिटौली…

2 weeks ago