कल (चौदह दिसंबर) नचिकेता (मेरे छोटे बेटे) का ऐनुअल डे है और मेरा जन्मदिन.
कई दिनों से उत्साहित है. स्कूल जाते हुए उसे अभी छह महीने हुए हैं. इसलिए शायद ओवरएक्साइटिड रहता है. उसने उम्मीद लगाई हुई है कि उसके पापा भी उसमें शामिल होंगे.
आज सुबह मुझसे कह रहा था- पापा कल मेरा ‘एनिमल डे’ है. चलोगे न?”
मैंने कहा, “बेटा! एनिमल डे तो मेरा है. तुम्हारा तो एनुअल डे है.”
बहुत समय पहले अरस्तू बाबा ने कहा था, मैन इज अ सोशल एनिमल.
छोटे को तो कुछ भी समझ में नहीं आया. बड़े ने सवाल दाग दिया- “इसका क्या मतलब हुआ पापा?”
वह उस अवस्था से गुजर रहा है, जिस अवस्था में सवाल पे सवाल दागे जाते हैं.
अब मुँह से निकल गया तो बताना लाजमी बनता है. अपने जमाने की भूल जाओ. इस जमाने के बच्चे जुबान पकड़ते हैं.
न बताया तो रही-सही भी खत्मशुदा समझो.
जैसे-तैसे करके इज्जत बचाई. झख मारकर कोटेशन दोहराना पड़ा-
‘Man is by nature a social animal; an individual who is unsocial naturally and not accidentally is either beneath our notice or more than human. Society is something that precedes the individual.’
पाकिस्तानी पंजाब में एक कहावत प्रचलित है-
‘नदी अभी कोसों दूर थी. यार लोगों ने अभी से पतलून उतार के कंधे पर डाल दी.’
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उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दूसरी पुस्तक ‘अथ श्री प्रयाग कथा’ 2019 में छप कर आई है. यह उनके इलाहाबाद के दिनों के संस्मरणों का संग्रह है. उनकी एक अन्य पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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