अणवाल उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मंडल के पिथौरागढ़ जिले की धारचूला तहसील की मल्ला-तल्ला दारमा, व्यांस और चौदांस घाटियों के शौका गांवो के ही रहने वाले हैं. अणवाल भी आर्थिक व् सामाजिक रूप से शौका जनजाति की ही तरह पिछड़े हुए हैं. लेकिन इनकी गिनती इस सीमांत में रहने वाली जनजातियों में नहीं की जाती. इनकी कुल आबादी 5000 के आसपास आंकी जाती है. (Anwal of Uttarakhand)
अणवालों का मुख्य व्यवसाय शौका लोगों की भेड़ों के ठाकरों (झुंडों, रेवड़ों) की देखरेख करना हुआ करता है. इनका ज्यादातर समय भेड़ों के साथ बुग्यालों और मौसम बदलने पर तराई के निचले हिस्सों में बीतता है. घुमंतू होने की वजह से अणवाल अपने लिए रिंगाल के ढांचे से कच्ची-पक्की झोपडियां बनाकर उनमें ही रहा करते हैं. ये अस्थायी तम्बू ही इनके घर हुआ करते हैं और इन्हीं में इनका जीवन बीत जाया करता है. कहा जाता है कि ये मूलतः दानपुर के निवासी थे और आजीविका के लिए वहां से निकल आये.
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अणवाल शब्द ऊनवाल (अनवाल) से बना है. भेड़ों का व्यवसाय करके उनसे प्राप्त ऊन से अपनी आजीविका चलाने की वजह से इन्हें अणवाल कहा गया. अणवाल शौकाओं की भेड़ चराने के बदले उनसे पारिश्रमिक के रूप में भूड़ (भत्ता) प्राप्त करते थे, जो कि अनाज और वस्तुओं के रूप में हुआ करता था.
शौका लोगों के लम्बे समय से संपर्क में होने के कारण इनके आचार-व्यवहार और संस्कृति में उनकी संस्कृति का प्रभाव दिखाई देता है.
सीमांत में होने वाली गतिविधियों पर नजर रखने के कारण यह सीमांत के प्रहरी भी कहे जाते हैं. (Anwal of Uttarakhand)
(उत्तराखण्ड ज्ञानकोष, प्रो. डीडी शर्मा के आधार पर)
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