समाज

अब सुनने को नहीं मिलते हैं पहाड़ के मेलों में ‘बैर’

वैरा जिसे बैर भी कहते हैं,  इसका शाब्दिक अर्थ संघर्ष है जो गीत-युद्ध के रूप में गायकों के बीच होता है. इसमें एक पक्ष दूसरे को पराजित करने की चेष्टा करता है. अपने पक्ष का समर्थन और दूसरे पक्ष का खण्डन करने के लिए सैकड़ों तुकान्त-अतुकान्त, सम्बद्ध-असम्बद्ध पद उसी स्थान पर तुरन्त बना लिये जाते हैं. कल्पना, कौशल तथा तर्क बुद्धि के बाधार पर परस्पर विजय पाने की प्रवृत्ति रहती है. बैरा गाने वालों को यहां अच्छी प्रतिष्ठा है. पूर्वोत्तर भाग में तो विवाह के अवसर पर बर एवं कन्या पक्ष के लोग अपने-अपने बैरिया (वैरा गाने वाला) साथ रखते हैं.
(Bair Traditional Folk of Uttarakhand)

बैरा गाते समय किसी वाथ यंत्र का प्रयोग नहीं होता है. कंठ स्वर के आधार पर इनका क्रम चलता है. इनका प्रचलन विशेषत: किसी मैले के अवसर पर होता है. रामेश्वर का मेला जो मकर संक्रान्ति को पिठौरागढ़ के दक्षिणी सीमान्त पर रामगंगा और सरयू के संगम पर मनाया जाता है. पिठौरागढ़ के उत्तर में जौलजीवी नामक स्थान बहुत बड़ा मेला लगता है जो लगभग महीने भर चलता है. इन मेंलों में अन्य गीत शैलियों के साथ बैरा का गान होता है. जंगल में कार्य करने के लिए गये हुए स्त्री, पुरुष भी बैरा गाते हैं जो निस्तव्य वातावरण में अत्यन्त मुखर रूप में परिश्रुत होकर श्रोताओं को आकर्षित करता है.

कोई भी गायक ‘बैरिया’ बैरा गीत आरम्भ कर देता है. वह किसी आश्चर्यपूर्ण घटना का दृश्य का वर्णन करते हुए प्रतिद्वन्दी से उसके विषय में प्रश्न करता है? उसके चुप हो जाने पर प्रतिद्वन्दी गायक आलाप लेते हुए गीत आरम्भ करके पहले उसे प्रश्न का उत्तर देता है और फिर अपनी ओर से उसी प्रकार प्रश्न करता है. प्रथम गायक उसका उत्तर देता है और कट नया प्रश्न करता है.

प्रश्न उत्तर का यह क्रम खण्ड गति से चलता रहता है. बैरा में कही जाने वाली पंक्तियों की संख्या निश्चित नहीं रहती फिर भी एक बार कही गयी पंक्तियों में एक प्रश्न और एक उत्तर का क्रम प्राय: रहता है. प्रश्न की विशेषता उसके दुरूह और गूढ़ हाने में है. उसका उत्तर जितना युक्ति युक्त होगा उतना हो बैर श्रेष्ठ होगा. उक्ति वैभव, प्रत्युत्पन्न मति, कल्पना-शक्ति, लम्बी सांस आदि की सहायता से उत्तर देकर श्रोताओं को प्रभावित करने का प्रयास किया जाता है.
(Bair Traditional Folk of Uttarakhand)

बैर का विषय राजनीति, पुराण, रीति, समाज आदि किसी से सम्बन्धित हो सकता है. इसमें गायक का दृष्टिकोण प्रधान न होकर व्यंग्य का कटाक्ष प्रधान रहता है. वर्णन के लिए वही उपादान ग्रहण किये जाते है जो किसी गुण के लिए प्रसिद्ध हों. इसलिए गायक किसी सामाजिक विषमता या ऐसे व्यक्ति को लक्ष्य में रखता है जो किसी विशेषता से युक्त हो. बनिया अपनी लोभी प्रवृत्ति के लिए प्रसिद्ध होता है. घर में अकेली रखने वाली स्त्री प्रायः इधर-उधर तांक-झांक करती है.

सांसारिक कष्टों से भयभीत होने वाले लोग गृहत्यागी बन जाते हैं. ये ऐसी प्रवृत्तियां है जिन्हें गायक पकड़ता है और प्रश्न का विषय बनाता है. अनेक समसामयिक विषय के रूप में ग्रहण किये जाते हैं. बैरों का दूसरा स्वरूप भी है. जिसमें पंक्तियाँ में परस्पर सम्बद्धता मिलती हैं. इस प्रकार के गीत बैर नाम से अब शिक्षितों द्वारा लिखे जाने लगे हैं.

बैर की परम्परा अब लुप्त होने की कगार पर है.

डॉ. भवानी दत्त उप्रेती का लेख. यह लेख डी. लिट् उपाधि हेतु उनके शोध प्रबंध ‘पिठौरागढ़ संभाग की बोली और उसका लोक साहित्य’ से लिया गया है.
(Bair Traditional Folk of Uttarakhand)

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